इतिहास ने लियो तोल्स्तॉय को याद रखा है।
लेकिन उस आदमी के पीछे, जिसने ‘वॉर एंड पीस’ और ‘अन्ना कारेनिना’ जैसी अमर रचनाएँ लिखीं, एक औरत खड़ी थी — जिसकी बात अक्सर सिर्फ एक फुटनोट बनकर रह जाती है।
सोफ़िया तोल्स्ताया सिर्फ तोल्स्तॉय की पत्नी नहीं थीं।
वो उनकी संपादक थीं, उनकी प्रबंधक थीं, उनकी टाइपिस्ट, उनकी कॉपी करने वाली, उनकी प्रकाशक — और उनके 13 बच्चों की माँ। वो उस भावनात्मक तूफ़ान को झेलने वाली थीं, जो एक बेहद प्रतिभाशाली लेकिन बेचैन आत्मा के भीतर लगातार मचलता रहता था।
जब तोल्स्तॉय ने उन्हें ‘वॉर एंड पीस’ की पांडुलिपि थमाई, तो वह कोई साफ-सुथरा ड्राफ्ट नहीं था — वो तो बिखरे हुए पन्नों का एक पहाड़ था, जीनियस की उलझी हुई परतें।
सोफ़िया हर रात जाग-जाग कर उसे हाथ से साफ़-साफ़ सात बार कॉपी करती रहीं — उनके रेखाचित्रों को पढ़तीं, उनकी उलझी सोच को क्रम में लातीं, और जो कोई और नहीं कर सकता था वो करतीं — उनकी प्रतिभा को पढ़ने लायक बनातीं।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
सोफ़िया ने प्रकाशकों से बात की, उनके लेखन की रक्षा की, उनकी अनुपस्थिति में भी उनके काम को जीवित रखा — जबकि तोल्स्तॉय कभी आध्यात्मिक संकट में खो जाते, कभी वैराग्य के भ्रम में।
लेकिन सोफ़िया सिर्फ एक ‘सहायक’ नहीं थीं।
उनका खुद का मन था, खुद की कलम थी, खुद का दुःख।
वो खुद भी लेखिका थीं — संवेदनशील, गहरी और ईमानदार।
उनकी डायरी में जो दर्द है, जो स्पष्टता है, वो एक ऐसी औरत की झलक देती है जो प्रेम, थकान, गुस्से और समर्पण के बीच हर दिन संघर्ष कर रही थी।
वो तोल्स्तॉय से बेहद प्यार करती थीं।
पर उस प्यार की कीमत बहुत भारी थी।
तोल्स्तॉय ने गरीबी को गले लगाया — सोफ़िया ने जायदाद चलाई।
वो आत्मिक शुद्धता की तलाश में थे — वो बच्चों को पाल रही थीं।
वो कह रहे थे कि मोह छोड़ दो — और वो उनके जीवन का बोझ उठा रही थीं।
और फिर भी वो रहीं।
जब तोल्स्तॉय ने अपने अंतिम वर्षों में उन्हें खुद से दूर कर दिया, तब भी।
जब वो आध्यात्मिक विचारों में डूबकर रिश्तों को भुला बैठे, तब भी।
वो रहीं — घर के लिए, बच्चों के लिए, उनकी विरासत के लिए… और उनके लिए भी।
जब तोल्स्तॉय की मौत एक ठंडे रेलवे स्टेशन पर हुई, तो वो वहाँ पहुँचीं — लेकिन देर से।
उन्हें कमरे में घुसने तक नहीं दिया गया।
वो दृश्य हृदय विदारक है — वो औरत, जिसने उन्हें सब कुछ दिया, दरवाज़े के बाहर खड़ी रही, जबकि उनके जीवन का अंत हो गया।
लेकिन शायद असली त्रासदी ये नहीं है।
असली त्रासदी ये है कि दशकों तक हमने इस महिला को भी उनके जीवन की कहानी से बाहर ही रखा।
सोफ़िया सिर्फ एक महान लेखक की पत्नी नहीं थीं — वो खुद भी उस महानता का हिस्सा थीं।
वो उस जीनियस के पीछे का स्थिर हाथ थीं।
वो एक ऐसी सहलेखिका थीं, जिनका नाम कभी किताब के कवर पर नहीं आया।
तोल्स्तॉय को याद करना अगर जरूरी है,
तो सोफ़िया को याद करना उससे भी जरूरी है।
क्योंकि जब तोल्स्तॉय इतिहास लिख रहे थे —
सोफ़िया वो ज़मीन थी, जिस पर वो इतिहास उग सका।
ये भी एक तरह की प्रतिभा है —
शांत, छुपी हुई, लेकिन गहराई में डूबी हुई… और बिल्कुल वैसी ही असाधारण।
(साभार – कसम रंगदार की फेसबुक पोस्ट)