– कहा -आधार पहचान का प्रमाण नहीं
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस रुख को बरकरार रखा है कि आधार कार्ड को भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और इसका उचित सत्यापन आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि आधार विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान दस्तावेज़ है, लेकिन यह अपने आप में धारक की राष्ट्रीयता स्थापित नहीं करता। शीर्ष न्यायालय का यह फैसला बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर उठे विवाद के बीच आया है। मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसे वैध साक्ष्य मानने से पहले उचित सत्यापन आवश्यक है। न्यायमूर्ति कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सत्यापित किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि निर्णय लेने योग्य प्राथमिक मुद्दा यह है कि क्या भारत के चुनाव आयोग के पास मतदाता सत्यापन प्रक्रिया करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि यदि चुनाव आयोग के पास ऐसी शक्ति नहीं है, तो मामला यहीं समाप्त हो जाता, लेकिन यदि उसके पास यह अधिकार है, तो इस प्रक्रिया पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि 1950 के बाद भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति नागरिक है, लेकिन उन्होंने दावा किया कि वर्तमान प्रक्रिया में गंभीर प्रक्रियागत खामियाँ हैं। एक उदाहरण देते हुए, उन्होंने कहा कि एक छोटे से विधानसभा क्षेत्र में, 12 जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर दिया गया था, और बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया था। सिब्बल ने आगे तर्क दिया कि चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मतदाता बहिष्कृत हो सकते हैं, विशेष रूप से उन लोगों पर जो आवश्यक प्रपत्र जमा नहीं कर पाए। उन्होंने बताया कि 2003 की मतदाता सूची में पहले से सूचीबद्ध मतदाताओं से भी नए प्रपत्र भरने के लिए कहा जा रहा है और ऐसा न करने पर उनके निवास में कोई बदलाव न होने के बावजूद उनके नाम हटा दिए जाएँगे।