Saturday, July 26, 2025
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सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रही है हमारी बांधनी

-मौमिता भट्टाचार्य

भारत में कई तरह के कपड़े और उनसे बने पारंपरिक परिधानों का क्रेज कभी भी कम नहीं होता है। लेकिन इन दिनों पारंपरिक कपड़ों से मॉडर्न या यूं कहे फ्यूजन परिधानों का फैशन हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। भारत के देसी फैशन को दुनिया भर के सामने लाने और उन्हें फैशन स्टेटमेंट बनाने में अंबानी परिवार के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है। हाल ही में परिवार की लाडली ईशा अंबानी की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर खुब पसंद की जा रही है, जिसमें वह बांधनी के कपड़े से बना फ्यूजन गाउन में नजर आ रही है। इस गाउन में ईशा किसी देसी राजकुमारी जैसी ही दिख रही हैं। लेकिन बांधनी, जिसे बंधेज भी कहा जाता है, क्यों इतना खास है कि ईशा अंबानी ने उसे अपने इस लुक के लिए चुना?
क्या है बांधनी का इतिहास और किस तरह से यह बन गया भारत का फैशन स्टेटमेंट?
सबसे पहले समझ लेते हैं कि बांधनी है क्या? बांधनी कपड़े या फेब्रिक का कोई प्रकार नहीं बल्कि यह प्रिंट का प्रकार है। बांधनी को अंग्रेजी के Tie & Dye की छोटी या फिर शायद बड़ी या फिर जुड़वा बहन समझा जा सकता है। कुछ मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बांधनी, बंधेज और Tie & Dye एक ही परिवार का हिस्सा या एक ही इंसान के अलग-अलग नाम हैं।
गुजरात, राजस्थान, पंजाब और सिंध प्रांत के कई हिस्सों में सफेद कपड़ों को बड़े ही कलात्मक तरीके से बांधकर रंगों में डूबोकर जटिल कलाकृतियां बनायी जाती है। इन राज्यों में बांधनी या बंधेज प्रिंट की साड़ियां, दुपट्टे, सलवार सूट से लेकर अब तो गाउन, कुर्ते, कुर्तियां और यहां तक कि को-ऑर्ड सेट, जंप सूट, मिड लेंथ फ्रॉक और न जाने कितनी कुछ बनायी जाती है।


अब जरा इसके इतिहास पर नजर डाल लें
बांधनी की शुरुआत आधुनिक भारत में नहीं बल्कि करीब 5000 साल पहले हुई मानी जाती है। कहा तो यहां तक जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी बांधनी जैसी प्रिंट के मिलने के सबूत मिल चुके हैं। इतना ही नहीं, अजंता की उन गुफाओं में जहां भगवान गौतम बुद्ध के जीवन को दर्शाया गया है, वहां भी कई चित्रों में बांधनी जैसे प्रिंट दिखाई दिये हैं। इससे साबित होता है कि करीब 6वीं शताब्दी में भी भारत में बांधनी और बंधेज की मौजूदगी थी।
बांधनी में मुख्य रूप से लाल और नीले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। आपने भी नीली रंग की इंडिगो साड़ियों में खासतौर पर स्कूल और ऑफिस जाती महिलाओं को जरूर देखा होगा और लाल रंग तो भारत में सुहाग का प्रतीक होता है। इसके अलावा श्रावण के महीने में महिलाएं हरी बांधनी की साड़ियां और दुपट्टे में खूब सजती हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बांधनी पिछले 5000 सालों से फैशन में थी, है और उम्मीद की जा रही है कि यह आगे भी रहने वाली है। तो जरा एक बार अपनी अलमारी को भी टटोल लिजीए और चेक किजीए… आपके पास बंधेज प्रिंट में कौन सी ड्रेस, साड़ी या सलवार सूट रखी हुई है।
और अगर नहीं है तो गुजरात के भूज, जामनगर, पोरबंदर, राजकोट, राजस्थान के जयपुर, उदयपुर, अजमेर, बीकानेर, चुरु आदि शहरों का जरूर रूख किजीए। क्योंकि यहां आपको मिल जाएंगे ओरिजीनल बंधेज से बनी सूती, मलमल या फिर सिल्क के ड्रेस मटेरियल, साड़ी, दुपट्टा या फिर फेब्रिक…जिनसे सिलवा सकेंगी आप अपनी मनपसंद कोई फ्यूजन ड्रेस। ठीक वैसे ही, जैसा ईशा अंबानी ने हाल ही में पहना बंधेज का गाउन।

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