Monday, April 28, 2025
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साहित्यिकी में मधु कांकरिया के उपन्यास” ढलती सांझ का सूरज” पर चर्चा

कोलकाता । मधु कांकरिया हिंदी उपन्यासकारों में शोधपरक उपन्यासों के लिए जानी जाती हैं। साहित्यिकी संस्था ने “ढलती सांझ का सूरज” चर्चा आयोजित की । कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ मंजु रानी गुप्ता ने मंच पर आमंत्रित प्रसिद्ध उपन्यासकार मधु कांकरिया, कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष साहित्यकार डॉ राज्यश्री शुक्ला (भारतीय भाषा परिषद की सचिव) और वक्ता कथाकार और साहित्यकार डॉ शुभ्रा उपाध्याय कार्यक्रम की अध्यक्ष दुर्गा व्यास (प्रसिद्ध समाज सेवी और साहित्यकार, राजस्थान ब्राह्मण संघ की अध्यक्ष ) सभी विदूषियों ने अपने वक्तव्य रखे।
रेवा जाजोदिया ने संचालन करते हुए उपन्यासकार मधु कांकरिया का परिचय दिया। ढलती सांझ का सूरज उपन्यास पर डॉ राज्यश्री शुक्ला ने अपने महत्वपूर्ण विचारों को व्यक्त करते हुए उपन्यास के कथानक और उसके नए शिल्प पर चर्चा की। बताया कि यह उपन्यास वस्तुतः स्त्री केंद्रित उपन्यास है जिसमें एक माँ पूरे देश अर्थात भारत माँ के रुप में विस्तार पाती है। भौतिकवाद के इस दौर में किसानों की आत्महत्याओं की समस्या विशेषकर महाराष्ट्र के विदर्भ की समस्याएं, बच्चों का विदेश भेजना, भौतिक सुख सुविधाओं के घेरे में पड़कर उपन्यास के पात्र अविनाश का अपनी माँ से मिलने की चाह होते हुए भी बीस वर्ष स्विट्जरलैंड में रह जाना । सफलता के साथ जीवन को सार्थक कैसे बनाएं जैसे अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं पर डॉ शुक्ला ने अपने विचार रखे।
डॉ राज्यश्री शुक्ला ने कहा कि उपन्यास की घटनाएँ बहुत ही रोचक हैं जो पाठक को बांधे रखती हैं। स्त्रियों की स्थिति और स्त्री विमर्श पर चर्चा करते हुए स्त्री के सामाजिक विकासक्रम पर भी विचार व्यक्त किया ,लेखिका के उपन्यास ‘पत्ता खोर’ का भी जिक्र किया । किसानों की आत्महत्या, केंद्र में स्त्री, किसान जीवन के अतिरिक्त उपन्यास में सभ्यता संस्कृति और समाज की चर्चा है। जीवन की सफलता के क्या मायने हैं बच्चे कैसे सफल होगें। इस भूमंडलीकरण के दौर में सुख- सुविधाओं के पीछे भागते बच्चों को माँ के दिए संस्कार काम आते हैं और वे देश के लिए अपने उत्तरदायित्व को समझते हैं। माँ देश में रहकर अकेले हताश नहीं होती बल्कि वह एक तार टूटता है तो दूसरे तारों को जोड़ने का कार्य करती है। यही कारण है कि बीस साल बाद भी उसका बेटा अविनाश पूरे महाराष्ट्र के विदर्भ के किसानों के साथ साथ पूरे भारत की चिंता करता है।
जननी जन्मभूमि माँ से जुड़ी है भारत की प्राण नाड़ी को समझना है। उपन्यास में बड़ी सीमा के दर्शन होते हैं। पूरे देश से जुड़ कर उसकी माँ किसानों के परिवार से जुड़ती है। अपने दायरे को बढ़ायी है । जिंदगी के तार टूट जाय तो क्या दूसरे तार नहीं है। नया शिल्प है। सफल सार्थक उपन्यास है जो समाधान की दिशा में ले जाता है। वक्ता डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने उपन्यास के मूल में राष्ट्रीय भावना को महत्वपूर्ण बिंदु माना है। विदेश में बेटा अविनाश माँ को याद करता है लेकिन फिर भी उसकी आत्मा भारत माँ से ही जुड़ी हुई है। विदेश स्विट्जरलैंड से बीस साल बाद भारत आता है माँ से मिलने लेकिन अविनाश को मांँ का कंकाल मिलता है। वस्तुतः अविनाश के चरित्र में मूलरूप में माँ के दिए संस्कारँ है। बीस वर्षों के बाद भारत की बदलती स्थिति और समसामयिक समस्याओं पर लिखा उपन्यास दो खंडों में है । किसान की समस्या 5 वें अंक से शुरू होती और दूसरे खंड में भारत माँ की अवधारणा है। इसमें राष्ट्रीय चेतना की भावना जबरदस्त है। उपन्यास का शिल्प नया है।सफलता स्वयं तलाशनी पड़ती है। तभी जीवन की सार्थकता है। बारह अंक में माँ नहीं है बल्कि माँ की मांग है। भारत आकर 28वें अंक में अविनाश बहुत कुछ करता है।वह विदर्भ के किसान के क्षेत्र को चुनता है जहाँ किसानों ने बड़ी संख्या में आत्महत्या की है । समस्या का समाधान भी सोचना, प्रेमचंद के बाद किसानों को संबोधित करते हुए उनकी समस्याओं को जमीनी हकीकत पर लिखा यह पहला उपन्यास है। self help की बात आती है अविनाश किसानों के गांव की सड्कों को हाइ वे से जोड़ता है। हमें सरकारी तंत्र के भरोसे नहीं रहकर स्वयं सहयोग देने से किसानों की बहुत सी समस्याएं हल हो सकती हैं। एनजीओ और कई लोग व्यक्तिगत रूप से सहयोग देने के लिए आगे आ जाते हैं। उपन्यास की पंक्तियाँ हमें किसान के विस्तार के साथ हमारे भीतर के किसान का भी विस्तार करने के लिए प्रेरित करता है ।
रेवा जाजोदिया ने अपने सफल संचालन में उपन्यास को सफल और सार्थक बताते हुए कहा कि माँ ने फलक का विस्तार किया वहीं बेटे को पत्र द्वारा विरासत में भारत प्रेम को विस्तार दिया है । ढलती सांझ का सूरज शोधपरक उपन्यास है।
मधु कांकरिया ने सात उपन्यास, 70-75 कहानी लिखी है और कई साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित हुईं हैं। वे जमीनी स्तर की सिपाही हैं । इच वन टीच वन एनजीओ से जुड़ी हैं। अनाथ बच्चों को साक्षर करने का बीड़ा उठाया ।
मधु कांकरिया का लेखन भावना दर्शन परक है। वे मानती हैं कि आज भौतिकतावाद चरम पर है और सांस्कृतिक जीवन मूल्यों का रह्रा हुए। जरुरत से ज्यादा सुविधाएं है । बुद्ध और गीता का ह्रास हुआ है , जीवन की समस्याओं को दूर किया जा सकता है।आज बच्चों का बचपना कम हो गया है और आत्महत्या बढ़ रही है। हम अच्छा इंसान नहीं बना रहे हैं। जीवन सार्थक हो तो सफल हो सकता है। शर्मिला वोहरा ने – उपन्यास की शीर्ष लाइन समर्थ सफलता के आधार पर उपन्यास के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला जिसकी सूत्रधार स्वंय लेखिका है। अध्यक्षीय वक्तव्य में दुर्गा व्यास ने सभी वक्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि उपन्यास बहुत ही महत्वपूर्ण और समसामयिक है ।अविनाश जाता है तो खरा सोना था लेकिन लौटा तो विचलित होकर। स्वनिर्भर हो जाएं तो समस्याएं खत्म हो जाती है। अम्मा के चरित्र का विस्तार होता है। लेखिका ने महाराष्ट्र की पूरी चित्रात्मक यात्रा उपन्यास में करवाई है जो विशिष्टता है। सार्थक लेखन, दार्शनिकता नैनसी को लिखे पत्रों में दिखाई पड़ती है । आशा जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापन दिया । कोरोना के बाद 16.11.2022 सायं 4.30 पर साहित्यिकी संस्था का प्रथम ऑफलाइन कार्यक्रम भारतीय भाषा परिषद के छोटे सभागार में हुआ। वाणीश्री बाजोरिया और डॉ मंजू रानी गुप्ता ने सक्रिय योगदान दिया।

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