कोलकाता । ‘साहित्यिकी ‘ द्वारा ज़ूम पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृत राय पर एक वर्चुअल गोष्ठी का आयोजन किया गया । संस्था की सचिव मंजु रानी गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत व अभिनंदन करते हुए साहित्यकार अमृत राय का संक्षिप्त परिचय दिया । गोष्ठी के आरंभ में वाणी श्री बाजोरिया ने अमृत राय के जीवन के विभिन्न आयामों को स्पर्श करते हुए कहा कि अमृत राय कथा सम्राट प्रेमचंद की परंपरा के सशक्त वाहक और वाग्मिता के धनी, एक सक्रिय पार्टी कर्ता,प्रबुद्ध संपादक, कई भाषाओं के जानकार, कहानीकार उपन्यासकार, व्यंग्यकार, नाटककार और अनुवादक रहे हैं। प्रगतिशील विचारधारा ही इनकी कहानियों का आधार है । अतिथि वक्ता संजय जयसवाल ने एक्टिविस्ट बहुआयामी लेखक अमृत राय के प्रतिबद्ध लेखकीय व्यक्तित्व के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तनाव और असहमतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए, वैचारिक प्रतिबद्धता को, उन्होने जीवन मूल्यों से जोड़ा। उनके लेखन की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि वे प्रगतिशील लेखकों का एक परिसर बनाना चाहते थे ताकि मानव विरोधी फासीवादी और सांप्रदायिक तत्वों का मुकाबला किया जा सके। वे अपने समय के बाद के समय को देख रहे थे। प्रो. गीता दूबे ने कहा कि कहीं न कहीं विशिष्ट साहित्यिकार अमृतराय पर प्रेमचंद की पहचान हावी रही और बड़े पिता के पुत्र होने का खामियाजा उनको भुगतना पड़ा। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुसुम जैन ने कहा कि अमृतराय का समाज के प्रति गहरा सरोकार था, उनका साहित्य, समाज और उसकी विसंगतियों से जुड़ा हुआ है। गोष्ठी का सफल संचालन करते हुए रेवा जाजोदिया ने कहा कि उनके लेखन में जीवन की सच्चाई है। वर्चुअल गोष्ठी का तकनीकी पक्ष नूपुर जयसवाल ने संभाला। कार्यक्रम अत्यंत सफल व ज्ञानवर्धक रहा ।