सभी देवी-देवतओं के पास कोई न कोई वाद्य यंत्र जरूर रहता है । उसी तरह भगवान शिव के पास डमरू था, जो नाद का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि संगीत के जनक भगवान शिव ही थे। डमरू की उत्पत्ति से पहले दुनिया में कोई भी नाचना, गाना बिल्कुल भी नहीं जानता था। मान्यता है कि नाद से ही वाणी के चारों रूपों-पर, पश्यंती, मध्यमा और वैखरी की उत्पत्ति हुई है।
रुद्राक्षरुद्राक्ष को देवों के देव महादेव का स्वरूप माना गया है, मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसू से हुई थी। रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है-रुद्र अर्थात भगवान शिव और दूसरा-अक्ष अर्थात नेत्र. शिवजी के नेत्रों से जहां-जहां अश्रु गिरे, वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आये। रुद्राक्ष की माला से जाप करने से शिवजी की असीम कृपा मिलती है।
चंद्रमाभगवान भोलेनाथ को सोम यानी चंद्रमा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव द्वारा चंद्रमा को धारण करना मन के नियंत्रण का भी प्रतीक है। हिमालय पर्वत और समुद्र से चंद्रमा का सीधा संबंध है.। कहा जाता है कि शिवजी के सभी त्योहार और पर्व चांद्रमास पर ही आधारित होते हैं।
गंगा नदीगंगा नदी का स्रोत भगवान शिव हैं। शिव की जटाओं से स्वर्ग से मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। मान्यता है कि जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए गंगा का आह्वान किया गया, तो पृथ्वी की क्षमता इनके आवेग को सहने में असमर्थ थी। ऐसे में शिवजी ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। गंगा को जटा में धारण करने के कारण ही शिव को जल चढ़ाए जाने की प्रथा शुरू हुई।
भगवान शिव के गले में नांगभगवान शिव के गले में लिपटे नजर आने वाले सांप का नाम वासुकी है जो भगवान शिव के अति प्रिय भक्त हैं। शिवजी अपने गले में नाग धारण करते हैं इसलिए महादेव का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी नाम से प्रसिद्ध है। नाग कुंडलिनी शक्ति का भी प्रतीक है।
महादेव के शरीर पर भस्मदेवों के देव महादेव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है। भस्म आकर्षण, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है। देश के एकमात्र जगह उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव की भस्म आरती होती है, जिसमें श्मशान की भस्म का इस्तेमाल किया जाता है।