सर्वसमावेशिकता और राष्ट्रीय जागरण के लेखक हैं प्रेमचंद

कोलकाता  । कोलकाता की सुप्रसिद्ध संस्था भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के सयुंक्त तत्त्वावधान में प्रेमचंद जयंती के अवसर पर “राष्ट्रीय जागरण और प्रेमचंद” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर परिचर्चा में शामिल कल्याणी विश्वविद्यालय के शोधार्थी अनूप कुमार ने कहा कि प्रेमचंद की राष्ट्रीयता ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के साथ ही देशी उपनिवेशवाद से मुक्ति पर विशेष बल देती है। प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय की शोधार्थी प्रियंका कुमारी सिंह ने कहा कि आज संकीर्ण राष्ट्रवाद के दौर में प्रेमचंद का साहित्य राष्ट्र तथा राष्ट्रीयता की समावेशी, बहुलतावादी अवधारणा को समझने में हमारी मदद करता है। प्रेमचंद के दौर में भारत एक राष्ट्र के रूप में तैयार हो रहा था और प्रेमचंद ने अपने वैचारिक लेखन के माध्यम से भावी भारतीय राष्ट्र की जो संकल्पना प्रस्तुत की, उससे हमें आज के भारत की समस्याओं के लिए प्रासंगिक समाधान प्राप्त होते हैं। विद्यासागर विश्वविद्यालय की शोधार्थी मधु सिंह ने कहा कि प्रेमचंद को पढ़ने के साथ- साथ आज आत्मसात करने की जरूरत है। प्रेमचंद ने जिस भारत का स्वप्न देखा था वह समावेशी था न की खंडित हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय की शोधार्थी शोधार्थी दीक्षा गुप्ता ने कहा कि प्रेमचंद सबसे अधिक प्रासंगिक अपने चिंतन,विचार, राष्ट्र प्रेम,सामाजिक समरसता के कारण है।
दूसरे सत्र में प्रो. अल्पना नायक ने कहा कि प्रेमचंद का वैशिष्ट्य इस बात में है कि वे राष्ट्रीय जागरण के संदर्भ को समग्रता और संश्लिष्टता में देखते हैं। समीक्षक मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद अपने लेखन से एक्टिविस्ट पैदा कर रहे थे। डॉ गीता दुबे ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य हमारे अंदर सोए हुए राष्ट्रीय स्वाभिमान और समरसता का भाव जागृत करता है। डॉ आशुतोष सिंह ने कहा प्रेमचंद से हम यह सीखते हैं कि समय और समाज की परिवर्तनशीलता के मध्य हम कैसे सोचें और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें। हमें उनके उर्दू लेखन को देवनागरी में लिप्यांतरित करने का प्रयास करना चाहिए। रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि प्रेमचंद भारतीयता और मनुष्यता के लेखक हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शंभुनाथ ने कहा कि प्रेमचंद उदार और कट्टरवाद में फर्क करते थे। उन्होंने भारत को जोड़ने का साहित्य लिखा और पश्चिम के अंधानुकरण और अतीत की रूढ़ियों दोनों का विरोध किया।
इस अवसर पर अवधेश प्रसाद सिंह, सेराज खान बातिश,संजय दास, मंजु श्रीवास्तव,अनीता राय,राजेश कुमार साव,योगेश साव,असित पांडे,सुशील पांडे,रमाशंकर सिंह सहित भारी संख्या में विद्यार्थी और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पूजा गुप्ता और धन्यवाद ज्ञापन डॉ राजेश मिश्र ने दिया।

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