उत्सवों का मौसम है और रोशनी का त्योहार मनाने के लिए हम तैयार हैं। इस बार दीपावली का बाजार पहले की तरह लगा और बाजारों में रौनक भी लौटी है। लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट देखना एक अच्छा अनुभव जरूर है मगर इस खुशी के पीछे जो भय है, उसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। खासकर जब बंगाल में कोरोना के मामले बढ़ रहे हों और देश के अन्य राज्यों में ऐसी ही स्थिति होने की आशंका मंडरा रही हो, फिर भी भय को मात देकर हम सामान्य होने का प्रयास कर रहे हैं। महामारी ने बगैर मास्क के प्रवेश की अनुमति नहीं जैसे बोर्ड तो लगवा दिये मगर मास्क नहीं लगाने की जिद भी हम हर ओर से देख रहे हैं। बंगाल में गुटखे पर पाबन्दी लगी है मगर यह पाबन्दी तो पहले से ही है, इसके बावजूद स्थितियों को देखकर लगता ही नहीं कि यहाँ पर प्रतिबन्ध जैसी कोई चीज ही नहीं है। सबसे जरूरी है आत्म अनुशासन, और यह अनुशासन भीतर से आना चाहिए। खुद को अनुशासित करना हमें खुद ही सीखना होगा, यह कोई सरकार या पुलिस हमें नहीं सिखा सकती। अगर हम अनुशासित होंगे, नियमों का पालन करेंगे तभी हमारे बच्चों की भी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। कोरोना के साथ इन दिनों अगर मीडिया में कोई चीज छायी है तो वह है आर्यन खान की गिरफ्तारी, जमानत और उसके पीछे हो रही सियासत। दुःख की बात यह है कि देश के दिग्गज मीडिया घरानों का बर्ताव आर्यन खान के अधिवक्ताओं जैसा हो गया है। इस देश में किंग खान के बेटे की तरह हजारों युवा नशे के साथ पकड़े जाते हैं, सजा काटते हैं और उनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं होता। छोटे – मोटे अपराधों के लिए भी बच्चों को सलाखों के पीछे जाना पड़ता है लेकिन इन बच्चों के माता – पिता वीआईपी संस्कृति से नहीं हैं, इसलिए इनकी सुनवाई कहीं नहीं होने वाली। यह इस देश की न्याय व्यवस्था में व्याप्त वर्ग भेद को दर्शाता है।यह बहुत शर्मनाक स्थिति है क्योंकि इस बात का कोई मतलब नहीं है कि मीडिया के हर माध्यम में आर्यन खान को नायक और पीड़ित बनाकर पेश किया जाए। आखिर ऐसा दिखाकर युवा पीढ़ी को कौन सी राह दिखायी जा रही है। आर्यन पर कोई भी निर्णय अदालत का होगा, मगर एक बात तय है कि अगर एक अपराधी को बचाने के लिए ऐसी सियासत होगी तो देश का चौथा खम्भा अपनी विश्वसनीयता खो देगा और यही सबसे बड़ा संकट है..सम्भलिए और दीये के उत्सव में मन का दीया आलोकित कीजिए। आलोक पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ