सकारात्मक दृष्टिकोण रखें, चुनौती समझकर स्वीकार करें ऑनलाइन शिक्षा

कोरोना काल में हर चीज बदली है…तो शिक्षा प्रणाली का पारम्परिक अन्दाज भी बदला है…स्मार्ट फोन शिक्षा का एक अंग बन गया है और शिक्षकों के लिए इसे अपनाना आसान नहीं है। ऐसी स्थिति में कुछ शिक्षक ऐसे हैं जिन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया और आज उनकी कक्षाएँ डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध हैं। वाराणसी की नीलम सिंह ऐसी ही शिक्षिका हैं जिनके हिन्दी भाषा व साहित्य से जुड़े शैक्षणिक वीडियो ऑनलाइन उपलब्ध हैं। शुभजिता क्लासरूम में आप बच्चे पढ़ते रहे हैं तो इस बार की ओजस्विनी नीलम सिंह से शुभजिता की एक मुलाकात आपके लिए

प्र. ऑनलाइन शिक्षा के बारे में आपके क्या विचार हैं?

ऑनलाइन शिक्षा आधुनिक तकनीक है।एक समय था जब हम ऑनलाइन शिक्षा के बारे में कहानियों में पढ़ते थे। कभी सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी हमें इस दौर से गुजरना पड़ेगा। कहानियों एवं किस्सों की बातें यथार्थ धरातल पर उतर जाएंगी। परिवर्तन प्रकृति का नियम है हमें यह प्रकृति हर कदम पर नई चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार करती है। ऑनलाइन शिक्षा भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है जिसने प्रत्येक शिक्षक को आधुनिक तकनीक से जोड़ा है तथा उसे बच्चों तक पहुंचने का एक सफल माध्यम दिया है। हमें इसे एक नई चुनौती के तौर पर लेना चाहिए तथा सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए इसका उपयोग शिक्षा के शिक्षा के आदान-प्रदान के लिए करना चाहिए।

प्र.  कोरोना काल ने शिक्षकों को किस तरह प्रभावित किया?

करोना काल ने ना केवल शिक्षकों बल्कि उन सभी लोगों को प्रभावित किया है जो नौकरी पेशा है। आप प्रवासी मजदूरों को देख लीजिए या किसी फैक्ट्री और कंपनी में काम करने वाले लोगों को देख लीजिए किसी न किसी हद तक सभी लोग इसकी चपेट में आए हैं। छोटी मोटी दुकान या फिर सड़क के किनारे खोमचे लगाने वाले ,सब्जियां बेचने वाले, जो रोज कुआं खोदते थे और पानी पीते थे, रिक्शा चालक हो या फिर ऑटो रिक्शा चालक हो सभी इससे प्रभावित हुए हैं जहां तक शिक्षकों की बात है,कोरोना ने शिक्षकों की शिक्षण शैली को जहां एक तरफ विस्तृत किया है वही दूसरी तरफ निजी विद्यालयों में शिक्षण करने वाले शिक्षकों के आर्थिक स्थिति को कमजोर किया है ।इसके पीछे कारण है कि अभिभावक ऑनलाइन शिक्षा को उतनी महत्ता नहीं दे रहे हैं जितनी कि वे विद्यालय में दी गई शिक्षा को महत्व देते हैं । निजी विद्यालय बच्चों के अभिभावकों द्वारा दी गई मासिक शुल्क से चलता है किंतु ज्यादातर अभिभावक कोरोना काल में शुल्क देने से आनाकानी कर रहे हैैं। परिणाम यह है कि विद्यालय की आर्थिक व्यवस्था डगमगा रही है जिसके कारण विद्यालय में काम करने वाले कर्मचारी एवं शिक्षक समय पर अपना वेतन प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं जिससे उनकी जीवन शैली प्रभावित हो रही है। मेरी अभिभावकों से प्रार्थना है कि इस विषम परिस्थिति में जिस प्रकार वे अपनी प्रत्येक जरूरत पूरी कर रहे हैं उसी प्रकार बच्चों की फीस भी यदि समय पर जमा करें तो इस समस्या का निराकरण कुछ हद तक हो सकता है।

प्र.   आज व्याकरण पर जोर क्यों नहीं दिया जा रहा?

भाषा और व्याकरण का संबंध अटूट है। प्रत्येक भाषा का अपना एक व्याकरण होता है। ऐसा नहीं है कि भाषा सिखाते समय व्याकरण पर जोर नहीं दिया जाता। लेकिन कभी कभी देखा जाता है कि रोजगार की तलाश में कुछ लोग भाषा का शिक्षक ना होते हुए भी विद्यालय में यह कह कर नौकरी पा जाते हैं कि अमुक भाषा को वह आसानी से पढ़ा लेंगे किंतु उस भाषा विशेष में दक्षता ना होने के कारण वे कहानी ,कविता आदि पढ़ाकर कोर्स तो पूरा कर देते हैं किंतु जब व्याकरण की बात आती है तब वे डगमगा जाते हैं तथा येन केन प्रकारेण कोर्स को भगाते हैं। छात्रों को व्याकरण की जड़ तक नहीं ले जा पाते जिससे प्राथमिक विद्यालय से ही छात्रों की नीव कमजोर होती जाती है और अंततः वे व्याकरण गत अशुद्धियां अंत तक करते रहते हैं तथा धीरे धीरे भाषा से दूर होते जाते हैं। अतः विद्यालय को चाहिए कि शिक्षकों का चयन करते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि जिस प्रकार वे गणित विज्ञान आदि पढ़ाने के लिए उस विषय में पारंगत शिक्षकों का चयन करते हैं उसी प्रकार भाषा के शिक्षक का चयन करते समय भी पारंगत शिक्षकों का ही चयन करें।

प्र.  हिन्दी को रोजगार से किस तरह जोड़ा जाये?

देखिए, जहां तक हिंदी को रोजगार से जोड़ने की बात है मैं मानती हूं कि हिंदी स्वयं अपने आप में रोजगार परक भाषा है । दूरदर्शन पर अपनी नज़र घुमाइए,फिल्म जगत पर अपनी नज़र घुमाइए, बाजारों में घुमकर जरा लोगों की लेन -देन की बातें सुनिए आपको समझ में आ जाएगा कि हमारी उन्नति की बुनियाद क्या है? विदेशों से लोग हमारे देश‌ में आ रहे हैं, हमारी भाषा सीख रहे हैं,धन कमा रहे हैैं और एक हम हैं जो अंग्रेजी का मुलम्मा चढ़ाएं घुम रहे हैं। दुख होता है मुझे जब मैं लोगों को यह कहते हुए सुनती हूं कि ‘अरे हिंदी पढ़ कर क्या होगा’ मैं पूछती हूँ हिंदी पढ़ कर क्या नहीं होगा?  दूसरे की माता को इज्जत देने का अर्थ यह तो नहीं होता कि हम अपनी मां को ही दरकिनार कर दे।
हिंदी हमारी मां है आत्मा भी व्यक्ति का जो सुख इसमें है वह अन्य किसी भाषा में नहीं और रही रोजगार की बात तो जब आप अपनी मां को आगे ही बढ़ाना नहीं चाहेंगे उसे आधुनिक तकनीक से जोड़ना ही नहीं चाहेंगे दूसरे की मां की तरफ भाग लेंगे तो वह मैली कुचैली तो होगी ही।

प्र.  अपनी संघर्ष यात्रा के बारे में बताइये?

जब भी मुझसे कोई मेरी संघर्ष यात्रा के बारे में पूछता है तो मुझे जयशंकर प्रसाद की यह पंक्तियां याद आ जाती है…..…. सुनकर क्या तुम भला करोगे ,मेरी भोली आत्मकथा। अभी समय भी नहीं थकी सोई है मेरी मौन व्यथा ।

प्र.  क्या आप मानती हैं की साहित्य में स्त्रियों को दरकिनार किया गया? अगर हाँ, तो उनको सामने कैसे लाया जाय?

दरकिनार तो स्त्रियों को हर जगह ही किया गया है फिर साहित्य उससे अछूता कैसे रह सकता है। किंतु हम स्त्रियों को भी हठी कहा गया है हम हर क्षेत्र में अपना अपना श्रेष्ठ देने में कभी भी पीछे नहीं रहीं। समय-समय पर महादेवी वर्मा, मैत्रेयी पुष्पा, सुभद्रा कुमारी चौहान तथा आप जैसी कई लेखिकाओं एवं कवयित्रियों ने अपनी लेखनी से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। हम तथा आप जैसे लोग हैं नई पीढ़ी को मौका देकर उन्हें इस परिपाटी से जोड़कर इसे और सुदृढ़ बना सकते हैं।

प्र.  आपका सन्देश क्या होगा?

मेरा संदेश सभी विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए है कि माना कि परिस्थितियां विषम परिस्थितियां विषम है किंतु इस विषम परिस्थिति में भी हमें धैर्य से काम लेना है तथा अपने आप को और अधिक ऊर्जावान बनाए रखते हुए इसका सामना करना है तथा निखर कर सामने आना है। न केवल आत्म निर्भर सामान लेने देने के मामले में बनना है बल्कि अपनी भाषा को सम्मान देकर उसे ऊपर लाकर भी आत्मनिर्भर बनना है।

शुभजिता

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