फिल्में रिलीज होने के साथ सिर्फ कहानी, वीएफएक्स या फिर स्टार्स ही चर्चा में नहीं आते. आजकल एक शब्द काफी चलन में है, वो है- कॉरपोरेट बुकिंग. कभी ना कभी ये शब्द आपके कानों के पर्दे को छूते हुए जरूर गुजरा होगा।
दिसंबर 2023 में जब रणबीर कपूर की फिल्म ‘एनिमल’ रिलीज हुई तो उस समय भी ये शब्द सुर्खियों में आया था। फिल्म के निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा के भाई और को-प्रोड्यूसर प्रणय रेड्डी वांगा ने आईड्रीम मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था- “फिल्म की कमाई के जो आंकड़े हमने जारी किए हैं, वो बिल्कुल सटीक हैं। आजकल लोग बॉक्स ऑफिस नंबर्स पर शक करते हैं, क्योंकि आजकल बॉलीवुड में कॉरपोरेट बुकिंग पर निर्भर होने का ट्रेंड है। हमने ऐसा नहीं किया है।”
22 दिसंबर 2023 को थिएटर्स में प्रभास की फिल्म ‘सलार’ आती है. रिलीज के अगले ही दिन सोशल मीडिया पर इस फिल्म के खिलाफ ‘Scammer Salaar’ नाम का एक हैशटैग ट्रेंड करने लगता है। नेटिजंस ऐसा दावा करते हैं कि फिल्म के कलेक्शन को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने के लिए मेकर्स ने कॉरपोरेट बुकिंग की है। इतना ही नहीं, ऐसा भी दावा होता है कि बिहार के बक्सर के ‘कृष्णा सिनेमहॉल’ में सुबह 6 और 7 बजे के शोज हाउसफुल दिखाए जाते हैं, जबकि ये हॉल 6 साल पहले ही बंद हो चुका है। उस समय इस तरह की भी बातें होती हैं कि ‘बुकमाय शो’ पर इस फिल्म के मॉर्निंग शो भरे हुए दिखाए गए, लेकिन जितने बजे का शो था उस समय सारे मॉल बंद थे। पिंकविला की एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2022 में एक एक्शन फिल्म रिलीज होती है. रिलीज से पहले ये आंकड़ा सामने आता है कि टॉप नेशनल चेन की एडवांस बुकिंग में फिल्म ने 90 हजार टिकट बेच डाले हैं जबकि वो फिल्म ओपनिंग डे पर सिर्फ 6.50 करोड़ की ही कमाई कर पाती है। हालांकि, अगर किसी फिल्म के 90 हजार टिकट बिकते हैं तो ऐसा माना जाता है कि वो पिक्चर कम से कम 15 करोड़ तो जरूर कमाएगी, जोकि हुआ नहीं था। ये कोई इकलौता मामला नहीं है. आए दिन किसी न किसी फिल्म पर कॉरपोरेट बुकिंग के आरोप लगते रहते हैं. अब चलिए यहां पर समझ लेते हैं कि आखिर ये कॉरपोरेट बुकिंग है क्या और ये काम कैसे करती है –
कॉरपोरेट बुकिंग का खेल – आज कल रिलीज हो रही सभी फिल्मों के बीच हिट-सुपरहिट और ब्लॉकबस्टर होने की होड़ मची हुई है लेकिन अच्छा कलेक्शन सिर्फ वो ही फिल्में कर पाती हैं, जिसे लोग पसंद करते हैं। जिस पिक्चर को लोग नकार देते हैं उसकी कमाई में गिरावट आ जाती है. लेकिन हिट होने की इस रेस में कुछ फिल्मों के मेकर्स द्वारा खुद ही बुकिंग करवा ली जाती है, जिससे कमाई के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। ऐसे में होता क्या है कि जब हम ऑनलाइन टिकट बुक करते हैं तो हमें ये दिखाया जाता है कि शोज हाउसफुल हैं, लेकिन जब आप थिएटर्स पहुंचते हैं तो वहां का नजारा कुछ और ही होता है। गिने-चुने लोग ही बैठे होते हैं. ये बुकिंग बड़े पैमाने पर कई बड़ों शहरों में की जाती हैं। फिल्ममेकर्स ऐसा करके बॉक्स ऑफिस पर खुद को जीत तो दिला देते हैं और ऐसी चर्चा होनी शुरू हो जाती है कि इस फिल्म ने 100 करोड़, 200 करोड़ या 1000 करोड़ कमा डाले, लेकिन हकीकत में मेकर्स को इससे पैसे के मामले में कुछ फायदा होता नहीं है. क्योंकि वो खुद ही टिकट बुक करवाते हैं और वो पैसा अपने घर में ही घूम-फिरकर वापस आ जाता है।
फिल्म ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा ने एफएम कनाडा को कुछ समय पहले दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि एनिमल इकलौती ऐसी फिल्म है, जिसके बारे में उन्होंने जरा सा ये भी नहीं सुना कि इस फिल्म के पास कॉरपोरेट बुकिंग से पैसा आ रहा हो. उन्होंने कहा था कि ये एक ऐसी फिल्म है, जिसने अपनी मेरिट पर कमाई की है और कमाई के जो आंकड़े सामने आए हैं वो सटीक हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि- “कुछ और बड़ी फिल्में हैं जो मेरिट से ब्लॉकबस्टर हैं, लेकिन उसे और भी बड़ा ब्लॉकबस्टर साबित करने के लिए उस फिल्म के प्रोड्यूसर या हीरो कॉरपोरेट बुकिंग के नाम पर पैसे फाड़ते हैं और जो लोग बोलते हैं कि ‘बुकमाय शो’ पर फुल दिखा रहा है, लेकिन अंदर जाकर देखा तो 10 लोग बैठे हैं. ऐसा इसलिए ही होता है।”
मेकर्स को फायदा भी और नुकसान भी – कॉरपोरेट बुकिंग से जहां मेकर्स को अपनी फिल्म को बड़ा दिखाने में फायदा होता है तो वहीं दूसरी तरफ उनको भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है। इसको समझने के लि एक उदाहरण लेते हैं- मान लीजिए अगर कोई हीरो या फिर प्रोड्यूसर 8 करोड़ रुपये के टिकट खरीदता है, तो उसके बाद रिकॉर्ड में ये तो जाता है कि इस फिल्म के इतने करोड़ रुपये के टिकट बिक गए हैं, लेकिन जब वो पैसा घूम-फिरकर उनके पास वापस आता है, तो पूरा नहीं आता है. क्योंकि फिल्म ने जितने के भी टिकट बेचे हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा एक्जीबिटर्स के पास चला जाता है।