शिक्षण संस्थान – खुदीराम बोस सेन्ट्रल कॉलेज
प्रतियोगिता – विषय आधारित लेखन
विधा – कविता
गुरू नानक की किशोरावस्था…

पढ़ा बहुत कुछ
गुरू नानक के बारे में,
पर लिखूँ क्या?
अब वही लिखती हूँ,
जो मैंने पढ़कर समझा है।
जन्म हुआ रावी तट पर
गुरू नानक का
और अपनी निष्ठा के बल पर
बन गए एक महान संत ।
कहते हैं गुरू नानक
हो कोई भी क्षेत्र
भौतिक अथवा आध्यात्मिक
उन्नति के लिए
सब में निष्ठा के साथ
आवश्यकता हैं ,
लगन और एकाग्रता का भी ।
किशोरावस्था में ही लग गए
गुरू नानक ने
अपनी जीवन पूर्ति के लिए,
किशोरावस्था में खेल भी
खेला करते थे,
लेकिन खेलते थे
वे सभी से अलग,
जहाँ खेलते थे सभी लड़के
गुल्ली-डंडा, बल्ला, कबड्डी,
वहाँ वह खेलते थे
भगवान की पूजा।
करते थे उपासना
और बाँटते थे प्रसाद।
होता था उन्हें बहुत दुःख
जब पड़ जाता था
उनके खेल में विघ्न,
तब वह न कहते कुछ भी किसी को
तथापि गम्भीर होते
हो जाते थे मौन
पूछते कारण जब उनके पिता
उत्तर न देते वो कुछ भी,
वैद्य बुलाकर पूछताछ करवाया
असर न हुआ कुछ भी
गुरू नानक पर ।
कुछ क्षण में खूब-ब-खूब
कहने लगे गुरू नानक,
अब मेरा उपचार वही करेंगे
जिनकी वज़ह से हुई
मेरी यह हालत,
समझ गए गुरू नानक के पिता
उनकी भावनाओं को ।
आरम्भ हुआ गुरू नानक का
पाठशाला जाना ,
पढ़ाना शुरू किया ,
उनके अध्यापक ने उन्हें
“अ” शब्द ।
कहने लगे गुरू नानक ने
अध्यापक को होता हैं
“अ” शब्द रूप भगवान का,
समझाने लगे गुरू नानक को
अध्यापक
बिन पढ़े विद्या ? तुम बनोगें
कैसे ज्ञानी…
गुरू नानक कहने लगे
अध्यापक को
आप दें मुझे ऐसी शिक्षा
जहाँ मिले मुझे
परमात्मा का ज्ञान और दर्शन ।
पुनः समझाने लगें
अध्यापक
बिन पढ़े खा-कमा की जरूरत
कैसे सिखोगें ,
गुरू नानक का कहना हैं
इसकी आवश्यकता क्यों हैं,
मुझे पढ़नी है केवल वह विद्या
जहाँ मिले मुझे
परमात्मा के मूल तत्व।
पढ़ कर बन गए
गुरू नानक एक महान संत,
पढ़ कर बन गए
गुरू नानक एक महान संत ।।