श्री शिक्षायतन कॉलेज से कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रोफेसर और रजिस्ट्रार और उसके बाद सम्प्रति वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन की उपकुलपति प्रोफेसर सोमा बंद्योपाध्याय का सफर बहुत ही प्रेरक और उम्मीद जगाने वाला रहा है। हाल ही में टोरंटो, कनाडा से अतिशीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक भारती संस्थान की त्रैमासिक अन्तराष्ट्रीय शोध-पत्रिका ‘रिसर्च-ई-जर्नल’ एवं साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य सौरभ’ के सम्पादक मंडल में स्थान प्रदान किया गया। कवियत्री, कथाकार अनुवादक व सम्प्रति वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन की कुलपति प्रोफेसर सोमा बंद्योपाध्याय से अपराजिता ने खास बातचीत की, पेश हैं प्रमुख अंश –
प्र. स्त्री लेखन के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
कोई भी लेखन, जिसका समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़े, अच्छा है, यही बात स्त्री लेखन पर भी लागू होती है। कई बार मैंने देखा है कि लोकप्रियता के लिए नकारात्मकता को विषय बनाया जाता है। नकारात्मकता से मुझे भी परहेज है। मेरा मानना है कि अगर आप गम्भीर समस्याओं को उठाते भी हैं तो उसे एक सकारात्मक दिशा देकर छोड़ें, स्त्री लेखिकाओं के अनुभव को लेकर भी यही कहना चाहूँगी।
प्र. आप एक अनुवादक भी हैं। आज के साहित्य में अनुवाद का महत्व क्या है?
मैं साहित्यिक अनुवाद की बात करूँ तो अपने निजी अनुभव के आधार पर कहूँ तो यह एक सामान्य धारणा है कि अनुवाद का मतलब कृति को एक भाषा से दूसरी भाषा में पढ़ना भर है। मेरी नजर में अनुवाद इससे कहीं ज्यादा है। साहित्यिक अनुवाद से दूसरी भाषाओं के साहित्य के साथ उनकी संस्कृति, साहित्य, परिवेश, भूगोल, इतिहास और नृतत्व की जानकारी मिलती है, उनका अध्ययन होता है और यह आपसी दूरी तय करने में भी सहायक है। भारत जैसे बहुभाषी देश में एकता, अखंडता को बनाए रखने वाला अस्त्र है अनुवाद। अनुवाद दो प्रदेशों के बीच की हर सीमा और अविश्वास को पार कर सकता है।
प्र. प्रशासनिक दायित्वों के बीच साहित्य कर्म कैसे निभाती हैं?
सारी चीजें इसलिए हो जाती हैं क्योंकि मेरा सोच सकारात्मक है और ऐसे ही सकारात्क लोग मुझे मिले हैं। परिवार से लेकर सहकर्मियों और शुभचिन्तकों का सहयोग हमेशा से मिलता रहा है तो सब हो जाता है।
प्र. शिक्षिका होने के नाते शिक्षा और छात्रों को लेकर क्या कहेंगी?
शिक्षक होने का मतलब पाठ्यक्रम समाप्त करना भर नहीं है बल्कि विद्यार्थियों को प्रेरित करना है, उनकी प्रतिभा को सामने लाना है। सार्थक शिक्षक वही है जो विद्यार्थियों को प्रेरित करे और उनकी प्रतिभा को सामने लाये।
प्र. पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगी?
सकारात्मक सोच रखें, सब सकारात्मक होगा।