वैज्ञानिक उत्पन्न कर रहे  डेंगू-प्रतिरोधी मच्छर, हुआ 9 देशों में परीक्षण 

डेढ़ लाख संक्रमित मच्छरों को छोड़ा
दक्षिण-पूर्व एशिया में डेंगू से 1800 लोग मारे गए- डब्ल्यूएचओ

हनोई : वैज्ञानिकों का एक समूह मच्छर जनित बीमारियों में से एक डेंगू से निपटने इस साल दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, म्यांमार और कंबोडिया में डेंगू के काके लिए डेंगू-प्रतिरोधी मच्छर पैदा करने के लिए शोध कर रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि इस बीमारी से अब निपटा जा सकेगा। इसके लिए 9 देशों में परीक्षण भी किया गया है, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। मच्छर जैसी बीमारियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक वर्ल्ड मॉस्क्विटो प्रोग्राम (डब्ल्यूएमपी) के तहत काम कर रहे हैं। नर और मादा एडीज (डेंगू फैलाने वाले) मच्छरों को जंगल में छोड़े जाने से पहले रोग प्रतिरोधी बैक्टीरिया वोल्बाचिया से संक्रमित किया जाता है। कुछ ही हफ्तों में बेबी मच्छर वोल्बाचिया बैक्टीरिया के साथ जन्म लेते हैं, जो रोग प्रतिरोधक के रूप में काम करता है। इससे न केवल डेंगू, बल्कि जाइका, चिकनगुनिया और पीले बुखार जैसी बीमारियों से बचा जा सकेगा।
पहली बार उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में इसका परीक्षण किया गया। वियतनाम में डब्ल्यूएमपी के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, गुएन बिन्ह गुयेन ने बताया कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाले मच्छरों को छोड़ने के बाद डेंगू के मामलों में कमी देखी गई। गुएन की टीम ने दक्षिणी वियतनाम के डेंगू पीड़ित जिले विन्ह लुओंग में करीब डेढ़ लाख वोल्बाचिया-संक्रमित मच्छरों को छोड़ा। विन्ह लुओंग में डेंगू के मामले में 86% की कमी आई। इस खोज को लेकर एक महिला ने कहा कि यह मेरे लिए राहत की खबर है। 2016 में मेरे दो बच्चों को डेंगू हुआ था। अब मैं 70 से 80% तक सुरक्षित महसूस करती हूं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल दक्षिण-पूर्व एशिया से डेंगू के करीब 6 लाख 70 हजार मामले सामने आए। इसमें 1800 लोग मारे गए। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल स्थिति बेहद खराब थी। डेंगू का एक मुख्य कारण गर्म तापमान है। दुनियाभर में जुलाई काफी गर्म रहा। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर राचेल लोवे के मुताबिक, गर्म मौसम डेंगू के लिए उपयुक्त होता है। वैज्ञानिकों ने 1920 में वोल्बाचिया बैक्टीरिया को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ड्रेनेज सिस्टम में रहने वाले मच्छरों से खोजा था। सिंगापुर और मलेशिया में अभी केवल नर मच्छरों पर वोल्बाचिया बैक्टीरिया का प्रयोग किया जा रहा है।

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