“यह भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज है। इसका जन्म हो चुका है। हिन्दुस्तान के युवा वीर सपूतों के रक्त से यह पहले ही पवित्र हो चुका है। यहाँ उपस्थित सभी महानुभावों से मेरा निवेदन है कि सब खड़े होकर हिन्दुस्तान की आजादी के इस ध्वज की वंदना करें।” यह भावुक अपील 1907 ई. में स्टुटगार्ड (जर्मनी) में ‘अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद सम्मेलन’ में मैडम कामा ने तिरंगा झण्डा फहराते समय की। अपील का असर इतना था कि वहां मौजूद सभी लोग खड़े होकर ताली बजाने लगे थे। भीखाजी जी रूस्तम कामा अथवा मैडम कामा का नाम भारतीय इतिहास में अमर है। जब-जब भारत की आजादी की गाथाएं गाई जाएंगी तब-तब भीखाजी जी कामा का नाम आएगा। वैसे तो भीखाजी जी रूस्तम कामा भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं लेकिन भारत की आजादी में उनका योगदान किसी भारतीय से कम नही था। दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर भारत के स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने का कार्य भीखाजी जी रूस्तम कामा ने किया।
मैडम कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में 22 अगस्त 1907 में सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय तिरंगा फहराया। उन्होंने इस तिरंगे में भारत के विभिन्न समुदायों इत्यादी को दर्शाया था। उनका तिरंगा आज के तिरंगे जैसा नहीं था। भीखाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे। भीखाजी का विवाह 1885 में एक पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ था।
अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया
देश-दुनिया में भारत की आजादी के लिए समर्थन जुटाने में भीखाजी कामा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई। वर्ष 1906 में उन्होंने लन्दन में रहना शुरू किया जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई।
लंदन में रहते हुए वह दादाभाई नौरोजी की निची सचिव भी थीं। दादाभाई नोरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब वो हॉलैंड में थी, उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएं प्रकाशित करायी थी और उनको लोगों तक पहुंचाया भी। वे जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी पर फ्रांस की सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था। इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीखाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे, जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात् महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी तथा असंगत कहते थे।
भारत के ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया
भीखाजी ने वर्ष 1905 में अपने सहयोगियों विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से भारत के ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया। भीखाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। यह अब के तिरेंगे से बिल्कुल अलग था। भीखाजी कामा द्वारा तैयार किए गए झंडे में इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में ̔’वंदे मातरम’ लिखा हुआ था।
आजादी की लड़ाई के साथ-साथ भीका जी ने लिंग समानता के लिए भी कार्य किया था। भीखाजी कमा का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाता है। उनके सम्मान में भारत में कई स्थानों और गलियों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 26 जनवरी 1962 में भारतीय डाक ने उनके समर्पण और योगदान के लिए उनके नाम का डाक टिकट जारी किया था।
भारतीय तटरक्षक सेना में जहाजों का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था। देश की सेवा और स्वतंत्रता के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाली इस महान महिला की मृत्यु 1936 में मुम्बई के पारसी जनरल अस्पताल में हुई और उनके शब्द थे, ‘वंदे मातरम ।