जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित उपन्यास ‘तितली’ सामाजिक पृष्टभूमि पर लिखा गया हैं। यह 1934 ई. में प्रकाशित हुआ था। ‘तितली’ आजादी के पहले एक गाँव के परिवेश पर आधारित नायिका प्रधान उपन्यास हैं, एक नवयुवती जो तमाम मुसीबतों से अकेले लड़ते हुए सफल होती हैं। यह महुआ के जीवन के अतिरिक्त इंद्रदेव और उसके परिवार की कथा है जिसमें एक धनी परिवार की पारिवारिक समस्याएं अंकित हैं। कथानक के आगे बढ़ने पर कलकत्ता आदि महानगरों के छाया संकेत भी मिल जाते हैं। ‘तितली’ उपन्यास में प्रसाद की स्त्रीवादी दृष्टिकोण उभरकर सामने आता है। इसमें मूर्तिमान नारीत्व, आदर्श भारतीय पत्नीत्व जागृत हुआ है। तितली प्रसाद की वह नारी पात्र है जिसमें स्वाभिमान का भाव है। उसके पति मधुबन को सजा हो जाने पर एवं उसके पूर्वजों का शेरकोट से बेदखल हो जाने पर तथा बनजरिया पर लगान लग जाने पर, इतनी दुरावस्था मेें भी वह किसी से सहायता की भीख नही माँगती बल्कि वह खुद मेहनत करके लड़कियों की पाठशाला चलाती है और अपने पुत्र को पालती है। अपनी दुरावस्था में अपने ही अवलम्ब पर वह स्वाभिमानपूर्वक जीना चाहती है।
इसमें मुख्य रूप से ग्राम्य जीवन के चित्र और समस्याओं का समावेश किया गया हैं। मिटती हुई सामन्तवादी प्रथा की सूचना ‘तितली’ में मिलती हैं। महाजनों का शोषण, महंतो का पाखंड इसमें अंकित हैं। ‘गोदान’ जैसी विशाल आधारभूमि ‘तितली’ को नहीं प्राप्त हो सकी, पर समस्याएं उसी तरह की हैं। शैला रामनाथ से तर्क करती है और अंत में भारतीय संस्कृति की उच्चता स्वीकार कर लेती हैं। बाबा रामनाथ भारतीय उदार मानवीयता के प्रतिनिधि पात्र हैं, जिन्हें कृषि परंपरा का आधुनिक प्रतीक कहा जायेगा।
साहित्य को नई दिशा देने वाले जयशंकर प्रसाद की अनुपम कृति ‘तितली’ जीवन के गूढ़ रहस्य की बातों-बातों में ही समझा देती हैं। इसकी कथा के माध्यम से प्रसाद जी ने समाज में फैली अनेक भ्रांतियों को भी उजागर किया हैं।खेती के लिए थोड़ी-सी जमीन और हल-बैल के साथ ही गाँव में रहने वाले मजदूरों और किसानों के लिए बैंक, अस्पताल और स्कूल जैसी मूलभूत जरूरतों की पूर्ति की ओर भी शासकों का ध्यान वे इस उपन्यास में आकर्षित करते हैं। इसमें अपने समय का समाज पूरी ईमानदारी से उजागर हुआ हैं। पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि सुख-सुविधाओं की लूट के मामले में वह आज के समाज से तनिक भी कम नहीं था।
इसमें यह दिखाया गया है कि स्त्री-पुरुष तो अलग-अलग मिट्टी के बने हैं। जहाँ पुरुष छल,बल,दल से अपनी बात मनवाने का प्रयास करते हैं, वही स्त्री अपने कोमल मन में केवल प्रेम को तलाशती हैं। वह प्रेम जो ताकत भी है और कमजोरी भी।वह प्रेम जिसके लिए वह जीती है और जिसके लिए वह मर भी जाना चाहती हैं। वह प्रेम जिसका एक सपना पूर्ण करने के लिए वह जीवन भर संघर्ष करती हैं। लेकिन एक और बात भी है जो स्त्री को पुरूष से भिन्न करती हैं।जहाँ पुरुष समस्याओं से घिर जाने पर और दवाब में या तो उत्पाती हो जाता है या टूट कर बिखर जाता हैं। वही स्त्री कठिन से कठिन परिस्थितियों में अधिक दृढ़ होकर खड़ी रहकर परिवार का सहारा बनती हैं।
इस प्रकार ‘तितली’ प्रसाद की वह नारी पात्र है जिसमें आत्मबल प्रबल है, जो अपने पति से विरहित होकर भी विचलित नहीं होती बल्कि विषम परिस्थितियों को झेलती हुई समाज में सगर्व मस्तक उठाये अपने लिए सम्मानित स्थान बनाती है, जो तत्कालीन समाज में अत्यंत कठिन था परंतु प्रसाद ने इसे कर दिखाया। यह एक बेहद रोचक उपन्यास है जिसे पढ़ना हृदय को कभी दुःखी करता है कभी आनंदित। भारतीय समाज की एक बीते हुए युग की विवेचना करती हुई यह पुस्तक शुरू से अंत तक पाठक को बांधे रखती हैं। इसको जयशंकर प्रसाद की उत्कृष्ट रचना माना जा सकता है यह हिम्मत, समर्पण, मित्रता, भाईचारे का, प्रेम का, प्रेम की पीड़ा का, विरह का उपन्यास हैं।
प्रतिभागी- निभा सिंह
प्रतियोगिता का नाम- समीक्षा लेखन
मातृभाषा- हिंदी
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