शत-शत नमन तुमको, हे वसुंधरा।
तुमसे ही हैं ये जीव सारे ओ धरा।
तुमने ही जीवनदान है सबको दिया।
सुख-भाग सबको बाँटती हो ओ धरा।
सुख और दुख समरूप से हो झेेलती।
उर में छिपा लेती हो निज दुख ओ धरा।
सबको तुम्हीं हो बाँटती अमृत-सुधा,
पर मिला तुमको गरल-विष ओ धरा।
उफ़ न करती तुम रही हँसती सदा।
जग ने कहाँ समझा है तुमको ओ धरा।