माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी, गुरुवार को ये तिथि पड़ रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास के गुप्त नवरात्र के दौरान इस दिन देवी सरस्वती प्रकट हुईं। तब देवताओं ने उनकी स्तुति की। स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग बना। फिर सृष्टि में पेड़-पौधे और जीव बनें। इसके बाद उत्सव शुरू हुआ। इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
सरस्वती पूजा का महत्व
नवरात्रि में जिस तरह देवी पूजा होती है ठीक उसी तरह इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों में सरस्वती पूजा एवं अर्चना की जाती है। सरस्वती माता, कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग व विद्यार्थी सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कलम की पूजा करते हैं। संगीतकार इस दिन वाद्य यंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका और रंगों की पूजा करते हैं।
पृथ्वी पर ऐसे प्रकट हुईं ज्ञान की देवी
मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर छह भुजाओं वाली शक्ति रूप स्त्री प्रकट हुईं, जिनके हाथों में पुस्तक, पुष्प, कमंडल, वीणा और माला थी। जैसे ही देवी ने वीणा वादन किया, चारों ओर वेद मंत्र गूंज उठे। ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे और वसंत पंचमी उत्सव शुरू हुआ।
वसंत राग से है इस पर्व का संबंध
संगीत दामोदर ग्रंथ के अनुसार वसंत राग श्री पंचमी से प्रारंभ होकर हरिशयनी एकादशी तक गाया जाता है। श्री पंचमी से वसंत राग के गायन की शुरुआत होती थी। इस कारण लोक में धीरे-धीरे यह तिथि वसंत पंचमी के नाम से विख्यात हो गई। एक माह बाद आने वाली वसंत ऋतु में फसलें पकने लगती हैं, फूलों का सौंदर्य पृथ्वी की सुंदरता बढ़ाता है इसलिए ऊर्जा के परिचायक पीले रंग की प्रधानता वसंत पंचमी पर्व से शुरू हो जाती है।
श्री पंचमी और वागीश्वरी जयंती भी कहते हैं
शास्त्रों में इस पर्व का उल्लेख श्री पंचमी एवं वागीश्वरी जयंती के रूप में भी प्राप्त होता है। जनमानस में धारणा व्याप्त है कि वसंत पंचमी से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जबकि जब मीन एवं मेष राशि में सूर्य रहते हैं तब वसंत पंचमी के एक माह बाद वसंत ऋतु आती है। वसंत पंचमी पर्व पर पीले रंग के कपड़े पहनने और पीला भोजन करने का महत्व होता है।
पीले फूलों से होती है देवी की पूजा
1. सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर, पूजा घर में रखें। इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा कर माता सरस्वती की पूजा करें।
2. पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं। सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं। इस दिन सरस्वती माता को केसरिया भात एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है।
3. देवी सरस्वती सफेद कपड़े धारण करती हैं अतः उनकी प्रतिमा को श्वेत वस्त्र पहनाएं।
4. मां शारदा के साथ कन्याओं का पूजन भी इस दिन करें। पीले रंग के वस्त्र आदि जरूरतमंदों को दान करने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख -शांति की वृद्धि होती है।
5. इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है।
(साभार – दैनिक भास्कर)