
प्रेमचंद को हिंदी उपन्यास का प्रवर्तक माना जाता है । उनके पूर्व हिंदी उपन्यास की कोई मौलिक स्थिति नहीं थी। प्रेमचंद के पूर्व के उपन्यास साहित्य जासूसी तिलस्मी ऐय्आरी और काल्पनिक रोमांस से युक्त होने के कारण मानव के यथार्थ जीवन से बहुत दूर थे। आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने कहा था कि जब हिंदी में नवीन सामाजिक चेतना का विकास नहीं हुआ था प्रेमचंद उपन्यास के इस निर्माण और अनुवाद के प्रांरंभिक युग को पार करते हुए हिंदी उपन्यासों के उस युग में पहुंचने वाले पहले साहित्यकार थे जिन्होंने उसका शिलान्यास किया और हिंदी उपन्यास एक सुनिश्चत कलास्वरूप को प्राप्त कर अपनी आत्मा को पहचान सका तथा अपने उद्देश्य से परिचित होकर उसकी पूर्ति में लग सका।
प्रेमचंद जी उपन्यास साहित्य में युगांतर लेकर अवतरित हुए। प्रेमचंद के परवर्ती उपन्यासकारों ने किसी न किसी रूप में प्रेमचंद जी का अनुकरण किया। आज हिंदी उपन्यास साहित्य विकसित होकर पुष्ट हो चुका है। उसमें शैली – शिल्प और विषयवस्तु की दृष्टि से नए- नए प्रयोग हुए हैं और असंख्य उपन्यास लिखे गए लेकिन प्रेमचंद जैसा युगदृष्टा उपन्यासकार उत्पन्न नहीं हुआ ।
सेवासदन 1911 में लाहौर से उर्दू में जश्ने बाजार नाम से दो भागों में प्रकाशित हुआ था बाद में 1913 में महावीर प्रसाद पोद्दार जी की प्रेरणा से हिंदी में सेवासदन का प्रकाशन हुआ।
सेवासदन समाज का यथार्थ रूप से चित्रण करने वाला सामाजिक उपन्यास है। इसमें समाज की विभिन्न जातियों विचार पद्धतियों मान्यताओं एवं मर्यादाओं का पूर्ण रूप से चित्रण मिलता है। इसमें पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं का बड़ा ही स्वाभाविक वर्णन है। समाज में व्याप्त विपन्नता रिश्वतखोरी दहेज प्रथा अनमेल विवाह नारी जीवन की समस्याएं और समाज के तथाकथित सम्मनित लोगों की यथार्थ मानसिकता को दर्शाया गया है।
सेवासदन उपन्यास की नारी पात्री सुमन है जिसके इर्द गिर्द उपन्यास कई घटनाओं को बुनता हुआ बढ़ता है और तत्कालीन समाज के सभी पहलुओं को एक एक करके सामने रखा गया है। सुमन शक्तिशाली चरित्र है जिसमें सौन्दर्य और सेवाभाव दोनों का समन्वय है। चंचल और युवा नायिका सुमन जिसमें एक ओर जहां मांसल सौन्दर्य है तो दूसरी ओर उसमें अत्यधिक अन्तर्दृष्टि भी है। वह अपने चित्त की निर्बलता को दूर करने में भी सक्षम है।
वेश्या बनी सुमन के प्रति समाजसेवी विट्ठलदास कहते हैं कि स्त्रियों को अगर ईश्वर सुंदरता दे तो धन भी दे ।
निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका ‘चाँद’ में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित है।
निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है।
निर्मला उपन्यास पूर्व शिल्प से मुक्त नहीं है ।स्वपन संवाद और लेखकीय टिप्पणी का प्रयोग है – – निर्मला स्वप्न में देखती है कि विवाह अधिक आयु के व्यक्ति के साथ होगा।
मुंशी तोताराम के स्वप्न में मंसाराम की मृत्यु होना ।
रुक्मिणी का कहना कि वह लौटकर फिर न आएगा।
निर्मला, मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जो दहेज प्रथा और अनमेल विवाह के दुष्परिणामों पर केंद्रित है। उपन्यास में, निर्मला नाम की एक युवती का विवाह उसके पिता की उम्र के एक अधेड़ व्यक्ति से हो जाता है, जिसके पहले से ही तीन बेटे हैं। दहेज की मांग और सामाजिक दबाव के कारण निर्मला का जीवन नारकीय हो जाता है। उपन्यास में, प्रेमचंद ने निर्मला के माध्यम से भारतीय समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति, दहेज प्रथा के अभिशाप और अनमेल विवाहों के कारण होने वाली पीड़ा को उजागर किया है। लेखक का मुख्य उद्देश्य इन सामाजिक कुरीतियों पर प्रकाश डालना और पाठकों को इनके प्रति जागरूक करना है।
कथा-सारांश: निर्मला, एक सुंदर और सुशील युवती है, जिसका विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति, तोताराम से होता है। तोताराम पहले से ही तीन बेटों का पिता है। निर्मला का जीवन ससुराल में कठिन हो जाता है। उसे दहेज की वजह से अपमान और अनादर का सामना करना पड़ता है। उसे अपने पति के बेटों से भी उपेक्षा मिलती है। निर्मला, अपने पति के प्रति समर्पित रहती है, लेकिन समाज उसे शक की नजर से देखता है। वह अपने कर्तव्यों का पालन करती है, लेकिन उसका जीवन पीड़ा और संघर्षों से भरा रहता है। अंततः, निर्मला बीमारी और मानसिक तनाव के कारण मृत्यु को प्राप्त होती है।
लेखक का प्रतिपाद्य: प्रेमचंद इस उपन्यास के माध्यम से दहेज प्रथा और अनमेल विवाह के खिलाफ आवाज उठाते हैं। वे दिखाते हैं कि कैसे ये सामाजिक बुराइयां महिलाओं के जीवन को नष्ट कर देती हैं। निर्मला के माध्यम से, प्रेमचंद ने भारतीय समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति, उनकी पीड़ा और संघर्षों को उजागर किया है। वह पाठकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि इन कुरीतियों को खत्म करना आवश्यक है। उपन्यास में, प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच और पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर भी प्रहार किया है। वह एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां महिलाओं को सम्मान मिले और वे बिना किसी भेदभाव के जी सकें।
संक्षेप में, “निर्मला” एक सामाजिक उपन्यास है जो दहेज प्रथा और अनमेल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालता है और महिलाओं के प्रति सहानुभूति और सम्मान की भावना जगाता है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास के माध्यम से पाठकों को इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करने और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रेरित किया है।