वरिष्ठ कवि मानिक बच्छावत का निधन

कोलकाता । कोलकाता के सुपरिचित वरिष्ठ कवि मानिक बच्छावत का निधन गत 12 अक्टूबर को  हो गया। 11 नवंबर 1938 को राजस्थान के बीकानेर में रहनेवाले कवि मानिक बच्छावत ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. की डिग्री हासिल की थी। मानिक बच्छावत की ख्याति एक संवेदनशील कवि के तौर पर हुई।वे कोलकाता की प्रसिद्ध संस्था सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संरक्षक थे। उनकी कविताएं एक ओर हमारी सभ्यता के निर्मम पहलुओं को उद्घाटित करती हुई हमारे समय के संपूर्ण अध:पतन और बर्बरता से मुठभेड़ करती हैं, दूसरी ओर अपने पाठक को ऐसे निष्कलंक लोक में ले जाती हैं, जहां एक अद्भुत जीवनी शक्ति और सौंदर्य है।उनकी काव्यात्मक संवेदनशीलता उनकी सजगता और समझदारी की ही नहीं, बुनियादी ईमानदारी की भी स्त्रोत है। उनके निधन पर वरिष्ठ आलोचक शंभुनाथ,कवि ध्रुवदेव पाषाण, रामनिवास द्विवेदी,मधु कांकरिया, जवरीमल पारख,मृत्युंजय श्रीवास्तव, प्रियंकर पालीवाल,मंजु श्रीवास्तव,लक्ष्मण केडिया, सेराज खान बातिश,राज्यवर्धन, महेश जायसवाल,कृष्ण श्रीवास्तव, अभिज्ञात,विनोद प्रकाश गुप्ता, आदित्य गिरी, विकास जायसवाल,मधु सिंह, सूर्यदेव राय आदि ने कहा कि मानिक बच्छावत का निधन एक अपूरणीय क्षति है। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं – नीम की छांह (1960), एक टुकड़ा आदमी (1967), भीड़ का जन्म (1972), रेत की नदी (1987), एक टुकरो मानुष (बांग्ला में अनूदित), पीड़ित चेहरों का मर्म (1994), तुम आओ मेरी कविता में (2000), फूल मेरे साथ हैं (2001), पत्तियां करतीं स्नान (2003), पेड़ों का समय (2009), सड़क पर जिंदगी (2016) प्रतिनिधि कविताएं (2023) सभी काव्य संग्रह।गद्य में जुलूसों का शहर (1973), आदम सवार (1976) ,अनुवाद में प्रतिद्वंद्वी (सेरेडन के ‘राइवल्स’ का हिंदी अनुवाद)
तथा  ‘दिनमान’, ‘रविवार’, ‘जनसत्ता’ में चित्रकला की समीक्षाएं प्रकाशित हुईं। मानिक बच्छावत ने मारीशस की हिंदी कविताएं (1970), ‘अक्षर’ कविता पत्रिका का संपादन (1965-70) एवं ‘समकालीन सृजन’ के की अंकों का संपादन किया। उन्होंने लगातार दक्षिण-पूर्व एशिया, अमेरिका, यूरोप एवं अन्य देशों का भ्रमण किया। उन्हें 2006 में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान,आगरा का गंगाशरण सिंह पुरस्कार मिला।इसके अलावा 2004 में  दिल्ली की संस्था ‘परंपरा’ द्वारा विशिष्ट कवि पुरस्कार मिला।
उनकी पत्नी प्रसिद्ध चित्रकार पन्ने कुंवर बच्छावत का निधन हो चुका है।वे अपने पीछे पुत्र अमिताभ बच्छावत, विक्रम बच्छावत, पुत्रवधू मधु एवं प्रिया और पोता अमन बच्छावत को छोड़ गए। रविवार 13 अक्टूबर,सुबह 9:30 बजे  उनका अंतिम संस्कार  नीमतल्ला घाट पर सम्पन्न हुआ।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।