लोक संस्कृति की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा

पहिले-पहिल हम कइनी छठी मईया व्रत तोहार, करिहा क्षमा छठी मईया भूल-चूक गलती हमार..। संपूर्ण मैथिली व भोजपुरी समाज के साथ-साथ देश की लोक गायिकी की समृद्ध कड़ी में लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, गहरा आघात है। छठ गीतों का स्वर रहीं शारदा सिन्हा का न रहना, उन करोड़ों छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं के लिए अपना स्वर खो देने जैसा अनुभव है, जो वर्षों से उनके छठ गीतों के अलावा किसी दूसरे गायक को नहीं सुना। बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से लेकर मुंबई, मॉरिशस, अमेरिका, लंदन और जहां-जहां बिहार व पूर्वांचल समुदाय के लोग पहुंचे, उन छठ घाटों पर शारदा सिन्हा के गीत गूंजते हैं।
शारदा सिन्हा न सिर्फ मैथिली व भोजपुरी बल्कि समूची संगीत बिरादरी की अमूल्य धरोहर थीं। उनका गायन सुन कर लगता था जैसे साक्षात सरस्वती कंठ में विराजमान हों। दुनिया से जाते वक्त भी उन्होंने अपने भीतर दैवीय शक्ति होने का एहसास करा गईं। छठ में उनका जाना इसका संकेत मान सकते हैं। अब वे सशरीर उपस्थित नहीं हैं लेकिन हर साल जब-जब छठ का त्योहार आएगा, शारदा सिन्हा के गीत उनकी मौजूदगी का अहसास कराएंगे। देशी और पांरपरिक लोक संस्कृति की मूर्ति शारदा सिन्हा सदैव लोगों के दिलों में रची-बसी रहेंगी। निश्चित रूप से स्वर कोकिला शारदा का यूं चले जाना गीत-संगीत की सुमधुर दुनिया को बड़ा आघात है।
संगीत की दुनिया में शारदा का न रहना, ‘कोयल बिना न सोभे बगिया’, जैसा माना जाएगा। उनका इस धरती पर अवतरण भी दैवीय चमत्कार जैसा रहा। आठ भाइयों के बाद वह जन्मीं। घर में सबकी लाडली-दुलारी थीं। माता-पिता ने बड़ी मन्नतें की थी कि उनके घर में लक्ष्मी का आगमन हो। शारदा सिन्हा के रूप में उनकी इच्छा पूरी हुई। 1 अक्टूबर 1952 को शारदा सिन्हा का जन्म हुआ। दो वर्षों के भीतर गायन के प्रति उनके रुझान का पता चलने लगा था। 15 वर्ष की उम्र पहुंचते-पहुंचते उनकी आवाज व्यापक स्तर पर लोगों ने पसंद करना शुरू कर दिया। हालांकि जब उनकी शादी हुई तो सास को यह कतई पसंद नहीं था कि उनकी बहू गाना-बाना गाएं। हालांकि भारी विरोध के बाद भी उन्होंने गायन यथावत रखा। जब देश-विदेश से प्रशंसाएं मिलने लगी, तो सास ने भी कह दिया- बहू, तुम अच्छा गाती हो, गाती रहो। शारदा सिन्हा के दो बच्चे हैं, जिनमें एक बेटा अंशुमन सिन्हा और एक बेटी वंदना। शारदा के पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन भी इसी वर्ष सितंबर में हुआ। उनके जाने के बाद से वह पूरी तरह टूट गई थीं।
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के जले सुपौल के हुलास गांव में हुआ था। विवाह बेगुसराय में हुआ। वह गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रहीं। बीएड की पढ़ाई के अलावा उन्होंने म्यूजिक स्ट्रीम में पीएचडी करके समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर बनीं। पर, उनकी रुचि सदैव गायिकी में ही रही। कॉलेज से रिटायर होने के बाद उन्होंने संगीत की फ्री शिक्षा देना जारी रखा।
अस्सी-नब्बे के दशक का वह दौर, जब उनके भजन और फिल्मी गानों का बोलबाला था। सलमान खान और भाग्यश्री अभिनीत फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में गाया गाना ….‘कहे तोसे ये तोहरी सजनिया’ ….इतना फेमस हुआ कि उन्हें रातोंरात बड़ा फिल्मी सिंगर बना दिया। उनके फिल्मी गानों की डिमांड बढ़ गई। शारदा सिन्हा को राजनीति के ऑफर भी बहुतेरे मिले। लेकिन शारदा सभी ऑफरों को विनम्रता से ठुकराती गईं। कई मर्तबा उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा भी कि उन्हें राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं। समाज ने उन्हें छठ कोकिला की उपाधि दे रखी थी जिसे वह ताउम्र सबसे बड़ा सम्मान मानती रहीं।
छठ गीतों के अलावा भी उन्होंने विभिन्न भाषाओं में एक से एक हिट गाने दिए। देश के सर्वोच्च सम्मान से भी उन्हें केंद्र सरकार ने नवाजा। उनके न रहने से एक युग का अंत हुआ है। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उनकी मीठी, मधुर, सुरीली आवाज श्रोताओं के कानों में सदा गूंजेगी।
(साभार – हिन्दुस्तान समाचार पर प्रकाशित डॉ. रमेश ठाकुर का आलेख)

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