लॉकडाउन में दसवीं के छात्र ने लिख दी पूरी किताब

कहते हैं कि बच्चों को वातावरण और प्रोत्साहन मिले तो उनकी प्रतिभा और निखर जाती है। कोलकाता के प्रख्यात स्कूल ला मार्टिनियर फॉर ब्वॉयज के वरिष्ठ हिन्दी शिक्षक बलवन्त सिंह और उनके बेटे शंशाक सिंह के सन्दर्भ में यह बात सही उतरती है। शंशाक 10वीं का छात्र है और इसी उम्र में उसने अपनी पहली पुस्तक लिख डाली है तो निश्चित रूप से इसका श्रेय उनके पिता को भी जाता है जो एक अँग्रेजी माध्यम स्कूल में वर्षों से हिन्दी पढ़ाते आ रहे हैं। हिन्दी को लेकर उन्होंने क्लब बनाया है और सांस्कृतिक गतिविधियाँ संचालित करते रहे हैं और स्कूल की क्रिकेट टीम को भी सफलता की ऊँचाइयों तक ले गये हैं। अंग्रेजी स्कूलों में हिन्दी की अलख जगाय़े रखना कितना चुनौतीपूर्ण काम है, ये हम सब जानते हैं।
तो जितने बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलवन्त खुद हैं, उतने ही प्रतिभाशाली उनके पुत्र शशांक हैं जो इसी स्कूल में दसवीं कक्षा के विद्यार्थी हैं। शशांक ने इसी उम्र में डाइंग लैम्प नामक पुस्तक लिख डाली है औऱ पुस्तक अमेजन के किंडल पर उपलब्ध भी है। शशांक की कहानी आइए, हम उनसे ही सुनते हैं।
नाम: शशांक सिंह
विद्यालय का नाम: ला मार्टिनियर फ़ॉर बॉयज, कोलकाता
कक्षा : 10
पुस्तक का नाम: दी डाईंग लैंप
रुचियाँ: मुझे लेखन, विशेषतः निबंध-लेखन, से अत्यंत प्रेम हैं। मैं बचपन से ही लघु कहानियाँ लिखता आ रहा हूँ एवं अंग्रेज़ी भाषा के प्रसिद्ध लेखक व साहित्यकारों की कहानियां एवं उपन्यास भी पढ़ता आ रहा हूँ। मुझे रस्किन बांड, रॉल्ड डाल, विलियम शेक्सपियर, चार्ल्स डिकेन्स- इन अंग्रेज़ी साहित्यकारों की रचनाएं बहुत अच्छी लगती है; हिंदी साहित्य में मुझे प्रेमचंद जी की कहानियाँ एवं दिनकर जी व जयशंकर प्रसाद की कविताएं बहुत भाती हैं।
मेरी रुचियों में शामिल हैं भाषाओं एवं उनके लिपियों के बारे में जानना। यद्यपि मेरी मातृभाषा हिंदी है, मुझे अन्य भाषाओं में भी उतनी ही रुचि हैं। मुझे अंग्रेजी एवं हिंदी के अलावा जर्मन एवं जापानी भाषा का ज्ञान है एवं मैं फारसी, तमिल, तेलगू व थाई लिपियाँ पढ़ सकता हूँ।
मुझे भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन बहुत अच्छा लगता है- etymology(शब्दों की उत्पत्ति कैसे हुई) इसमें भी विशेष रुचि है।
महाकवि तुलसीदास से मैं विशिष्ट रूप से प्रभावित हूँ; अवधी मुझे प्रिय है―इसलिए तुलसीकृत रामचरितमानस मुझे प्रायः कंठस्थ है ।
शंशाक ने छन्द लिखें हैं –
मैं-तैं मैं करता फिरा, मैं ही चारिहु ओर।
मैं की आवे काज में, टूटत जीवन डोर।
साथ ही साथ मुझे एकांत में ओल्टरनेट हिस्ट्री लिखने का भी शौक है।
मुझे गणित व भौतिकशास्त्र अत्यंत प्रिय हैं; मेरी अभिलाषा है कि मै बड़ा होकर भौतिकशास्त्री(प्रोफेसर/ शोधकर्ता) बनूँ। मुझे इसरो( ISRO) में जाने की अभिलाषा भी है।
किताब में योगदान: प्रस्तुत किताब, जो मेरी प्रथम रचना है, में अहम योगदान मेरे माता-पिता, दादा-दादी, नाना एवं अन्य परिजनों का है; साथ ही साथ मेरे समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं का भी विशेष योगदान है। मैं इन सभी का आभारी हूँ; इनके बिना मेरी यह रचना अपूर्ण है।
किताब के बारे में: प्रस्तुत पुस्तक अंग्रेज़ी भाषा में रचित है। इसे मैने लॉकडाउन के दौरान लिखा है। यह अमेज़न किंडल पर उपलब्ध है।
प्रस्तुत कृति का मूल भाव है मानवता के नैतिक मूल्यों के पतन को उजागर करना। यद्यपि मनुष्य सभ्यता के रूप में प्रगतिशील भले ही हो, सांस्कृतिक एवं नैतिक रूप से वह अवनति की ओर बढ़ता जा रहा है। अपने वासनाओं एवं आकांक्षाओं का शमन व नहीं कर पा रहा है। चहुँ ओर धार्मिक कट्टरता एवं संग्राम का रक्त से सनी तलवार लहरा रही है; कुपोषण एवं गरीबी जैसी कठिनाइयों के प्रति जो अमानवीय उदासीनता है एवं युद्ध कितना जघन्य होता है―इन्हें ही ये पुस्तक दर्शाती है। इसके तीन भाग हैं:WAR(युद्ध), WANT(चाह) एवं ALL ROADS LEAD TO ROME OR TO DEATH
मैंने यह भी दर्शाया है कि कैसे मानवों ने पृथ्वी का हनन किया है एवं बाकी जीव-जंतुओं के साथ जघन्य व्यवहार किया है। वर्तमान समय में मैं अपनी दूसरी पुस्तक लिखने में व्यस्त हूँ, जो कि एक उपन्यास है।

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