लाल बहादुर शास्त्री जयंती विशेष : इस तरह बने शास्त्री जी हमारे प्रधानमंत्री

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 यूपी के मुगलसराय में हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री गांधी से काफी प्रभावित थे। लाल बहादुर शास्त्री का पार्टी में शीर्ष नेताओं के बीच प्रमुखता से छा जाना ये कोई अचानक नहीं हुआ थी बल्कि इसके पीछे कई कारण थे। आइए जानते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री कैसे प्रधानमंत्री बने थे?

उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण बहस

ये बात है साल 1964 की, जब 27 मई को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया, तब देश में उनके उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण बहस चल रही थी। देश की नई व्यवस्था में उत्तराधिकारी पहले से तय करने की कोई परंपरा या सिद्धांत नहीं था। ऐसे में देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनने के कई दावेदार खड़े हो गए थे। बता दें कि शास्त्री का प्रधानमंत्री बनना संयोग तो कहा जा सकता, लेकिन नेहरू का उत्तराधिकारी बनना बिल्कुल स्वाभाविक भी नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि नेहरू ने अपने अंतिम दिनों में प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री को अपनी काफी जिम्मेदारियां देनी शुरू कर दीं थीं, जिससे पार्टी में ये संदेश जाने लगा था कि वो उन्हें अगले प्रधानमंत्री पद के रूप में तैयार कर रहे हैं।

कौन-कौन थे दावेदार

लेकिन ये राह इतनी आसान थोड़ी थी, उस समय प्रधानमंत्री पद की दौड़ में गुलजारी लाल नंदा, जय प्रकाश नारायाण और मोरारजी देसाई शामिल थे, जो शास्त्री को कड़ी टक्कर दे रहे थे। उस समय गुलजारी लाल नंदा थे तत्कालीन गृह मंत्री थे और इस लिहाज से मंत्रिमंडल में भी वो दूसरे स्थान पर थे। वहीं, मोरारजी देसाई भी थे, जिनका मंत्रिमंडल के बाहर बहुत गहरी छाप थी और जय प्रकाश नारायण भी अपने करिश्माई व्यक्तित्व के लिए शुमार थे। नेहरू के बाद ऐसे तो बहुत से नाम आगे आए लेकिन धीरे-धीरे बात मोरारजी देसाई और शास्त्री पर आकर रूक गई। उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष कामराज की सबसे बड़ी चिंता थी  पार्टी की एकता को बनाए रखना।

शास्त्री जी ऐसे बने प्रधानमंत्री

शास्त्री और मोरारजी के बीच शास्त्री का पलड़ा भारी होने की दो वजहें थी, एक तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष कामराज मोरारजी देसाई के खिलाफ ही थे। दूसरा अखबारों में एक खबर छपी कि मोरारजी देसाई के पक्ष में उनके समर्थक दावेदारी कर रहे हैं। इससे पार्टी में यह संदेश गया कि मोरारजी पीएम बनेंगे तो पार्टी के नेता नाराज हो सकते हैं, यही खबर ही मोररजी के खिलाफ गई और शास्त्री के नाम पर मुहर लग गई। फिर 31 मई 1964 को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में देश को दूसरा प्रधानमंत्री मिल गया। खास बात यह थी कि उस दौरान खुद शास्त्री भी अपने आपको पीएम पद का दावेदार नहीं मानते थे उनका मानना था कि नेहरू का उत्तराधिकारी इंदिरा या फिर जेपी नारायण हो सकते हैं। पर इतिहास को कुछ और मंजूर था।

(साभार – इंडिया टीवी)

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