लंगड़ी दुनिया और हम

डॉ. विजया सिंह

शुक्रवार (9 अगस्त) को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही महिला ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद नृशंस हत्या कर दी गई। समय गुजरने के साथ ऐसे ब्यौरे सामने आ रहे है कि मन अस्थिर और भयाकुल हो रहा है। जीवन में आगे बढ़नेवाली, संघर्ष करनेवाली नई युवा पीढ़ी की लड़कियों के लिए समाज का यह चेहरा खौफ़ज़दा करने वाला है। हम जानना चाहते हैं कि क्या ये दुनिया हमारी नही है? आगे बढ़ने की महत्वाकांछा, आनंद करने के मौके और खुश रह कर गुजारा जानेवाला समय, अच्छे दोस्त और बेहतर मानसिकता क्या इतनी मुश्किल है? दुख होता है कहते हुए, किंतु भारतीय समाज में ये आज भी सच है जहां हर कोई ऐरा -गैरा जब चाहे लड़कियों को साइज़ कर देने के उपक्रम में रहता है। हालत यह है कि जितनी लड़कियां आगे आ रही है ऐसे लोगों की असुरक्षा बढ़ रही है, वे तेजी से सनक रहे है, बीमार हो रहे है , हिंसक और अत्याचारी भी। ऐसी गैरवाजिब आक्रामकता वैयक्तिक, पारिवारिक, सांस्थानिक और सामाजिक ही नहीं मानसिक भी है। अच्छे पढ़ें लिखे भले मानुषों से भी हमारा पाला पड़ता है जो स्त्री पुरुष के मध्य स्पष्टतः सार्वजनिक और वैयक्तिक भेद को स्वीकार करते हैं। इनका मानना है कि अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्त्री को स्वतः उन सब कार्यों, भूमिकाओं और आनंद की जगहों से दूर हो जाना चाहिए जहां लेशमात्र भी खतरे की भनक हो। न तो ये दुनिया बदलेगी और न ही पुरुष। यानी स्त्री की सुरक्षा उसकी प्रत्युत्पन्न मति और खतरे को कोसों दूर से सूंघ लेने वाले विवेक पर आधारित है।
ऐसी ही बेहद केयरफुल किंतु बैसाखी युक्त बातों ने स्त्रियों का साथ न देकर उनका नुकसान किया है। पहली बात, यहां स्त्री की निजी इच्छा और आकांछा का कोई मोल नहीं दिखता। स्त्री को पहले हाड़ मांस के मनुष्य के रूप में देखे तभी उनके प्रति न्याय और सम्मान की बात हो पाएगी। दूसरी बात, कि क्या यह दुनिया अकेले किसी एक लिंग, जाति या वर्ग की है? नहीं, इस पर सबका समान अधिकार है, तो औरतों को भी अपने अधिकार की जमीन, खुला आकाश और मुक्त हवा मिलनी चाहिए। यहां उसके होने, न होने या कितना होने की शर्तों को लागू करने का अधिकार किसी को नहीं है। केयर और प्यार के नाम पर उसे श्रृंखलाएं नहीं खुला, स्वस्थ स्पेस चाहिए।
इसी से जुड़ा एक अनुभव साझा करना चाहूंगी। एक शॉर्ट विडियो से मेरा भी साबका पड़ा। मित्र ने दिखाया कि किसी गेम का हिस्सा बनी लड़की की सहायता के लिए वहां उपस्थित दो वॉलिंटियर्स में से एक जब उसे ऊपर उठाता है तो वह उसे गलत तरीके से छूता है। यह काम वह इतनी सहजता और क्षिप्रता से करता है कि खेल की गति में लड़की को इसका आभास भी नहीं हो पाता कि उसके साथ कोई ऐसी अवांछित हरकत की गई है। यह सब कुछ बाकायदा वीडियो रिकॉर्डिंग में दर्ज होता जाता है। यहां मेरी मित्र का कहना है कि ऐसी जगह पर लड़कियों को जाना ही नहीं चाहिए या उनकी हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए क्योंकि यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। ऐसी बातें हैं निश्चित रूप से काफी बेचैन करने वाली है कि क्या दुनिया, दुनिया की विविधता, खेल,मनोरंजन आनंद, ज्ञान, आर्थिक उपार्जन के अवसर क्या स्त्रियों के लिए नहीं हैं? क्या संसार, साधन और अवसर एक ध्रुवीय हैं? क्या वहां हम स्त्रियों की कोई हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमेशा वहां कुछ ऐसे पुरुष मौजूद होंगे जो उन स्थितियों का फायदा लेकर औरतों के साथ अनुचित व्यवहार करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ेंगे। ऐसी अर्द्ध विकसित लंगड़ी दुनिया लेकर हम क्या करेंगे? ऐसे में तो पार्क, सड़कें, स्कूल, कॉलेज, बाजार, यात्रा, अस्पताल, मॉल, फिल्म …सबसे औरतें वंचित रह जाएंगी और ये सब तो होने से रहा। यहां दिक्कतलब ऐसी मानसिकता है जो सुरक्षा के नाम पर बार बार महिलाओं को बंदी बनाना चाहती है। नया जागरूक समाज ही समाज के लंपट तत्त्वों के खिलाफ खड़ा हो सकता है। यह मानसिकता अंततः लड़की को जिम्मेदार मानती है। इससे लंपट लोगों की हौसला अफजाई होती है और यह कतई उचित नहीं है।
तीसरी और बेहद ख़ास बात कि दृश्य श्रव्य माध्यमों में सॉफ्ट पोर्न के रूप में जो जहर परोसा जा रहा है, उसके कारण लड़कियां ही नहीं लड़के भी असुरक्षित हुए है। तयशुदा लिंगीय अस्मिता से इतर लोगों का जीना मुश्किल हुआ है। यानी संकट के घेरे में केवल लड़कियां ही नहीं और भी समूह आ गए है क्योंकि कुछ लोगों के लिए ये मनुष्य नहीं मनोरंजन के औजार हैं। यूज़ एंड थ्रो की नीति ही यहां सर्वोत्तम है। सॉफ्ट पोर्न के लगातार अबाधित प्रस्तुतीकरण ने इसे न केवल सहज बल्कि जायज़ जैसा बना दिया है।
स्थितियां आसान नहीं कठिन हुई हैं। काम और हिंसा के कोहरे में आनंद लेता भटकता बेसुध समाज अपने ही नागरिकों की बलि ले रहा है। समाज की सनक और पागलपन से परे लड़कियों ने अपने पंख खोल लिए है। उन्हें पता है कि जो कुछ आसान नहीं, उसका इलाज संघर्ष और विरोध है। उन्हें इस मुश्किल का जवाब लक्ष्य के प्रति अपने जुनून से देना है। इस कुरूप हो आई दुनिया के ज़ख्मों पर मलहम लगाना है। इसे जीने लायक बनाना है।

शुभजिता

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