मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के प्रभावशाली चरित्र पर कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे गए हैं। लेकिन मुख्यतः दो ग्रंथ प्रमुख हैं। जिनमें पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ इस पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड, तथा 7 कांड है। दूसरा ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है जिसका नाम ‘श्री रामचरित मानस’ है। इनमें महर्षि वाल्मीकि की रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। लेकिन श्रीराम के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं जिनका विवरण श्रीरामचरितमानस या अन्य रामायण में नहीं है। इनका विस्तृत विवरण केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है।
रामकथा का पहला उपलब्ध आख्यान वाल्मीकि रामायण को माना जाता है। यद्यपि रामकथा का सर्व-स्वीकार्य काल निर्धारण नहीं किया जा सका है तथापि माना जाता है कि राम-सीता का विवाह 7307 ईस्वी-पूर्व (अर्थात् आज से 9324 वर्ष पूर्व) हुआ। यूरोपीय इतिहासकारों के अनुसार वाल्मीकि रामायण की रचना का काल ईसा से 5वीं शताब्दी पूर्व से लेकर ईसा से पहली शताब्दी तक माना जाता है (अर्थात् वर्तमान समय से 2500 वर्ष पूर्व से लेकर 2100 वर्ष पूर्व के बीच)।
1. रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।
2. हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।
3. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे, तब विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।
4. विश्वविजय के दरम्यान जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। रावण ने उसे पकड़ लिया। तब रंभा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।
5. जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह तक कह दिया था कि हे राम तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।
6. प्रभु राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का शाप दिया था। दरअसल शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को शाप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
7. जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।
8. सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।
9. जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का प्रभु राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक शाप के कारण राक्षस बन गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि में समर्पित किया तो वह शाप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।
10. जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
लक्ष्मण रेखा का सत्य
वाल्मीकि रामायण में कहीं भी लक्ष्मण रेखा का जिक्र नहीं हुआ है । राम के रूप में मारीच द्वारा बचाओ बचाओ की आवाज लगाने पर सीता माता लक्ष्मण को भेजती है और लक्ष्मण परिणाम स्वरूप रावण झोंपड़ी को ही उठाकर ले गया। इस संभावना को तब बल मिलता है जब आप कंब रामायण के कुछ प्रसंगों को देखेंगे। कंब रामायण में रावण के सीता की झोंपड़ी को उठाकर ले जाने का विस्तृत प्रसंग है।
वाल्मीकि लिखते हैं –
”रक्षन्तु त्वाम…पुनरागतः ” [श्लोक-३४,अरण्य काण्ड , पञ्च चत्वाविंशः ]
लक्ष्मण कहते हैं कि ‘वन के संपूर्ण देवता आपकी रक्षा करें क्योंकि इस समय मेरे सामने भयंकर अपशकुन प्रकट हो रहे हैं। क्या मैं श्रीराम चंद्र के साथ लौटकर आपको सकुशल देख पाउंगा। यहाँ कहीं नही लिखा कि राम की रक्षा हेतू जाते वक्त लक्ष्मण ने सीता के लिए कोई रेखा खींची।
रामचरित मानस में क्या लिखा है?
तुलसीदास रचित राम चरित मानस में भी कहीं नहीं कहा गया है कि लक्ष्मण ने कोई रेखा खींची।
”मरम वचन जब सीता बोला , हरी प्रेरित लछिमन मन डोला !
बन दिसि देव सौपी सब काहू ,चले जहाँ रावण ससि राहु !” [पृष्ठ-५८७ अरण्य काण्ड ]
अर्थात सीता द्वारा मर्म वचन बोले जाने के बाद लखन सीता माता को वनदेवियों और दिशाओं आदि की निगरानी में छोड़कर चले गए।
किसने की लक्ष्मण रेखा की बात
जब वाल्मीकि रामायण और राम चरित मानस में लक्ष्मण रेखा का जिक्र नहीं है तो इस बात को बल कहां से मिला कि लक्ष्मण ने सीता को मर्यादा में रखने और बाहरी लोगों से सुरक्षित रखने के लिए कोई रेखा खींची थी। दरअसरल राम रावण युद्ध के समय मंदोदरी जरूर इस बात की तरफ इशारा करती है कि जो स्त्री मर्यादा के लिए खींची गई रेखा को पार करती है, वो इस तरह युद्ध का कारण बनती हैं। कृतिवास रामायण में इस बात का उल्लेख मिला है कि लक्ष्मण ने अपने बल के प्रयोग से झोपड़ी को अभिमंत्रित किया और जब रावण झोपड़ी में घुसने में नाकाम रहा तो गुस्से में पूरी झोंपड़ी ही उठाकर ले गया।
(साभार – वेबदुनिया, दैनिक भास्कर, प्रभासाक्षी)