
“अमरत्व” किसी को श्राप किसी को वरदान राघवेश अस्थाना का उपन्यास बहुत ही रोचक तथ्यों से भरा हुआ है। इसमें सनातन और पौराणिक कथाओं और उपन्यासकार की वर्षों की यात्रा के अनुभवों को अट्ठाइस अध्यायों में पिरोया गया है। कथाकार के लेखन का आरंभ बचपन की स्मृतियों में ही जन्म ले चुका था जिसका निचोड़ यह उपन्यास है। लेखक वाराणसी स्थित ‘खोजवांँ आदर्श पुस्तकालय’ के पाठक रहें हैं जहां लाइब्रेरियन पंडित जी द्वारा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। लेखक पर मामा स्वर्गीय श्री लक्ष्मी चंद्र श्रीवास्तव और दीदी पद्मजा अस्थाना का वरद हस्त रहा जिनकी प्रेरणा मिलती रही। महान फिल्मकार गुरु स्वर्गीय श्री के. बालचंदर और गुरु व्यंग सम्राट अशोक चक्रधर के ऋणी हैं लेखक।उपन्यास का
पहला पड़ाव अरुल है जहां से चित्रकूट के घने वन में रिशेल के साथ नायक घने वन में अंधाधुंध भागा जा रहा है और उसके पीछे डकैत गालियां देते हुए दौड़े चले आ रहे हैं। जो एक स्वप्न है और फिर नायक अपना परिचय देता है। मॉरीशस के ट्रीओले गाँव में जन्मे अरुलबुद्धन है जिसकी माँ तमिल और पिता भोजपुरी अंचल के हैं । भारत से एग्रीमेंट करके जो भी भारतीय लोगों का परिवार मॉरिशस में बसा है वे गिरमिटिया के नाम से जाने जाते हैं।
दुनिया के किसी भी कोने में रह लें लेकिन उसका जन्म किस लिए हुआ है उसे भविष्य में क्या करना है और किस उद्देश्य के लिए भगवान ने भेजा है ।उसकी मृत्यु भी उसके हाथ में नहीं है। कोई सुपर पावर है जिसके निर्देश पर व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा को पूर्ण करता है। कहा गया है – – सब कुछ, चाहे वह ज्ञान, धन, शक्ति, या सुख हो, सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है, और वह सब कुछ देने वाला है। यह श्लोक इसी बात को दर्शाता है कि उस ईश्वर के हाथ में ही सब कुछ है – – वयं विश्वतो जनेभ्यः सर्वगुणैरुत्कृष्टमिन्द्रं परमेश्वरं परि हवामहे, स एव वो युष्माकमस्माकं च केवलः पूज्य इष्टोऽस्तु।”अर्थात जो हम सभी लोगों से श्रेष्ठ है, इंद्र, परमेश्वर, हम उसकी स्तुति करते हैं, वह आपके लिए भी, हमारे लिए भी, केवल पूजनीय और इष्ट है।मॉरिशस में अरुलबुध्दन का स्वामी शाश्वत जी से मिलना और नीदरलैंड की रिशेल के साथ हिमालय की यात्रा का कार्यक्रम बन जाना इत्तफ़ाक नहीं है यह किसी प्रारब्ध का संदेशा था ऐसा प्रतीत हो रहा था। लगा कि स्वामी जी ने अरुल के मन की बात पढ़ ली और इतनी भीड़ में भी उसे ही अपने आश्रम में बुलाया और उसको भारत की आध्यात्मिक जानकारी के निमित्त बने। अरुल के लिए यह सब एक स्वप्न जैसा था ।स्वामी जी भी मानो किसी के आदेश का पालन कर रहे हों।
भारत के संतों की महिमा अपरंपार है उनकी तपस्या हजारों वर्षों से लगातार चलती आ रही है। इस उपन्यास में स्वामी जी की कही ये पंक्तियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण है, “बस इतना हमेशा स्मरण रहे कि जीव ब्रह्म से अलग नहीं, किसी को कष्ट न पहुंचाओगे आगे आध्यात्मिक शक्तियाँ स्वयं तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देंगी।” (अमरत्व, पृ. 57)
उपन्यास में प्रेम भी है, प्रेम का अधिकार भी है, ईर्ष्या भी है लेकिन नायक कभी भी अपने लक्ष्य से भटकता नहीं है ।नायक अरुल नीदरलैंड की रिशेल महिला सहयात्री के प्रति सदैव मर्यादा में रहा और सनातन धर्म को गहराई से समझना चाहता है ।विदेशी डेविड भी अरुल की यात्रा को आगे बढ़ाने में सहायक बनता है।
सनातन धर्म और संस्कृति के अनेक चरित्रों, भारतीय वांग्मय, ऋषि मुनियों के शाप और वरदानों की कथाएँ इस उपन्यास का केंद्र बिंदु है। धर्म के मिथकों के विषय में जानकारी दी,माया कहाँ से आई क्या देवताओं की साजिश थी, महाभारत क्या सचमुच धर्मयुद्ध था?, जैन बौद्ध धर्म का आना कहीं ब्राह्मणों के धर्म के वर्चस्व को तोड़ना तो नहीं था, तंत्र मंत्र और आडंबरों का प्रादुर्भाव क्यों हुआ आदि प्रश्नों को उपन्यास में उठाया गया है जो एक सुधि पाठक के मन मस्तिष्क में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं ।
उपन्यास के शीर्षक भी रहस्य, अध्यात्म और उत्सुकता को जगाते हैं। अरुल अन्नू रिशेल सुन्दर सुभूमि, हरिद्वार, हाथी, हिमालय, गुफा, देव प्रयाग, स्विट्जरलैंड, केदारनाथ,नर नारायण, नर्मदा, खर्जुवार्हिका, सरभंगा, चित्रकूट, विदाई, कौन थे वे? आदि बीस अध्याय में उपन्यास की भारत यात्रा का कथानक और सूत्र जुड़े हैं। नायक अरुल विचित्र गुफाओं आदि में जाता है जहाॅं कई संत या ऋषि हजारों वर्षों से विचरण कर रहे हैं ।उनका उद्देश्य अरुल को कष्ट में मदद करना और उसके प्राणों की रक्षा करना था। अरुल कौन है यह भी रहस्य की रचना करता है।
इस पृथ्वी पर अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम अभी भी जीवित घूम रहे हैं जो रोमांचित करने वाले विश्वास की सृष्टि करते हैं ।
उपन्यास की भाषा सहज होने के साथ साथ शुद्ध हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि का यथोचित प्रयोग मिलता है। मूर्तिकार वंदना सिंह द्वारा बनाया गया इसका आवरण चित्र बहुत ही आकर्षक और अर्थपूर्ण है जो विषय को स्पष्ट कर रहा है ।उपन्यास पठनीय और रुचिकर है ।उपन्यास के लेखक राघवेश अस्थाना जी ने अपनी भूमिका में स्पष्ट स्वीकार किया है कि यह उपन्यास लेखक के बीस वर्षों के अनुभवों का निचोड़ है।
—डॉ वसुंधरा मिश्र
अंशकालिक हिंदी प्राध्यापिका
भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज, 5,लाला लाजपत राय सरणी, कोलकाता – 700020
मो. 9874977382, ई-मेल – [email protected]