नयी दिल्ली । प्रमोद सुबह-सुबह अपने गांव में घूम रहे थे। तभी उन्हें यूनिफॉर्म पहने स्कूल जाते हुए कुछ बच्चे दिखे। प्रमोद ने बच्चों से पूछा तुम कहां जा रहे हो। सभी बच्चों ने बताया कि वो गांव के स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं। इसके बाद प्रमोद ने पूछा कि पढ़ लिखकर क्या बनना है? स्कूल जा रहे बच्चों ने अलग अंदाज में अपने सपनों को प्रमोद के सामने रख दिया। किसी ने कहा कि उन्हें बड़े होकर डॉक्टर बनना है, तो किसी ने प्रोफेसर और आईएएस बताया। ये तो गांव के कुछ ही बच्चे थे, लेकिन इस गांव के लगभग हर बच्चे ने बड़े ख्वाब सजा रखें हैं। ऐसा इसलिए क्यों कि गांव के सैकड़ों लोग बड़े पदों पर तैनात भी हैं। आखिर ये गांव एशिया का सबसे पढ़ा लिखा गांव माना जाता है। हम बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश के धोर्रा माफी गांव की। पढ़ाई-लिखाई के मामले में ये छोटा सा गांव दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है नाम
अलीगढ़ जिले के जवां ब्लॉक में आने वाला धोर्रा माफी गांव का नाम 75 फीसदी से ज्यादा की साक्षरता दर के लिए साल 2002 में ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हुआ। इतना ही नहीं इस गांव का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए होने वाले सर्वे के लिए भी चुना गया। धोर्रा माफी गांव में पक्के मकान, 24 घंटे बिजली-पानी और कई इंग्लिश मीडियम स्कूल और कॉलेज हैं। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां के लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत खेती नहीं बल्कि नौकरियां हैं। इस गांव को भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में सबसे अधिक साक्षर होने का गौरव प्राप्त है।
गांव में नहीं होती खेती
गांव के निवासी प्रमोद कुमार राजपूत ने बताया कि धोर्रा माफी गांव की आबादी करीब 10 से 11 हजार है। उनका कहना है कि गांव में करीब 90 फीसदी से ज्यादा लोग साक्षर हैं। गांव के करीब 80 फीसदी लोग देशभर में बड़े पदों पर तैनात हैं। गांव के कई लोग डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर और आईएएस अफसर हैं। ये गांव अलीगढ़ शहर से सटा हुआ है। गांव में 5 साल पहले खेती बंद हो गई है। अब गांव के ज्यादातर लोग नौकरियां कर रहे हैं।
गांव में हैं कई स्कूल
धोर्रा माफी गांव अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सटा हुआ है। इसके साथ ही गांव में कई स्कूल हैं। प्रमोद ने बताया कि गांव में सरकारी प्राइमरी स्कूल, इकरा पब्लिक स्कूल, एमयू कॉलेज, मून लाइट स्कूल जैसे कई नामी शिक्षण केंद्र हैं। गांव के कॉन्वेंट स्कूलों की तरह ही सरकारी स्कूलों में भी अच्छी पढ़ाई होती है। दरअसल, ये गांव एएमयू से सटा हुआ है। इसलिए वहां के प्रोफेसर और डॉक्टर्स ने गांव में अपना घर बनाया। धीरे-धीरे इस गांव का माहौल बदला। गांव के लोगों का पढ़ाई की तरफ रुझान बढ़ा। इस गांव के ज्यादातर लोग एएमयू में काम करते हैं।
गांव की महिलाएं भी आगे
गांव के प्रधान डॉ नूरुल अमीन ने बताया कि पहले ये गांव ग्राम पंचायत था। लेकिन 2018 में नई व्यवस्था के अनुसार ये गांव अलीगढ़ नगर निगम में आ गया है। इसी साल होने वाले नगर निगम चुनाव में यहां वोटिंग होगी। उन्होंने बताया कि ये धोर्रा माफी गांव आत्मनिर्भर और शिक्षित है। साक्षरता के मामले में यहां की महिलाएं भी पुरुषों के समान ही हैं। इस गांव के डॉ सिराज आईएएस अधिकारी हैं। इसके अलावा गांव के फैज मुस्तफा एक यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर रह चुके हैं। गांव की रहने वाली डॉ शादाब बानो एएमयू में प्रोफेसर हैं। इसके अलावा डॉ नाइमा गुर्रेज भी एएमयू में पढ़ाती हैं। ये तो केवल कुछ ही नाम हैं। लेकिन गांव के सैकड़ों लोग बड़े पदों पर काम कर रहे हैं।
गांव का बड़ा तबका है एनआरआई
डॉ नूरुल अमीन ने आगे बताया कि इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यहां का भाईचारा है। गांव में बड़ी आबादी मुस्लिम है। वहीं, गांव में कई हिंदू भी रहते हैं। बिना किसी भेदभाव के गांव के लोग कई सालों से रह रहे हैं। गांव का बड़ा तबका विदेशों में भी रह रहा है। उनका कहना है कि प्रशासन ने गांव को नगर निगम में शामिल कर दिया है। लेकिन हमारी मांग थी कि इसे आदर्श गांव बनाया जाए। अगर आप कभी अलीगढ़ जाएं तो एक बार धोर्रा माफी गांव भी घूमकर आइए। वहां का माहौल आपको जरूर पसंद आएगा।
(साभार – नवभारत टाइम्स)