भारतवंशी सुषमा द्विवेदी वैवाहिक और धार्मिक अनुष्ठान करवाने वाली अमेरिका की पहली महिला पुरोहित बन गई हैं। अमेरिका में अब तक ऐसे अनुष्ठान पुरुष पुजारी ही कराते आए हैं। वह समलैंगिकों से लेकर हर जाति, संप्रदाय, रंग, नस्ल आदि के लोगों के लिए पूजा कराती हैं।
भारत और भारत के बाहर भी कई महिला पुजारी हैं जो समलैंगिकों समेत सभी समुदाय के लोगों की शादी और दूसरे धार्मिक अनुष्ठान करवाती हैं। इस पहल के जरिए द्विवेदी हिन्दू धर्म में हो रहे बड़े बदलाव का प्रतीक बन गई हैं। धर्म और उसकी परंपराओं का अध्ययन करने वाले कहते हैं कि भारत या विदेशों में भी महिला पुजारी अभी बहुत ज्यादा नहीं हैं लेकिन हिन्दू धर्म में महिलाएं बढ़-चढ़कर आगे आ रही हैं।
दादी से मिला हिन्दू धर्म का ज्ञान
सुषमा ने जब तय किया कि वह भी शादी के फेरे और अन्य अनुष्ठान कराएंगी तो उन्हें अपनी दादी से इस विषय पर बात की। इस बात को जानकर उनकी दादी बहुत खुश हुईं। सुषमा द्विवेदी की दादी पुरोहित नहीं हैं। दादी ने कभी कोई अनुष्ठान नहीं कराया, लेकिन उनके पास सुषमा को पुरोहित बनाने लायक जानकारी थी। दोनों ने साथ बैठकर सारे ग्रंथों का अध्ययन किया। सुषमा ने इन मंत्रों को छांटकर जेंडर न्यूट्रल मंत्र चुने और बनाए ताकि ये किसी भी जाति, लिंग, नस्ल से ऊपर उठकर आशीर्वचन बनें।
सुषमा द्विवेदी अमेरिका की पहली महिला पुजारी हैं जो समलैंगिकों समेत सभी की शादी आदि करवाती हैं। इसके साथ ही वह ऑर्गेनिक फूड कंपनी ‘डेली हार्वेस्ट’ में वाइस प्रेसिडेंट भी हैं। उनके पति विवेक जिंदल वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी ‘कोर’ में चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर हैं। इनके दो बेटे हैं।
शादी कराने में लगते हैं सिर्फ 35 मिनट
2016 में सुषमा ने न्यूयॉर्क में ‘पर्पल पंडित प्रोजेक्ट’ की स्थापना की जो हर प्रकार की धार्मिक सेवाएं प्रदान करता था। उन्होंने पर्पल शब्द इसलिए चुना क्योंकि यह रंग दक्षिण एशिया में ‘गे’ समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। सुषमा को विवाह कराने में सिर्फ 35 मिनट का समय लगता है जबकि पारंपरिक हिन्दू विवाह में 3 घंटे तक का समय लग सकता है।
काफी पुराने समय से महिलाओं ने पेश की नेतृत्व की मिसाल
हिन्दू टेंपल सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका की अध्यक्ष डॉ. उमा मैसोरकर हैं। जो अमेरिका में सबसे पुराने मंदिरों का संचालन करती हैं। मैसोरकर एक डॉक्टर हैं और 1980 के दशक में वह मंदिर प्रबंधन से जुड़ीं। कई साल से वह इसके प्रबंधन में सक्रिय हैं और अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए समाज में सक्रिय रहती हैं। वह कहती हैं कि पुरातन समय से कितनी ही महिलाओं ने नेतृत्व किया है और उनका योगदान एक मिसाल है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं को पुजारी ही बनना पड़ेगा। उनमें ज्ञान के प्रसार की काबिलियत होनी चाहिए।
धार्मिक प्रमुख की भूमिका निभा रहीं कई भारतीय महिलाएं
बिमलाबाई- बिमलाबाई 15 साल से महाराष्ट्र बांके बिहारी मंदिर की सेवा कर रही हैं। उनकी सेवा को देखते हुए उन्हें पुजारी की मौत के बाद पुजारी के पद पर नियुक्त किया गया है। बिमलाबाई इसकी पहली महिला पुजारी हैं।
शारदाबाई गुराव- महाराष्ट्र के बोरेगांव में 42 वर्षीय महिला पुजारी शारदाबाई गुराव कई वर्ष से हनुमानजी की पूजा-अर्चना कर रही हैं। बोरेगांव में मुस्लिम धर्म को मानने वाले अनुयायी भी रहते हैं।
नंदिनी भौमिक– कोलकाता की नंदिनी भौमिक कन्यादान जैसी रस्मों के बगैर ही शादियां करवाती हैं। नंदिनी पेशे से जादवपुर यूनिवर्सिटी में संस्कृत प्रोफेसर और ड्रामा आर्टिस्ट हैं। नंदिनी संस्कृत के कठिन श्लोकों को बंगाली और अंग्रेजी में पढ़ती हैं, ताकि दुल्हन और दूल्हा उनका मतलब समझ सकें। ऐसे पूजा करवाने वाली वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला पुजारी हैं। बतौर पेशा वह प्रोफेसर हैं। उन्होंने कोलकाता और आसपास के इलाकों में कई अंतरजातीय, अंतरधार्मिक विवाह करवाएं हैं।
अंजू भार्गव- अंजू भार्गव पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की धर्म आधारित सलाहकार समिति में शामिल एकमात्र अमेरिकी हिन्दू हैं। साथ ही कम्युनिटी बिल्डर फेलोशिप में काम करने वाली भी वह एकमात्र अमेरिकी-भारतीय भी हैं। उन्होंने हिन्दू अमेरिकी सेवा चैरिटी की शुरुआत की है। अंजू भार्गव ‘एशियन इंडियन वुमेन इन अमेरिका’ की प्रेसिडेंट और ‘काउंसिल फॉर अ पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलिजन सेट’ की ट्रस्टी भी हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)