यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कठिनाई को भी जीता जा सकता है

सादगी में भी सौन्दर्य है और सुर में अगर सादगी हो तो आवाज सीधे ईश्वर तक ले जाती है। इस आवाज में जब लोक जुड़ जाए तो वह और भी प्रभावशाली हो जाता हैं। सादगी और प्रभाव का ऐसा ही जादू है सुषमा ठाकुर की आवाज में। रिसड़ा की नया बस्ती की सुषमा ठाकुर ने संगीत को पढ़ा भी है और संगीत को जीया भी है। मधुर गायिका सुषमा ठाकुर हमने बात की, पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश –
पिता हैं संगीत के प्रथम गुरु
संगीत ज्ञान की शुरूआत घर से ही हुई। मेरे पिता राधाकृष्ण ठाकुर के रामचरित मानस के पाठ तथा मेरे चाचा जी राजेन्द्र जी ‘व्यास’ के भोजपुरी गायन का प्रभाव मेरे ऊपर पड़ा। मैं भी बचपन से ‘मानस पाठ’ तथा भजन गाने लगी। कुछ समय बाद काशीपुर के सर्वमंगला मंदिर में मेरे भजनों से प्रभावित होकर चित्रकूट के संत श्री श्यामसुंदर दास जी ने शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया। वहाँ की महिला समिति की अध्यक्ष कमला देवी की पुत्री गुड़िया दीदी से मुझे सरगम का ज्ञान मिला। तत्पश्‍चात मैंने घर पर ही मेरे संगीत शिक्षक अनिक दास तथा सपन चौधुरी से ख्याल तथा भजन सीखा। इसके बाद मैंने स्नातक में एक चयनित विषय (इलेक्टिव सब्जेक्ट) के रूप में बंगाल म्यूजिक कॉलेज से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया। इस पूरे क्रम में मुझे मेरे पिता जी का विशेष सहयोग मिला।
आलोचना भी सुनी है और प्रोत्साहन भी मिला
प्रारम्भ में स्वयं मेरे पिताजी ने ही मुझे संगीत के लिए प्रेरित किया। फिर, संतों तथा श्रोताओं से प्रेरणा मिलती रही। माहौल अच्छा था पर कुछ लोगों की कटु बातें भी सामने आयीं – ‘लड़की को मंच पर चढ़ाते हैं’ और ‘लड़की को व्यास पीठ पर बैठाते हैं’ – जैसे आलोचना भरे शब्द भी सुनने पड़े। इन बातों के बावजूद मुझे अधिकांश लोगों का प्रोत्साहन मिला।
कई बार लोकगीतों का मजाक भी उड़ाते हैं लोग
लोकगीतों से मेरा कोई विशेष जुड़ाव नहीं रहा, फिर भी मैं यह महसूस करती हूँ कि नयी पीढ़ी का झुकाव पाश्‍चात्य संगीत की ओर अधिक है। कई बार लोग लोगीत का मजाक भी उड़ाते हैं।
विद्यालय बना सकते हैं लोकगीतों को लोकप्रिय
लोकगीत की उपेक्षा का प्रमुख कारण पाश्‍चात्य सभ्यता और संस्कृति की ओर झुकाव है। इस विषय में जागरूरकता लाने की जरूरत है और विद्यालय इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आज कठिन प्रतियोगिता है
आज कठिन प्रतियोगिता का दौर है पर नए – नए प्रयास भी किए जा रहे हैं। सहयोग के हाथ भी बढ़ रहे हैं। यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कठिनाई को भी जीता जा सकता है।
संगीत ईश्वर की शक्ति है
संगीत ईश्‍वर की शक्ति है। सकारात्मक सोच के साथ इसे जीवनोपयोगी बनाए रखना है।

शुभजिता

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