– बब्बन
(1)
गाँधी, गौतम, नानक , महावीर,
रसखान, रहीम, टैगोर, कबीर।
सूर ,तुलसी, गालिब, मीर।
विद्यापति, हजारिका और नजीर।
कहीं सन्त समागम, कहीं फकीर।
अनेक कला समन्वयों का देश हूँ मैं,
मानवता, सत्य अहिंसा का अविरल,
प्रवाहमान संदेश हूँ मैं।
उपर से शान्त सरोवर सा,
अन्दर अन्दर महाभारत हूँ,
मै भारत हूँ ।
(2)
मेरा जो वर्तमान रुप है,
इसमें छाँव कम , ज्यादे धूप है।
करने को तो एक हूँ,
किम्बदन्तियों में अनेक हूँ।
दूर से सबको पसन्द हूँ,
कहीं खुला तो कहीं बन्द हूँ।
कहीं गद्य तो कहीं छन्द हूँ।
मुझमें कितनी एकता है,
यह खुद मुझे भी नहीं पता है।
कहाँ तल्लीन हूँ, कहाँ विरत हूँ।
मैं भारत हूँ।
(3)
जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद में,
पग-पग पर बँटा हुआ हूँ।
धनी, गरीब, पूँजीपति, मध्यवर्ग, निम्नवर्ग,
मजदूर आदि कौमों मे पटा हुआ हूँ।
आरक्षण समर्थक व विरोधियों की लाइन से,
दो भागों में कटा हुआ हूँ।
कहीं कम्युनिस्ट देश, कहीं बुद्धिस्ट देश से,
विश्व नक्शे पर सटा हुआ हूँ।
सीमा पर सैन्य शक्ति से रक्षित,
पर अन्दर कमजोर निहायत हूँ।
कूटनीति बाजों के लिए महारत हूँ।
मैं भारत हूँ ।
(4)
संविधान में, धर्मनिरपेक्ष,
सम्पन्न सम्पूर्ण प्रभुत्व हूँ.
समाजवादी गणराज्य, बन्धुत्व हूँ।
ग्लोब पर अंकित आकृति त्रिभुजाकार हूँ।
सत्ता का अट्ठाहास, मजदूरों का चित्कार हूँ.
अपने को दर्पण मे देखता हुआ,
समकालीन साहित्यकार हूँ।
बुद्ध की मानवता विश्वपटल पर प्रक्षेपित,
गांधी की सत्य अहिंसा से मुख लेपित,
एक मुखौटा सदारत हूँ ।
मैं भारत हूँ।
(5)
मेरी ब्यथा कोई नहीं सुनता,
आजकल सत्ता का चौसर हूँ।
कुत्सित मँसूबे पूरा करने के लिए,
राजनीतिक दलों का अवसर हूँ।
130 करोड़ तथाकथित सन्तानों का सम्बोधन हूँ।
जनता के लिए युधिष्ठिर, सत्ता के लिए दुर्योधन हूँ।
अपनी सीमा पर दुश्मन देशों से,
डरा हुआ हूँ।
आधे भूखे नंगे संतानों के,
चित्कार से ब्यथित हूँ,
समझ नहीं आता, जिन्दा हूँ,
या मरा हुआ हूँ।
संत्रास से भरा हुआ मेरा इतिहास,
जबतक हर पेट को रोटी नहीं,
आत्मनिर्भर कहना मेरा उपहास।
भले, मानवीय मूल्यों का विरासत हूँ।
पूँजीवाद-सत्ता गठजोड़ का तिजारत हूँ।
मैं भारत हूँ।
प्रयागराज/इलाहाबाद
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