‘मैं बूंँद हूँ विराट बनने चली हूँ’ वर्षा का स्वागत किया अर्चना ने

कोलकाता । वर्षा के आगमन के साथ ही बाल- वृद्ध, युवक-युवतियों के साथ ताल- तलईया, नदी-नाले, गंगा- यमुना, धरती- आकाश, पेड़ – पौधे सब मदमस्त हो जाते हैं तो भला सृजनशील कवि कवयित्री पीछे क्यों रहे। आषाढ़ की प्रथम गड़गड़ाहट के साथ ही मन के भावों का उद्दीपन होने लग जाता है। अर्चना संस्था के सदस्यों ने वर्षा ऋतु का स्वागत करते हुए सर्वप्रथम संयोजक और संचालन करते हुए इंदु चांडक ने सरस्वती वंदना या कुंदेदु तुषार हार धवला से आरंभ किया। खिड़की से हाथ पसार कर छूती हूं आकाश के बादलों कोमैं हूं बूंद विराट बनने चली हूं कविता और राजस्थानी गीत /काला धोला बादल आया/म्हारे छोटे गांव में मृदुला कोठारी ने सुना कर सबका मन मोह लिया। हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा ने गीत और कुण्डलिया-हलधर खेतों में चले,आया सावन देख।/काम करेगें रात दिन, बदलेंगे अब रेख।। गीत-पड़े ये रिमझिम आज फुहार।धरा ने किया गजब शृंगार।।संगीता चौधरी ने धरती के श्रृंगार पर अपनी रचना
हरियाली कण-कण बसे,बहे नदी में धार ।/सावन आने से हुआ, धरती का श्रृंगार ।।सुनाया और निशा कोठारी ने बाल गीत- ये बूँदों की टप-टप /ये पैरों की छप-छप, गीत-
सावन तुझसे बस इतनी सी विनती है मेरी सुनाया। विद्या भंडारी ने समाज की समसामयिक समस्याओं को देखते हुए गीत सुनाया ना झूला है /ना कजरी ना बलमा है /ना सजनी
ये कैसा सावन /हरियाला ना अंगना और ना बदरी सुनाया। नौरतनमल भंडारी ने पहले के समय को याद करते हुए अपनी रचनाएं प्रेम यात्रा- पहले जब कभी हम मिलते/
तो कहाॅ पता चलता/कब दिन ढला/कब रात हुई।और एहसास – मैं बोलना चाहता हूॅ/क्योकि मेरे पास शब्द है
कल्पना है/स्वप्न है/अभिव्यक्ति है।प्रसन्न चोपड़ा ने अपनी रचनात्मक भावों में अपने अस्तित्व को रेखांकित किया जिसमें वे कहती हैं कि सागर नहीं, दो बूंद पानी तो हूँ तन मन दोनों भी खो गई, यह सावन की बौछार / हरियाली है चारों ओर, प्रकृति ने किया सिंगार। वहीं सुशीला चनानी ने मनहरण और सरसी छंदों में महत्वपूर्ण गीत प्रस्तुति दी जो महत्वपूर्ण रहे – भीगा भीगा मौसम है /आयी बरखा रानी है । /सावन और विरहणी। नई सदस्य चंद्र कांता सुराणा ने छम छम करता आया सावन/अनंत अनंत कर्मों का क्षय करती है तपस्या/रचना सुनाई। इंदु चांडक का गीत कारे कारे बदरा नील गगन में/उमड़ घुमड़ कर आये ने सबको सावन की वारिश में भिगो दिया।
डॉ वसुंधरा मिश्र ने मन का सावन सुनाई जिसमें वर्षा के कई आयामों पर प्रकाश डाला। उनकी ये पंक्तियाँ बहुत पसंद की गईं – कृषि के साथ कृष्ण बांसुरी बजाएं तो सावन हैं /क्रोधित वर्षा के नैनों की धारा जब बुझ जाएं तो सावन है
बाढ़ के खतरे न आएं पशु-पक्षी और मानव के जीवन सुरक्षित हों तो सावन है।धन्यवाद ज्ञापन किया सुशीला चनानी ने और जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

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