Monday, December 15, 2025
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मेसी की दीवानगी और भारतीय खेल प्रेमी

महान मेसी का गोट दौरा यानी ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम मेसी का दौरा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। सवाल हमारी व्यवस्था पर, सवाल हमारे नेताओं पर और सबसे बड़ा सवाल हमारी अपनी हिप्पोक्रेसी पर। कोलकाता में मेसी को न देख पाने पर दर्शकों ने हंगामा किया, कुर्सिया तोड़ीं, गमले उठा ले गये, घास तक ले गये और यह सब इसलिए क्योंकि कुछ नेताओं ने मेसी को जिस तरह घेरकर रखा था, उसके कारण वे फुटबॉल के भगवान को नहीं देख सके। आयोजक गिरफ्तार हो चुका है मगर क्या इतना काफी है। अच्छा एक मिनट रुकिये और बताइए कि आपमें से कितने लोग यह जानते हैं – भारतीय फुटबॉल टीम ने सीएएफए नेशंस कप ने जीत के साथ शुरुआत की है। पहली बार टूर्नामेंट में खेल रहे भारत की टक्कर मेजबान ताजिकिस्तान से थी। इस मुकाबले को भारत ने 2-1 से अपने नाम किया। खालिद जमील के हेड कोच बनने के बाद यह भारत का पहला मुकाबला था। टीम ने इसमें जीत हासिल की। भारत की दो साल में विदेशी धरती पर पहली जीत है। घर से बाहर उनकी आखिरी जीत नवंबर 2023 में विश्व कप क्वालीफायर में कुवैत के खिलाफ हुई थी। भारत की अंडर-17 फुटबॉल टीम ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए कोलंबो में आयोजित 7वाँ सैफ (एसएएफएफ) अंडर-17 चैम्पियनशिप खिताब जीत लिया। 27 सितम्बर 2025 को खेले गए इस रोमांचक फाइनल में भारत ने बांग्लादेश को पेनल्टी शूटआउट में 4-1 से मात दी। निर्धारित समय तक मैच 2-2 की बराबरी पर रहा था। यह मुकाबला रेसकोर्स इंटरनेशनल स्टेडियम में खेला गया। भारतीय सीनियर पुरुष फुटबॉल टीम भले ही संघर्ष कर रही हो, लेकिन जूनियर टीम ने जानदार प्रदर्शन करते हुए एएफसी अंडर-17 एशियन कप के लिए क्‍वालीफाई कर लिया है। भारतीय अंडर-17 टीम ने मजबूत प्रतिद्वंद्वी ईरान को 2-1 से मात दी। यहां क्‍वालीफायर्स के आखिरी दौर में भारत ने ईरान के आक्रामक रवैये को करीब 40 मिनट तक नियंत्रित रखा ताकि मुकाबला अपने नाम कर सके। अर्जेंटीना के स्टार फुटबॉलर लियोनल मेसी 13 दिसंबर को भारत पहुंचे हैं। कोलकाता में उनके 70 फुट के स्टैच्यू का अनावरण किया गया है। शाम को उन्होंने हैदराबाद में प्रदर्शनी मैच में शिरकत की है। 14 दिसंबर को उनके टूर का मुंबई चरण शुरू हो रहा है। 2022 का फीफा वर्ल्ड कप जीतने वाले लियोनल मेसी कोलकाता पहुंच गए हैं। उनका ‘गोट इंडिया टूर’ 13 दिसंबर से शुरू हुआ है, जो तीन दिन चलेगा। इस दौरान मेसी कोलकाता, हैदराबाद के बाद अब मुंबई और दिल्ली भी जाएंगे। 14 दिसंबर यानी रविवार को लियोनल मेसी की मुलाकात क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से हुई है। सचिन तेंदुलकर ने अपनी साइन की हुई जर्सी मेसी को गिफ्ट में दी है।

आज स्थिति यह है कि जिस शहर में पेले आ चुके हों। जहां पी के बनर्जी जैसे फुटबॉलर हों। जिस देश में बाइचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ी हों, उस देश के लोग अपने देश के खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिए 100 रुपये भी खर्च नहीं करते। वहीं जिस मेसी के पैरों का अरबों का बीमा है, जो आपको न तो जानता है, न तो उसे आपसे कोई मतलब है, उसके लिए यह दौरा विशुद्ध व्यवसायिक है। उसे देखने के लिए भारतीय जनता 50 हजार तक के टिकट खरीदती है, एक झलक पाने के लिए पागल होती है और इसमें शामिल हैं, मध्य वर्ग का वह युवा, जो खुद आर्थिक तंगी से जूझ रहा होता है और कई बार उसके पास रोजगार का साधन तक नहीं होता। घर की जिम्मेदारियों से अलग कुछ क्षणों का शौक पालने के लिए अपनी चादर से आगे जाकर खर्च करते हैं। कोलकाता में जो हुआ, वह काफी शर्मनाक है। सबसे बड़ी बात मेसी को लेकर जो अफरा-तफरी हुई, राजनेताओं ने जिस प्रकार उनको घेरकर रखा और 15 सेकेंड भी मेसी की झलक न देख पाने पर जो गुस्सा फूटा, वह सिर्फ आयोजकों पर ही नहीं, खुद दर्शकों पर भी सवाल खड़ा करता है। खिलाड़ी के रूप मेसी का सम्मान करते हुए भी यह हीनताबोध बहुत पीड़ादायक है। आखिर हमें क्यों किसी विदेशी के पीछे भागने की जरूरत पड़ती है और सबसे पहली बात हम जिन विदेशियों के पीछे भागते हैं, आपके देश की प्रतिभाओं को चमकाने में उनका क्या योगदान है। क्या मेसी फुटबॉल में भारत को आगे ले जाने के लिए कुछ करेंगे, सीधा सा जवाब है नहीं, बिल्कुल नहीं और उनके लिए हम कोलकाता वालों ने क्या किया….खुद को कमतर साबित किया और सारी दुनिया में तमाशा बन गये। अपने ही स्टेडियम को नुकसान पहुंचाया और इसकी भरपाई भी हम अपने ही पैसों से करने जा रहे हैं।
आप खुद से पूछिए कि क्या ये हिप्पोक्रेसी नहीं है कि आप पदक की उम्मीद अपने खिलाड़ियों से करते हैं और पैसे एक विदेशी खिलाड़ी पर लुटाते हैं। कितने लोगों ने उन खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाया और कितनी कंपनियां उन खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने और उनकी मदद करने के लिए उतरीं जो आर्थिक तंगी और संघर्षों के बीच अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं। आज सोशल मीडिया न होता तो हम तो इनके नाम भी नहीं जान पाते। चलिए जरा इतिहास देखते हैं। बात साल 1911 की है. यह साल बंगाल में फुटबॉल के इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ।ऐसा इसलिए क्योंकि 1889 में शुरू हुए मोहन बागान क्लब ने अंग्रेजों की ईस्ट यॉर्कशायर टीम को 2-1 से हराकर आईएफए शील्ड जीत ली थी। उस जीत ने काफी कुछ बदल दिया था. खास बात यह थी कि उस मुकाबले में मोहन बागान के खिलाड़ी नंगे पैर खेले थे। यह पहली बार था जब किसी भारतीय टीम ने यह प्रतिष्ठित टूर्नामेंट जीता। इस जीत ने साबित कर दिया कि भारतीय किसी से कम नहीं हैं। यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं थी, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का पल थी, जिसे भारतीय आत्मसम्मान की जीत माना गया। यही वो जीत थी, जिसके बाद फुटबॉल बंगाल की रगों में बस गया और आज वहां हर गली और हर दिल में यह खेल बसता है। बाइचुंग भूटिया का जन्म 15 दिसम्बर, 1976 को गंगटोक, सिक्किम में हुआ था। ये भारत के प्रसिद्ध फ़ुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। 1999 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ जीतने वाले बाइचुंग भूटिया अपने प्रशंसकों के बीच अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल क्षेत्र में भारतीय फ़ुटबॉल टीम के ‘टार्च बियरर’ अर्थात् मार्गदर्शक के नाम से जाने जाते है। वह भारतीय फ़ुटबॉल के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, उनका खेलने का अलग अंदाज़है, उनमें उत्तम दर्जे की स्ट्राइक करने की क्षमता है। वह वास्तव में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। वह भारत के पहले फ़ुटबॉल खिलाड़ी है, जिन्हें इंग्लिश क्लब के लिए खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था। अब बताइए क्या हम भारतीयों को अपने खिलाड़ियों से उम्मीद करने का हक है, जिनकी हम कद्र तक नहीं करते। सुनील छेत्री के संन्यास के बाद फीफा ने एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट किया है जिसमें छेत्री की तुलना पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो और अर्जेंटीना के लियोनेल मेसी से की है। दरअसल, सुनील छेत्री सक्रिय खिलाड़ियों में फुटबॉल की दुनिया में सबसे ज्यादा गोल करने के मामले में तीसरे नंबर पर है। उनसे आगे रोनाल्डो और मेसी ही हैं। वहीं इंटरनेशनल फुटबॉल में सबसे ज्यादा गोल करने के मामले में वह चौथे नंबर पर हैं। छेत्री के नाम 150 मैचों में 94 गोल हैं। पहले नंबर पर रोनाल्डो हैं और उनके बाद मेसी। फीफा ने इन तीनों की फोटो पोस्ट की है जिसमें पोडियम पर पहले नंबर पर रोनाल्डो, दूसरे पर मेसी और तीसरे पर छेत्री हैं। इसके साथ ही फीफा ने कमेंट लिखा है, “लीजेंड के तौर पर रिटायरमेंट लेते हुए।”छेत्री ने भारतीय फुटबॉल को उस मुकाम तक पहुंचाया जहां तक किसी ने सोचा नहीं था। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम फीफा रैंकिंग में पहली बार टॉप-100 में आई। वह भारत की तरफ से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी भी हैं। दुनिया भर के अलग-अलग क्लबों के लिए खेले गए 365 मैचों में छेत्री ने 158 गोल किए। सच तो यह है कि हम भारतीय पैसे विदेशी खिलाड़ियों पर लुटाते हैं और पदक की उम्मीद भारतीय खिलाड़ियों से करते हैं जो कि हमारी नजर में सरासर बेईमानी है। मेसी के खेल का सम्मान हम करते हैं, निश्चित रूप से वह बड़े खिलाड़ी हैं मगर सवाल तो यह है कि भारतीय खेलों को आगे ले जाने में उनकी क्या भूमिका है, कुछ भी नहीं। आज सच कहें तो जिस तरह के तथाकथित खेल प्रेमी इस देश में हैं और खासकर बंगाल में हैं…वह खेल के प्रति नहीं, तमाशा और दिखावे की दीवानगी है। खिलाड़ियों पर सवाल उठाने से पहले हम भारतीय खेल प्रेमियों को अपने भीतर झांकने की जरूरत है। फिलहाल तो बंगाल में जो हुआ, वह बेहद शर्मनाक है।

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