नयी दिल्ली : साल 2022 तक तीन भारतीयों को गगनयान परियोजना के तहत अंतरिक्ष भेजने की मुहिम को भारत सरकार से मंजूरी मिल गई है। तीन भारतीय वहां सात दिन बिताएंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यूनियन कैबिनेट ने इसके लिए बजट भी मंजूर कर दिया है। बताया जा रहा है कि इसमें 10 हजार करोड़ का खर्च आएगा। कैबिनेट में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की ताकत तेजी से बढ़ रही है। इसरो ने हाल ही के दिनों में एक साथ 104 उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने का रिकार्ड बनाया है। इस दिशा में यह एक और बड़ी पहल है। भारत के 72 वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गगनयान परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना की मदद से भारत, अंतरिक्ष में इंसान भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। अभी अंतरिक्ष में अमेरिका, रूस और चीन की ओर से ही मानवयान भेजे गए है।
इस परियोजना की दस मुख्य बातें
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष बंदरगाह से तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए अपने सबसे बड़े रॉकेट, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (GSLV Mk III) को तैनात करने की तैयारी में है।
अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा 40 महीनों के भीतर पहला मिशन शुरू करने की उम्मीद है। नमूने के तौर पर पहले चरण में 5-7 दिनों के लिए पृथ्वी की कक्ष में दो मानव रहित और एक मानव समेत विमान भेजा जाएगा।यह पूरी कवायद मिशन को लेकर लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए किया जाएगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ.के सिवन ने 2022 की समयसीमा पर टिप्पणी करते हुए पहले कहा था कि इसके लिए यह काफी कम समय है, लेकिन इसरो इसको पूरा करेगा। भारत को इस परियोजना में रूस और फ्रांस की सहायता मिलेगी। दोनों ही देशों ने स्वेच्छा से इस कार्यक्रम से जुड़ने की पहल की थी।
भारत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को ‘व्योमनट्स’ नाम देगा क्योंकि संस्कृत में ‘व्योम’ का अर्थ अंतरिक्ष होता है।
अभी तक इसरो ने इस परियोजना में 173 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह पूरा खर्च मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित करने में आया है। इस योजना की शुरुआत 2008 किया गया था,लेकिन अर्थव्यवस्था और भारतीय रॉकेटों के असफलताओं के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका।
भारत ने 2007 में सैटेलाइट रिकवरी एक्सपेरिमेंट के माध्यम से अपनी पुनः प्रवेश तकनीक का परीक्षण किया जब 550 किलोग्राम के उपग्रह को कक्ष में भेजा गया और फिर सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाया गया।
प्रयोग में हल्के सिलिकॉन टाइलों का इस्तेमाल किया गया था,जिससे अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से सुरक्षित प्रवेश करने में मदद मिलती है।
2014 में, भारत ने एक क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट (केयर) का परीक्षण किया,जिसमें 3,745 किलो का स्पेस कैप्सूल, चालक दल के मॉड्यूल का एक प्रोटोटाइप, जिसका भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा उपयोग किया जाएगा को अंतरिक्ष में भेजा गया था। पहली उड़ान के दौरान वायुमंडल में लॉन्च किया गया GSLV Mk III को बंगाल की खाड़ी में सुरक्षित पाया गया था।
इसरो ने अब स्पेसूट(अंतरिक्ष पोशाक) बनाने की कला में भी महारत हासिल कर ली है। इसका उपयोग भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा किया जाएगा जब वे श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे।
इस साल की शुरुआत में, इसरो ने 5 जुलाई को एक महत्वपूर्ण पैड एबॉर्ट टेस्ट किया। इसमें लॉन्चपैड पर दुर्घटना के दौरान चालक दल को सुरक्षित बचाने को लेकर 12.5 टन के क्रू मॉड्यूल का परीक्षण किया गया।