बचपन में मां की डाँट सुनकर भी
जिस माटी के साथ खूब खेला करते थे
आज बड़े हो जाने पर
उसी माटी से दूर भागता देख
कैसा महसूस करती होगी माटी
जिस माटी की रक्षा के लिए
सीमा पर खड़े रहते जवान
आज उसी माटी को
कचरे के ढ़ेर से सजा देख
कैसा महसूस करती होगी माटी
जिस मुर्ति की सुंदरता
खींच लाती लोगों को कहां कहां से
कुछ वक्त बाद उसी मुर्ति को
कभी नदी किनारे तो
कभी सड़क किनारे यूं ही पड़ा देख
कैसा महसूस करती होगी माटी
सोचा जरा
जिन हाथों मे माटी लेकर शपथ लेते
उन्हीं हाथों से अपनी ऐसी दशा होता देख
कैसा महसूस करती होगी माटी