माँ !मुझे अखरता है ,तेरा मेरे पास न होना

नीलम सिंह 

वर्षो बाद छलक अाई आँख मेरी
माँ !तेरी ममता याद करके /

मैने पोंछ लिया था आंसू ,
सोच कर कि ,
अब इसे नही बहना है /

आज याद आया मुझे
कि मैं आती जब दिन भर के बाद ,
तुम देखती मेरा मुरझाया मुँह ,
जान जाती तुम मेरी भूख ,
पीछे घुमती मेरे लेकर फ्लेट
करती मनुहार कुछ खाने को
कहती खा ले ,
दो केले ,एक सेव ,पी ले ग्लास भर दूध
व्रत है तेरा ,,
क्या पता कुछ खाया य़ा नही ,
रह गई यूँ ही सारा दिन /
जानती हूँ मैं ……..
तू है लापरवाह /

बार -बार मना करने पर भी ,
तुम नही मानती /

आज खलती है मुझे तेरी कमी ,
जब घूसते ही घर में ,
हर चेहरा नाराज दिखता है ,
हर लव शिकायत करती है ,
हर अाँख काम खोज़ता है /

बेमन उठती हूँ ,सारे छूटे काम निबटाती हूँ ,
करती हूँ याद तेरा ममता भरा स्पर्श ,
तेरी स्नेह से लिपटी बातें ,
तेरी गोद में सिर रखना ,
तेरे हाथों से साग भात खाना ,
गलती करने पर मेरी ढाल बनना /
माँ !मुझे अखरता है ,तेरा मेरे पास न होना /

माँ,न होती तो मैं न होती

आँखें खुली तो माँ को पाया ,
माँ के आँचल में झूला ,झूला।
माँ ने जब सहलाया मुझको,
तब मुझे चेतना आई।
माँ ने जब अँगुली पकडा़या,
तब,जाकर मुझे चलना आया।
पढ़ना-लिखना, हँसना -रोना,
सब मुझको माँ ने सिखलाया।
माँ,न होती तो मैं न होती
ये जीवन,ये संसार न होता।

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