मेदिनीनगर । झारखंड के पलामू प्रमंडल में नेतरहाट और बेतला समेत कई पर्यटक स्थल है। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पास कई परंपरागत हुनर मौजूद है। राज्य सरकार की ओर से इन्हें प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा आवश्यक वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है। महिला-पुरुषों को सिर्फ हुनरमंद बनाने का ही काम नहीं चल रहा है। बल्कि उनके उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने का कार्य भी जोरों से चल रहा है। ग्रामीण महिलाओं की ओर से निर्मित वस्तुओं को उचित मूल्य मिले, इसके लिए प्रयास हो रहे हैं। इसी कड़ी में ‘पाथिक ग्राम दुकान’ की व्यवस्था की गई है। पलामू प्रमंडल के दुबियाखांड़-नेतरहाट मुख्य मार्ग पर ‘पथिक ग्राम दुकान‘ की व्यवस्था की गई है। सेसा प्रशिक्षण केन्द्र परिसर में हस्तशिल्प उत्पादों को प्रदर्शित कर बिक्री की व्यवस्था की गई है। ये ‘पथिक ग्राम दुकान‘ दुबियाखांड से बेतला सड़क की ओर करीब 1.5 किलोमीटर पर स्थित है। नैसर्गिक सुंदरता का दीदार करने करने हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक पलामू आते है। पलामू प्रमंडल में बेतला राष्ट्रीय उद्यान, केचकी संगम और पहाड़ों की रानी नेतरहाट जैसे नामचीन पर्यटक स्थल है। जहां सड़क के दोनों ओर घने जंगल में अवस्थित ‘पथिक ग्राम दुकान‘ एक बार यहां रूकने का इशारा करता है। पथिम ग्राम दुकान में बांस और मिट्टी के आकर्षक गहने, माला और झारखंड की संस्कृति को जोड़ती कलात्मक वस्त्र उपलब्ध है। इसके अलावा मिट्टी से बने डिजाइनर दीया और आर्टिफिशयल ज्वेलरी स्टैडिंग मॉडल, पेन-पेंसिल बॉक्स, जूट के थैले, समेत कई सामग्री उपलब्ध है। दुकान में भगवान बिरसा मुंडा, शहीद नीलाम्बर-पीताम्बर और राजा मेदिनीराय की मूर्तियां उपलब्ध है।
प्रशिक्षण देकर आजिविका को किया जा रहा सशक्त
ग्रामीणों को जूट, बांस, और मिट्टी के उपकरण बनाने का प्रशिक्षण समय-समय पर दिया जाता है। इसमें नाबार्ड, हस्तशिल्प विभाग और वन विभाग की ओर से सहयोग किया जाता है। प्रशिक्षणार्थियों को आर्टिजन कार्ड भी उपलब्ध कराये गये हैं। प्रशिक्षक झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के भी आते हैं। महिलाओं को सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है, ताकि उन्हें कच्चा सामग्री की खरीद के लिए इधर-उधर नहीं जाना पड़े। पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर वसतु तैयार की गई है। प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण के निमित छात्रवृति भी दी जाती है। प्रशिक्षक गांव-गांव जाकर 15 दिनों एवं 1 माह का प्रशिक्षण देते हैं, ताकि ग्रामीण महिलाओं के हुनर का विकास हो सके और वे रोजगार से जुड़कर अपनी आमदनी बढ़ा सकें। समय-समय पर पुरूष वर्ग को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। जूट के अधिकांश उत्पाद पुरूष वर्ग की ओर से ही तैयार की जाती है। नाबार्ड डीडीएम शालीन लकड़ा का कहना है कि महिलाओं की ओर से तैयार हस्तशिल्प उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है। क्षेत्र में बड़ी संख्या में पर्यटक आते है और यादगार के रूप में कोई वस्तु अपने साथ ले चाहते है। इसी दृष्टिकोण से ‘पथिम ग्राम दुकान’ की व्यवस्था की गई है। ताकि पलामू आने वाले जब वापस लौटे, तो क्षेत्र में प्रसिद्ध कला को अपने साथ ले जाए।‘पथिक ग्राम दुकान‘ का संचालन कर रही संस्था सेसा के सचिव कौशिक मल्लिक पर्यटकों से मिल रहे रिस्पांस से काफी खुश है। उनका कहना है कि महिलाओं की ओर से निर्मित डोकरा और टेराकोटा आर्ट की चर्चा पूरे देश में होती है। इस एक्सक्लूसिव हैंडीक्राफ्ट आउटलेट में बिक्री से प्राप्त सहयोग राशि का उपयोग विभिन्न सामाजिक कार्यां में किया जाता है। जिसमें महिलाओं को शिक्षा, वस्त्र वितरण और चिकित्सका सेवा उपलब्ध कराना शामिल है।
महिलाएं घर में तैयार करती हैं हस्तशिल्प उत्पाद
अजय कुमार जूट से सामग्री निर्माण कार्य का प्रशिक्षण देते हैं। वे खूद भी वस्तु निर्माण करते हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं को प्रशिक्षण देकर जूट से पायदान और थैला और अन्य वस्तुओं को तैयार कराया जाता है। फिर दुकान में बिक्री के लिए रखा जाता है। महिलाएं अपने घर में ही रखकर इन सामग्रियों का निर्माण करती है। इसके लिए महिलाओं को को स्वयं सहायता समूह से भी जोड़ने का काम किया गया है।