भगवती की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली जिनके काले और डरावने रूप की उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एकमात्र ऐसी शक्ति है जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिलकर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आकर लेट गए थे।
प्रकृति त्रिगुणमयी हैं। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश … तीनो प्रकृति के तीन गुणों (अग्नि, जल, आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे सी क्यूब हैं ;अथार्त रचयिता, पालनकर्ता और विनाशकर्ता…। त्रिगुण ..जो वर्तमान में हैं, वही भविष्य में है,जो भविष्य में है, वही भूत में भी हैं।ये तीनों ही काल एक दूसरे के विरोधी हैं ,परन्तु आत्मतत्व स्वरुप से एक ही हैं।
मन के तीन अंग हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक। इसीलिए इन तीनों अंगों के अनुरूप ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्मयोग का समन्वय हुआ।जब तक तीनों तत्त्वों का समुचित योग नहीं होता तब तक साधक को सफलता नहीं मिल सकती ;अर्थात जब तक संसार में त्रिगुण के 6 प्रकार के मनुष्यो में शिव नहीं दिखता साधना(.5 ) में भी नहीं पहुंचती।वास्तव में,पहुंचना है तीनों के पार….साढ़े तीन में …3.5 में।त्रिगुण(.5 )हैं और दूसरा वह परब्रह्म (.5 ) हैं ;वह जहां कोई भी नहीं है, जहां तीनों नहीं हैं।यही हैं शक्तिसहित शिव अर्थात अद्वैत ब्रह्म। वह मूल शक्ति शिव ही हैं।
जीवन का मूल उद्देश्य है -शिवत्व की प्राप्ति।शक्ति के बिना ‘शिव’ सिर्फ शव हैं और शिव यानी कल्याण भाव के बिना शक्ति विध्वंसक।शक्ति जाग्रत करके शिव-मिलन कराना -यह क्रम समना तक चलता है।वास्तव में महाशिवरात्रि… रात्रि है,जाग्रत शक्ति को शिव भाव में मिलन कराने की। यही शिव और शक्ति साधना का रहस्य हैं।जो शक्ति जाग्रत करके शिवमिलन नहीं कराता वो रावण बनता हैं।और इस संसार में दोनों की ही आवश्यकता हैं..चाहे दिन और रात हो या श्रीराम और रावण।जीवन का मूल्य, मात्र सफलता में ही नहीं है।
सत्य के लिए हार जाना भी जीत है। क्योंकि उसके लिए हारने के साहस में ही आत्मा सबल होती है और इन शिखरों को छू पाती है, जो कि परमात्मा के प्रकाश में आलोकित हैं।सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्। शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं.. अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मंगल, परम कल्याण।
भगवान शंकर महाकाली के चरणों में आकर लेट जाते है अथार्त विध्वंसक महाऊर्जा को आधार देकर महाकल्याणकारी बना देते है।अब ये हम पर निर्भर करता है कि ‘हम क्या है’, क्या हम दक्ष है जो अपनी शक्ति का शिव से विवाह नहीं कराना चाहता या ‘हिमालयराज’?दक्ष का परिणाम भी हम सभी को मालूम है।तो महाशिवरात्रि का मूल उद्देश्य है अपनी ऊर्जा का शिव से मिलन कराने का /अपनी ऊर्जा को शिव का आधार देकर कल्याणकारी बनाने का…।
(साभार – वैदिक ऋषिकाएं फेसबुक पेज से)