कोलकाता : हमारे जीवन को संवारने में कला, साहित्य व संस्कृति का विशेष योगदान रहता है क्योंकि यही हमारे जीवन को संवारती हैं। यह सरकार का ही नहीं बल्कि हमारा भी दायित्व है कि हम इसका संरक्षण करें। देखा जाए तो कई बार कलाएँ ही किसी राज्य तथा देश का भी सांस्कृतिक परिचय बन जाती हैं. जैसे बिहार की सांस्कृतिक व कलात्मक पहचान मधुबनी या मिथिला पेंटिंग से है। इस कला को संवारने और समृद्ध करने के लिए कई पीढ़ियाँ लगी रहीं। हाल ही में शुभजिता जब विधाननगर मेले में पहुँची तो वहाँ उसकी मुलाकात एक ऐसे ही युवा कलाकार से हुई। हम बात कर रहे हैं मधुबनी पेंटिंग कलाकार प्रभाकर झा। प्रभाकर कोलकाता में ही रह रहे हैं और अपने भाई दिवाकर के साथ मधुबनी पेंटि्ग्स की विविधता को बिखेर रहे हैं। प्रभाकर बताते हैं कि वे जिस कलाग्राम जितवारपुर में जन्मे, उसका नाम कलाग्राम इसलिए पड़ा क्योंकि वहाँ 80 प्रतिशत लोग कला के क्षेत्र में ही सक्रिय है। दोनों भाइयों ने अपनी कला के साथ अपने अध्ययन को भी महत्व दिया। आज प्रभाकर कोलकाता में सी ए की पढ़ाई कर रहे हैं तो दिवाकर भोपाल में बी.टेक कर रहे हैं। प्रभाकर के अनुसार मधुबनी (मिथिला) लोकचित्र बनाना इनके लिए विरासत को सम्भालने जैसा है और यह हुनर उनमें आनुवांशिक है तो यह कला उन्होंने अपनी माँ पूनम देवी से सीखी जो खुद एक दक्ष कलाकार हैं। दोनों भाई मधुबनी लोकचित्र बनाने के साथ दुर्गापूजा पंडालों में भी अपनी कला का कमाल दिखाते हैं। कई बड़ी प्रदर्शनियों में भाग ले चुके हैं। आप भी सुनिए प्रभाकर क्या कह रहे हैं –