-प्रीति साव
मजदूर अपना श्रम बेचता है,
मजदूर किसी भी क्षेत्र में
परिश्रम करता है,
मजदूर अपने घर परिवार का
दो वक्त रोटी के लिए ईंटें ढोता है,
वह सड़कों, पुलों, भवनों के निर्माण में
अपना भरपूर योगदान देता है ।
वह मजदूर जो कड़कती धूप में भी
नंगे पाँव कुछ दो पैसे लाने के लिए
निकल पड़ता ,
तालाब, कुओं, नहरों और
झीलों के निर्माण में भी
वह कठिन परिश्रम करता।
रिक्शाचालक, कर्मचारी,
बढ़ई, लोहार,हस्तशिल्पी,
दर्जी और पशुपालन
वास्तव में ये सब
मजदूर ही है,
जो हर क्षेत्र में योगदान दें रहें है।
तब भी एक वह वर्ग
जो पूंजीपति है,
वह मजदूरों पर कितना अत्याचार और
शोषण करता है,
फिर भी वह सह लेते है ।
एक वह मजदूर जो
एक छोटे से घर में भी अपना
जीवन यापन सुख से कर लेते हैं ,
केवल छोटे घरों में ही नहीं,
वह फुटपाथों पर भी रह लेते है ।
फिर भी इनके दर्द को समझने वाला
कोई नहीं होता,
कौन समझे इस मजदूर के दर्द को
कौन जाने इस मजदूर के श्रम को ।।