Sunday, September 14, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]

भाषायी लोकतंत्र का नेतृत्व तो हिन्दी को ही करना है

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए याद दिलाना चाहती हूँ कि अब दुकानों के बोर्ड बांग्ला में लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। कहने का मतलब यह है कि आप किसी भी भाषा के हों, बांग्ला में ही लिखना होगा। यह अनिवार्य पहले भी था हिन्दी व अंग्रेजी के साथ बांग्ला लिखी जाती थी। उन इलाकों में जहां बांग्ला ही बोली जाती है, वहां पर यह समझ में आता है मगर जहाँ हिन्दीभाषी ही अधिक हों…वहाँ इस नियम का क्या अर्थ है, समझ के बाहर है। बंगाल सरकार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलना़डु समेत तमाम हिन्दी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिन्दी विद्वेषियों से पूछना चाहती हूँ कि अगर आप पर हिन्दी थोपना गलत है तो आपके राज्यों में जो हो रहा है, वह सही है। क्या सारे अधिकार क्षेत्रीयता के आधार पर निर्धारित होंगे..जब आप सिर्फ अपने राज्य की बात करते हैं तो कहीं न कहीं अपने राज्य के विस्तार को संकुचित कर रहे होते हैं। क्या आपके राज्यों में सिर्फ आपकी भाषा बोलने वाले लोग ही रहते हैं या फिर ऐसा है क्या कि वह राजस्व नहीं भरते। बंगाल का सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियां गिनवा रहा है. इस संदर्भ में, मैं यह बताना चाहूंगी कि 2011 से हमने राज्य में हिंदी भाषी लोगों के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। जिन क्षेत्रों में 10 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदी बोलती है, वहां हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने का प्रावधान किया गया है।’’ इस अवसर पर बनर्जी ने हिंदी अकादमी की स्थापना, हावड़ा में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना, बनरहाट और नक्सलबाड़ी में हिंदी माध्यम के कॉलेज और कई कॉलेजों में हिंदी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करने जैसी पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि रवींद्र मुक्त विद्यालय में उच्चतर माध्यमिक परीक्षा के प्रश्नपत्र और माध्यमिक परीक्षाएं अब हिंदी में उपलब्ध हैं। बनर्जी ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के हिंदी भाषी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार किया गया है। क्यों हर एक राज्य में यूपी व बिहार के लोगों को टारगेट किया जा रहा है। एक बात जान लीजिए जब आप किसी को अनावश्यक नीचा दिखाते हैं तो यह आपकी कुंठा को दिखाता है।
हम जानना चाहते हैं कि वह लोग कौन थे जिन्होंने इन्द्रधनुष के बांग्ला पर्याय रामधनु को रंगधनु बना दिया था। राज्य सरकार की नौकरियों में हिंदी, संथाली और उर्दू को खत्म कर बांग्ला भाषा का पेपर अनिवार्य कर दिया गया है। प्रश्नपत्र का स्तर माध्यमिक (10वीं) के समकक्ष रखा गया है। पिछले कई वर्षों से यह नीति धीरे-धीरे क्रमिक रूप से लागू की गई है। पहले पुलिस जवानों की नियुक्ति में बांग्ला को अनिवार्य किया गया। उसके बाद इसे धीरे-धीरे सभी सरकारी नियुक्तियों में अनिवार्य कर दिया गया। 15 मार्च, 2023 को राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर सरकारी अधिकारियों (सिविल सर्विसेज एग्जीक्यूटिव) की नियुक्ति में भी बांग्ला अनिवार्य कर दिया है। हिंदी, उर्दू और संथाली के विकल्प को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के हटा दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि अब सरकारी नौकरियों में हिंदी, उर्दू और संथाली भाषा के युवक-युवतियों के प्रवेश पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। बंगाल के भाषाई अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को 43 साल पहले से 10वीं कक्षा तक आवश्यक तीसरी भाषा के रूप में बांग्ला लिखने, पढ़ने और बोलने की सुविधा से वंचित रखा गया। अब 2023 से उन्हें 10वीं कक्षा में अनिवार्य रूप से बांग्ला भाषा का पेपर उत्तीर्ण करने के लिए कहा जा रहा है। बांग्ला दक्षता परीक्षा अनिवार्य रूप से ली जा रही है। यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 16 के प्रावधानों के खिलाफ भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों के साथ भेदभाव है। भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों को बांग्ला पढ़ने से एतराज नहीं है। उनका कहना है कि हिंदी, उर्दू, संथाली माध्यम के स्कूलों में दक्षता हासिल करने के लिए 10वीं कक्षा तक बांग्ला भाषा को अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया जाना चाहिए। जैसा कि वर्ष 1980 तक था। वर्ष 1981 से 2023 तक मध्यमा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बांग्ला भाषा में एक वर्षीय प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जानी चाहिए। बांग्ला भाषा में दक्षता हासिल करने के लिए भाषाई अल्पसंख्यक छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिलने चाहिए। जब तक हिंदी, उर्दू, संथाली और नेपाली भाषी छात्रों को ऐसी सुविधा नहीं दी जाती, तब तक सभी सरकारी नियुक्ति परीक्षा के संबंध में अधिसूचना को स्थगित रखा जाना चाहिए। इसे लेकर अब तक बात कहां तक बढ़ी…पता नहीं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन इस हद तक पहुंच गया है कि वहां हाल ही में बजट लोगो से भी रुपये का देवनागरी सिंबल हटाकर तमिल अक्षर कर दिया गया है। तमिलनाडु में हिंदी पर मचे संग्राम के बीच अब आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण की टिप्पणी आई है। उन्होंने इस मामले में तमिलनाडु सरकार के रवैये पर सवाल खड़े किए हिन्दी कोई बाहरी भाषा नहीं कि उसे अपने ही देश में उपनिवेश स्थापित करना पड़े। यह तो देश के बहुलांश द्वारा बोले जाने वाली भाषा है। मनसे और उद्धव सेना पहले से ही हिन्दीभाषियों को मराठी न बोल पाने की सजा दे रही है। कर्नाटक में कन्नड़ बुलवाने के लिए हिंदीवालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। यहां बात भाषायी लोकतंत्र की है। संसाधन और शिक्षकों की कमी से न जाने कितने स्कूल बंद हो चुके हैं। इस देश का हर राज्य, हर एक क्षेत्र एक दूसरे पर निर्भर है और हिन्दी वह धागा है जो समूचे राष्ट्र को जोड़ती है।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news