Tuesday, August 26, 2025
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भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सच्चे सिपाही और समय से आगे रहे महाराज कामेश्वर सिंह

भारत की आजादी में उनका योगदान इतना अधिक माना जाता है कि उस जमाने के तमाम बड़े नेता और स्वतंत्रता सेनानियों को उन्होंने किसी न किसी रूप में सहायता देने की कोशिश की थी। देश के लिए संघर्ष करने वालों में जिन हस्तियों को दरभंगा महाराज की मदद मिली उनमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी जैसे नाम भी शामिल हैं। उन्हें महाराजा की उपाधि जरूर मिली थी, लेकिन वह किसी रियासत के राजा नहीं थे। बल्कि, वह भारत के सबसे बड़े जमींदार थे। वह अपने जमाने के एक बड़े उद्योगपति भी थे और जिस बिहार में आज भी उद्योग नहीं हैं, वह अंग्रेजों के जमाने में 14 औद्योगिक यूनिट के मालिक थे। दरभंगा राज में आज से 7-8 दशक पहले भी चीनी, जूट, कॉटन, लौह एवं इस्पात, एविएशन और प्रिंट मीडिया जैसे उद्योग मौजूद थे और हजारों लोगों के रोजगार का जरिया थे।

ब्रिटिश सरकार भी सम्मान करती थी

दरभंगा राज के राजा महाराजाधिराज सर रामेश्वर सिंह गौतम के पुत्र थें। इनका जन्म 28 नवंबर 1907 को हुआ था। वह तीन जुलाई 1929 को अपने पिता की मृत्यु के बाद दरभंगा राज के उत्तराधिकारी घोषित हुए थे। इन्होंने 1930-31 में आयोजित पहले दौर की टेबल कांफ्रेंस के पहले दौर के लिए लंदन का दौरा किया था। वे वर्ष 1933-1946 तक, 1947-1952 तक भारत की संविधान सभा के सदस्य रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, इन्हें झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1952-1958 संसद सदस्य (राज्य सभा) के रूप में चुना गया था और 1960 में फिर से निर्वाचित हुए और 1962 में अपनी मृत्यु तक राज्य सभा के सदस्य रहे।

समृद्धि और शक्ति दोनों के लिए जाने जाते हैं

भारत में सबसे बेहतरीन जवाहरातों का संग्रह हैदराबाद के निजाम के पास था तथा उनके बाद दूसरा स्थान बड़ौदा के गायकवाड़ को दिया जाता है पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस प्रकार के विश्वस्तरीय जवाहरातों का संग्रह करने वालों में तीसरा स्थान रखते थे भारत के सबसे बड़े , धनी और प्रभावशाली ज़मींदारी एस्टेट दरभंगा राज के अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह | सन १९५० से १९६० के दशक के सबसे अमीर और शक्तिशाली व्यक्तियों में उनका शुमार होता था| कामेश्वर सिंह को अनमोल जवाहरातों को संग्रह करने का बड़ा शौक था | सन १९४७ में लगाए गए एक अनुमान के अनुसार उस वक्त भारत में लगभग १५० विश्वस्तर के अनमोल रत्न एवं जवाहरातों का संग्रह था।

महाराजा कामेश्वर सिंह जनता की भलाई के लिए कई कदम उठाते थे| वे नयी विचारधारा के थे| वे उस जमाने के मशहूर व्यवसायी भी थे| वो 14 व्यवसायों के मालिक थे| चीनी उद्द्योग, कोयला, सूती कपड़ा, जुट, लोहा एवं इस्पात, पेपर, प्रिंट मीडिया, बिजली और रेलवे तक के कारखाने चलाते थे| एयरलाइन की कम्पनी ‘दरभंगा एयरलाइन’ इन्हीं की कम्पनी थी, ‘ द इंडियन नेशन’और आर्यावर्त इन्हीं के मीडिया हाउस से निकलती थे।| इस प्रकार उन्होंने जनता को सिर्फ किसानी/ खेती के लिए नहीं बल्कि अन्य उद्द्योगों में भी रोजगार देने की कोशिश की थी तथा उन्हें जागरूक किया था| हालाँकि यह उनके पिताजी द्वारा स्थापित व्यवसाय था, जिसे उन्होंने काफी आगे बढ़ाया|

भारत का पहला भूकम्परोधी भवन नरगौना पैलेस इन्होंने ही बनवाया

तिरहुत सरकार महाराजा कामेश्‍वर सिंह की कंपनी वाल्‍डफोड न केवल भारत में रॉल्‍स की वितरक थी, बल्कि उनके पास रॉल्‍स की एक से एक गाडियाँ थी। बेंटली ने सौ साल से अधिक पुराने अपने इतिहास में केवल तीन स्‍पोर्टस कार बनायी, जिनमें से दो भारत के लोगों ने खरीदा। तीन में से एक कार दरभंगा की सडकों पर चलती थी। 1951 में जब भारत के राष्‍ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद दरभंगा आये थे तो उनके काफिले में 34 रॉल्‍स गाडियां शामिल थी, जो उस वक्‍त का सबसे समृद्ध निजी काफिला माना गया था।

महाराजा ने अपने लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस जैसे भव्य भवन को प्राच्य विद्या के प्रचार-प्रसार के लिए 1961 में दान दे दिया था। एक ही राज परिवार के मदद से एक ही कैंपस में दो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। दरभंगा बस स्टैंड के समीप स्थित दरभंगा राज का किला , सामने वाली सड़क से गुजरने वालों का ध्यान बरबस ही खीच लेता हैं । दरभंगा के महाराज का यह किला उत्तर बिहार के दुर्लभ और आकर्षक इमारतों में से एक है । भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने 1977-78 में इस किले का सर्वेक्षण भी कराया था , तब इसकी ऐतिहासिक महत्वता को स्वीकार करते हुए किले की तुलना दिल्ली के लाल किले से की थी । ये जो राज का किला है, दिल्ली के लाल किले से कम नहीं है। फर्क बस यह है कि लाल किले का रख-रखाब किया जाता है और राज किले का नहीं।

यहाँ गाँधी जी ठहरे थे, बाद में इसे संग्रहालय बना दिया गया

दरभंगा के अंतिम महाराजा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह (1907-62) वो पहले भारतीय थे, जिन्होंने उस समय की जानी-मानी मूर्तिकार क्लेयर शेरिडेन से महात्मा गांधी की एक अर्ध-प्रतिमा बनवाई थी। शेरिडेन पूर्व ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल की भतीजी थीं। एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक बाद में वह प्रतिमा तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस यानि आज के राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शित करने के लिए उस समय के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो को सौंप दी गई। 1940 में लॉर्ड लिनलिथगो को लिखी एक चिट्ठी में खुद महात्मा गांधी ने यह बात बताई थी। बाद में 1947 में बापू जब बिहार के दौरे पर गए तो एक इंटरव्यू में उन्होंने महाराजा कामेश्वर सिंह की खूब सराहना करते हुए उन्हें एक बेहद ही अच्छा इंसान और उन्हें अपने पुत्र के समान बताया था।

दरअसल, महात्मा गांधी की अगुवाई वाले स्वतंत्रता आंदोलन और बाद के वर्षों में भी देश के लिए दरभंगा के महाराजा के योगदानों की काफी सराहना होती है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने एयरफोर्स को तीन फाइटर विमान दान में दिए थे। एक और मौके पर उन्होंने त्योहार मनाने के लिए सेना के हर एक जवान को 5,000 रुपये बतौर उपहार में दिए थे। आर्मी के मेडिकल कोर को उस जमाने में उन्होंने 50 एंबुलेंस दान में दिए थे। दरंभगा महाराज के जीवन से जुड़ी कई अहम जानकारियां ‘करेज एंड बेनेवॉलेंस: महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह’ नाम की किताब में मिलती है। इस किताब में महाराजा के संबंध में कई अहम बातें मौजूद हैं।


देश के कई यूनिवर्सिटी को दिए थे दान
दरभंगा महाराज की जमींदारी 2,500 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा दायरे में फैली थी, जिसमें बिहार और बंगाल के 18 सर्किल और 4,495 गांव आते थे। उन्होंने अपनी जमींदारी के संचालन के लिए 7,500 से ज्यादा अधिकारियों की तैनाती कर रखी थी। सिर्फ राजनीति, उद्योग और समाजसेवा में ही उनका योगदान नहीं था। उन्होंने शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देने के लिए भी दिल खोलकर दान दिए थे। कलकत्ता यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, पटना यूनिवर्सिटी और बिहार यूनिवर्सिटी सबको उन्होंने दाम में मोटी रकम दी थी। जबकि पार्टी के तौर पर कांग्रेस को तो उन्होंने हमेशा ही दान दिया था और गरीब तबकों और सामाजिक संगठनों को भी बढ़-चढ़ कर सहयोग किया।

(स्त्रोत साभार – विकिपीडिया, लोकल मीडिया कनेक्ट, वन इंडिया)

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