भारतीय शतरंज में प्रगति के जनक: ‘स्वर्णिम पीढ़ी’ को तराशने में आनंद की भूमिका

नयी दिल्ली । विश्वनाथन आनंद को भरोसा था कि भारत इस बार शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने की स्थिति में होगा और भारतीय शतरंज में कुछ सबसे प्रतिभाशाली युवाओं को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस दिग्गज ग्रैंडमास्टर को उस समय बहुत खुशी हुई होगी जब देश ने हंगरी के बुडापेस्ट में 45वें शतरंज ओलंपियाड में पुरुष और महिला दोनों वर्गों में स्वर्ण पदक जीता। विश्व चैंपियनशिप के चैलेंजर डी गुकेश, आर प्रज्ञानानंदा, अर्जुन एरिगेसी, विदित गुजराती और पी हरिकृष्णा की मौजूदगी वाली भारतीय पुरुष टीम ने ओपन वर्ग में स्वर्ण पदक जीता और शीर्ष वरीयता प्राप्त अमेरिका और उज्बेकिस्तान को पीछे छोड़ा।
हरिका द्रोणावल्ली, आर वैशाली, दिव्या देशमुख, वंतिका अग्रवाल और तानिया सचदेव ने महिलाओं के वर्ग में कजाखस्तान और अमेरिका की टीमों को पछाड़कर भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। भारत की दोनों टीमों ने पहली बार स्वर्ण पदक जीता और देश के पहले शतरंज सुपरस्टार आनंद की इसमें भूमिका रही।

दोनों टीमों ने चेन्नई में घरेलू सरजमीं पर हुए पिछले ओलंपियाड में कांस्य पदक जीते थे। आनंद को पता था कि उस समय वे स्वर्ण पदक जीतने के करीब पहुंचे थे लेकिन अंतिम चरण में पिछड़ गए। हालांकि ओलंपियाड से पहले ‘पीटीआई’ को दिए साक्षात्कार में पांच बार के विश्व चैंपियन आनंद ने बुडापेस्ट में दोनों टीमों की खिताब जीतने की क्षमता पर भरोसा जताया था और यह यह सोने पर सुहागा था कि वह हंगरी की राजधानी में इन टीमों द्वारा बनाए गए इतिहास को देखने के लिए वहां मौजूद थे।

उन्होंने कहा था, ‘‘आप जानते हैं, अगर मुझे पासा फेंकना पड़े, तो ये अच्छी टीमें हैं (दांव लगाने के लिए)।’’गुकेश, प्रज्ञानानंदा, एरिगेसी और वैशाली ने वेस्टब्रिज आनंद शतरंज अकादमी में ट्रेनिंग ली है जिसे 54 वर्षीय आनंद ने चार साल पहले चेन्नई में स्थापित किया था।

18 वर्षीय गुकेश और 19 वर्षीय प्रज्ञानानंदा ने अक्सर कहा है कि वे ‘विशी सर’ के बिना उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते जहां वे हैं इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) ने उन्हें ‘भारतीय शतरंज में प्रगति के जनक’ के रूप में संबोधित किया।

इससे पहले महान ग्रैंडमास्टर गैरी कास्परोव ने आनंद की सराहना करते हुए कहा था कि ‘विशी आनंद के शिष्य धूम मचा रहे हैं’। उन्होंने गुकेश के अप्रैल में कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतकर सबसे कम उम्र में विश्व खिताब का चैलेंजर बनने के बाद यह बात कही थी।
आनंद इसका श्रेय खिलाड़ियों के माता-पिता और प्रारंभिक प्रशिक्षकों के साथ साझा करना पसंद करते हैं लेकिन उनका कहना है कि शतरंज अकादमी के उनके विचार ने भी अपनी भूमिका निभाई जो तीन दशक से भी अधिक समय पहले सोवियत संघ में देखे गए स्कूलों से प्रेरित था।
ओलंपियाड के दौरान फिडे के साथ बातचीत में आनंद ने स्वीकार किया था कि वे गुकेश और प्रज्ञानानंदा जैसे खिलाड़ियों की प्रगति से आश्चर्यचकित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उन सभी युवाओं को लिया जो 14 वर्ष की आयु से पहले ग्रैंडमास्टर बन गए थे। ईमानदारी से कहूं तो मेरा विचार उन्हें शीर्ष जूनियर से लेकर विश्व विजेता बनने तक समर्थन करना था।’’आनंद ने कहा, ‘‘मेरे शुरुआती समूह में प्रज्ञानानंदा और गुकेश था, अर्जुन कुछ समय बाद शामिल हुआ। लड़कियों में वैशाली भी थी। क्या मुझे उम्मीद थी कि ये इतनी तेजी से आगे बढ़ेगा? वास्तव में नहीं। क्या मुझे उम्मीद थी कि ऐसा हो सकता है? हां। लेकिन यह अविश्वसनीय है।’’
(साभार – द प्रिंट)

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