कोलकाता । हम जिन नोटों को सम्भालकर जेब या पर्स में रखते हैं, उन में बैक्टेरिया भी हो सकते हैं और बीमारी का कारण बन सकते हैं। विश्व के कई मेडिकल जर्नल इस बारे में काफी शोध प्रकाशित कर चुके हैं।
हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में सॉफिस्टिकेटेड एनालिटिकल इन्स्ट्रूमेंट फैसिलिटी द्वारा जारी एक अध्ययन के अनुसार भारतीय करेंसी नोटों में बैक्टेरिया, फंगस और वायरस होते हैं और यह फ्लू, मेनिन्जाइटिस, गले में संक्रमण जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। सब्जी बाजार, मांस विक्रेताओं, दूध और पान की दुकानों, मोची, पेट्रोल पम्प. किराने की दुकानों से लेकर दवाओं की दुकानों में भी नोटों के कारण बीमारियों का खतरा बना रहता है। पेप्टिक अल्सर, टॉन्सिलिटिस, तपेदिक, जननांग पथ के संक्रमण, हेपेटाइटिस सी, ऐसी अन्य बीमारियों के बीच।
हाल ही में हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बी.टेक (केमिकल इंजीनियरिंग) के तृतीय वर्ष के दो विद्यार्थियों, अनिरुद्ध होर, सप्तर्षि मित्रा ने ”भारतीय मुद्रा पर जीवाणुरोधी प्रभावों का अध्ययन’ विषय पर अपना शोध पत्र एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पढ़ा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियर्स द्वारा हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कोलकाता और एनआईटी, जालंधर के सहयोग से आयोजित एडवांस केमिकल एंड मटेरियल साइंसेज (एसीएमएस) -2022 नामक इस सम्मेलन में इस शोध पत्र को पुरस्कृत किया गया। शोध पत्र को बेस्ट ओरल प्रेजेन्टेशन यानी सर्वश्रेष्ठ वाचिक प्रस्तुति का पुरस्कार मिला। हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी परिसर में गत 14-16 अप्रैल को आयोजित इस सम्मेलन में कई आईआईटी, एनआईआईटी संस्थानों के अतिरिक्त बार्क ने भी भाग लिया। सम्मेलन में 586 शोध पत्र पढ़े गये, 16 अतिथि व्याख्यान भी हुए।
छात्रों ने माइक्रोस्कोप के तहत पहचाने गए रोगाणुओं से एक सॉल्यूशन तैयार किया, जो मुद्रा नोटों पर लागू होने पर भारतीय मुद्रा नोटों को लगभग 17 मिनट के लिए जीवाणुरोधी बना देगा। समाधान ज्यादातर प्राकृतिक अवयवों से बना था और मानव त्वचा के लिए बेहद उपयुक्त है।
यह शोध डॉ. अविजित घोष, सहायक प्रोफेसर, केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियर्स (आईआईसीएचई) द्वारा वित्तीय रूप से वित्त पोषित किया गया था। पेटेंट के लिए भी यही आवेदन किया गया था।