भारतीय भाषाओं से मिलकर बनी हिन्दी को राजभाषा बनाने की जरूरत – प्रो. जैन

कोलकाता : महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र, कोलकाता में सावित्रीबाई फुले सभा-कक्ष में ‘हिंदी दिवस समारोह’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई। इस अवसर पर ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी’ विषय पर बोलते हुए प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी प्रो.वृषभ प्रसाद जैन ने कहा कि भारतीय भाषाओं से मिलकर बनी हिन्दी को राजभाषा बनाने की जरूरत है। यहाँ की तमाम बोलियाँ, क्षेत्रीय भाषाएँ, उपभाषाएँ ही हिन्दी की असली ताक़त हैं। इनकी उपेक्षा ने हिन्दी का नुकसान किया है। आज हिन्दी का जिस तरह से वैश्विक प्रचार-प्रसार देखने को मिल रहा है, वह उत्साहवर्द्धक है। लेकिन भारत में आखिर क्यों सरकारें भाषाई स्कूलों को बंद करके विदेशी भाषा को बढ़ावा देने में लगी हैं ? केंद्र की विजिटिंग फैकल्टी प्रो. चंद्रकला पाण्डेय ने हिन्दी की संसदीय समितियों से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए राजभाषा के व्यावहारिक पक्षों पर उसकी सही जगह दिलाने के लिए संकल्प लेना होगा और ईमानदारी से उसके लिए काम करना होगा। कार्यक्रम का संचालन मीडिया प्राध्यापक डॉ. ललित कुमार ने किया। इस अवसर पर केंद्र के विद्यार्थियों काजल शर्मा, साक्षी कुमारी, पूजा साव, नैना प्रसाद एवं विवेक साव ने अपनी विविध रचनात्मक प्रस्तुतियाँ दीं। कार्यक्रम बात की। हिंदी प्राध्यापक डॉ. विवेक सिंह ने कहा कि हिन्दी एक बड़ी संपर्क भाषा है, इसलिए अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को हम जितना मजबूत करेंगे, हिन्दी भाषा की जड़ें उतनी ही मजबूत होंगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ ने हिन्दी की संवैधानिक स्थितियों पर बात करते हुए कहा कि एक गैर-हिंदीभाषी होते हुए भी डॉ बीआर अंबेडकर ने हिन्दी को राजभाषा बनाने की पुरज़ोर वकालत की थी। लेकिन आज हिन्दी वाले ही हिंदी की दुर्दशा करने में सबसे आगे हैं। हमें हिन्दी को में केंद्र कर्मी राकेश श्रीमाल, डॉ आलोक कुमार सिंह, सुखेन शिकारी एवं रीता बैद्य भी उपस्थित थे।

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