भगवान बुद्ध की स्मृतियाँ सहेजने वाले ऐतिहासिक स्थल

गौतम बुद्ध भारत विश्व को भारत की वह देन हैं जिन्होंने समता और मानवता का मतलब पूरी दुनिया को बताया। भारत ही नहीं बल्कि कई देशों में उनके द्वारा शुरू किये गये बौद्ध धर्म को अपनाया। महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े ऐसी ही ऐतिहासिक जगहों को जानिए

कपिलवस्तु – कपिलवस्तु गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन के राज्य शाक्य गणराज्य (शाक्य महाजनपद) की राजधानी थी. अब कपिलवस्तु दक्षिण नेपाल में एक जिला है। गृह त्याग से पहले गौतम बुद्ध यहीं अपने पिता के महल में निवास करते थे।
लुम्बिनी –गौतम बुद्ध का जन्म स्थान. यह नेपाल में रुपनदेही (Rupandehi) जिले में है। लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से पश्चिम में 8 मील दूर रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित है। दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था।
देवदह – गौतम बुद्ध का ननिहाल देवदह में था. वर्तमान में यह रुपनदेही जिले में एक नगरपालिका है।

कपिलवस्तु

बोधगया – बोधगया भारत में बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है। वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। समीपवर्ती गाँव की एक महिला सुजाता को पुत्र हुआ. उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष से मनौती की थी। वह मनौती पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। सिद्धार्थ वहां बैठे ध्यान कर रहे थे. उसे लगा कि ‘वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धारण करके बैठे हैं।’ सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा – “जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।” उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ. तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया।
सारनाथ – सारनाथ भारत में उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में है। आषाढ़ की पूर्णिमा को गौतम बुद्ध काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया. और पाँच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया. और उन्हें धर्म के प्रचार करने के लिये भेज दिया।
कुशीनगर – कुशीनगर भारत में उत्तरप्रदेश राज्य के कुशीनगर जिले में ही एक नगर है. यहाँ गौतमबुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था।
श्रावस्ती – श्रावस्ती राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर प्राचीनकाल में भारत के सबसे बड़े शहरों में से एक था. यह गोंडा-बहराइच जिलों की सीमा पर स्थित है। यहाँ प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल है। आज के सहेत-महेत गाँव ही श्रावस्ती है। अब “सहेत” बहराइच ज़िले में और “महेत” गोंडा ज़िले में पड़ता है। प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। यहाँ बुद्ध ने अपना सबसे अधिक तपस्वी जीवन बिताया था। बुद्ध ने इस प्राचीन शहर को 25 बरसात की ऋतुओं में अपना समय दिया. जिसमें अधिकांश समय जेतवन मठ को दिया। हजारों बौद्ध हर साल इस शहर में बुद्ध को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं। बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय आधुनिक श्रावस्ती में मठों का निर्माण करने के लिए आते हैं। पूरी दुनिया में बौद्धों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। श्रावस्ती उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला भी है, जिसका मुख्यालय भींगा है।

श्रावस्ती

साँची – साँची मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है। साँची तीसरी शताब्दी ईसवी पूर्व में निर्मित स्तूप के लिए प्रसिद्ध है। बौद्धों के आलावा अन्य धर्मों के सैंकड़ो हजार लोग हर साल साँची का दौरा करते हैं। साँची का महान स्तूप भारत में सबसे पुरानी वास्तु संरचना है। साँची का स्तूप बुद्ध के अनुयायी सम्राट अशोक के शासनकाल में बनाया गया था। यह बौद्धों के लिए आठ पवित्रतम स्थानों में से एक है। 1989 में यूनेस्को ने इस स्मारक को विश्व धरोहर घोषित किया है।
साँची का स्तूप – बौद्धनाथ स्तूप पूरी दुनिया में बौद्धों के लिए पूजा की एक पवित्र स्थान है। नेपाल में काठमांडू शहर से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्तूप 36 मीटर ऊंचा है। बौद्धनाथ स्तूप दुनिया के सबसे ऊंचे बौद्ध स्तूपों में से एक है। इस स्तूप का निर्माण किया जा रहा था, तब इलाके में भयंकर अकाल पड़ा था. इसलिए पानी न मिलने के कारण ओस की बूंदों से इसका निर्माण किया गया। बौद्धनाथ बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह नेपाल में पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है।

बगान – बगान म्यांमार में इरावदी नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह नगर 9 वीं शताब्दी से लेकर 13 वीं शताब्दी तक पुगं राज्य की राजधानी था। 11 वीं से 13 वीं शताब्दी के समय जब यह राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था, तब यहाँ 10 हजार से अधिक बौद्ध मन्दिर, पगोडा और मठ निर्मित किये गये थे। इनमें से 2200 मंदिर अब भी अच्छी स्थिति में विद्यमान हैं. बौद्ध मंदिरों को समर्पित दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र है।

साँची

बोरोबुदुर – बोरोबुदुर सबसे प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यह इंडोनेशिया में जावा द्वीप पर स्थित है। दुनिया में कुछ सबसे बड़े बौद्ध मंदिरों में से है। 20 लाख से अधिक पत्थर के ब्लॉकों निर्मित इन मंदिरों को पूरा करने में 75 साल लगे। इसका मूल आधार वर्गाकार है जिसकी प्रत्येक भुजा 118 मीटर (387 फीट) है। इसमें नौ मंजिले हैं जिनमें नीचली छः वर्गाकार हैं तथा उपरी तीन वृत्ताकार हैं। उपरी मंजिल पर मध्य में एक बड़े स्तूप के चारों ओर बहत्तर छोटे स्तूप हैं। प्रत्येक स्तूप घण्टी के आकार का है, जो कई सजावटी छिद्रों युक्त है. बुद्ध की मूर्तियाँ इन छिद्रयुक्त सहपात्रों के अन्दर स्थापित हैं। स्मारक में सीढ़ियों की विस्तृत व्यवस्था है। गलियारों में 1460 कथा उच्चावचों और स्तम्भवेष्टनों से तीर्थयात्रियों का मार्गदर्शन होता है। बोरोबुदुर विश्व में बौद्ध कला का सबसे विशाल और स्थापत्य कलाओं से पूर्ण स्मारक है।
8 वीं सदी में निर्मित मंदिरों को रहस्यमय तरीके से 14 वीं शताब्दी में छोड़ दिया गया। वैज्ञानिकों का मानना है एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट से ये मंदिर ज्वालामुखी राख के नीचे दब गये थे. जिससे यहाँ सबकुछ नाश हो गया था। उक्त तथ्य 2010 व 2014 में जावा में हुए जवालामुखी विस्फोटो से भी प्रामाणिक लगता है। अक्टूबर और नवम्बर 2010 में मेरापी पर्वत में भारी ज्वालामुखी विस्फोट से बोरोबुदुर बहुत प्रभावित हुआ। मंदिर परिसर से लगभग 28 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित ज्वालामुखी की राख मंदिर परिसर में भी गिरी। 3 से 5 नवम्बर तक ज्वालामुखी विस्फोट के समय मंदिर की मूर्तियों पर 2.5 सेंटीमीटर की राख की परत चढ़ गयी। इससे आस-पास के पेड़-पौधों को भी नुकसान हु।  विशेषज्ञों ने इस ऐतिहासिक स्थल के नुकसान की आशंका व्यक्त की। 5 से 9 नवम्बर तक मंदिर परिसर को राख की सफाई करने के लिए बन्द रखान पड़ा।
यूनेस्को ने 2010 में मेरापी पर्वत ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बोरोबुदुर के पुनःस्थापन के लिए यूएस $30 लाख दिये। 55,000 से अधिक पत्थरों की सिल्लियाँ बारिस के कारण किचड़ से बन्द हुई जल निकासी प्रणाली की सफ़ाई के लिए हटायी गयी। पुनः स्थापन का कार्य नवम्बर 2011 तक समाप्त हुआ13 फरवरी 2014 में योगकर्ता से 200 किलोमीटर पूर्व में स्थित पूर्वी जावा में केलुड में हुये ज्वालामुखी विस्फोट से निकली ज्वालामुखी राख से प्रभावित होने के बाद बोरोबुदुर पर्यटन यात्रियों के लिए एक बार फिर बन्द करना पड़ा था।
स्वयंभूनाथ – स्वयंभूनाथ भारत के बाहर बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह नेपाल की काठमांडू घाटी में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित प्राचीन धार्मिक परिसर में है। इस परिसर का निर्माण 5 वीं शताब्दी में किया किया गया था. यहाँ एक पुस्तकालय और एक तिब्बती मठ भी है। स्वयंभूनाथ नेपाल में पूजा लिए बौधों का सबसे पुराना स्थान है।

बोधगया

वैशाली – ईसा पूर्व छठी सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। विश्व को सर्वप्रथम गणतंत्र (Republic) का ज्ञान कराने वाला स्थाजन वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है।
वैशाली भारत के बिहार का एक जिला है. जिसका मुख्यालय हाजीपुर है। इसी जिले में वैशाली गाँव है। बोध प्राप्ति के पाँच वर्ष बाद गौतम बुद्ध का यहाँ आये थे। यहाँ वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू आम्रपाली सहित चौरासी हजार नागरिक संघ में शामिल हुए। वैशाली के समीप कोल्हुआ में महात्मा बुद्ध ने अपना अंतिम सम्बोधन दिया था। इसकी याद में महान मौर्य महान सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दि ईसा पूर्व सिंह स्तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्मा बुद्ध के महा परिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्तूप बनवाये गये. वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें महात्मा बुद्ध उपदेश दिया करते थे. बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ हाजीपुर (पुराना नाम – उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी. पाँचवी तथा छठी सदी के दौरान प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान तथा ह्वेनसांग ने वैशाली का भ्रमण कर यहाँ की भव्यता वर्णन किया है।
स्तूप : स्तूप शब्द संस्कृत और पालि: से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ “ढेर” होता है। अर्थात एक गोल टीले के आकार की संरचना जिसका प्रयोग पवित्र बौद्ध अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है. कभी यह बौद्ध प्रार्थना स्थल होते थे। इसी स्तूप को चैत्य भी कहा जाता है.
पगोडा : पगोडा शब्द का प्रयोग नेपाल, भारत, वर्मा, इंडोनेशिया, थाइलैंड, चीन, जापान एवं अन्य पूर्वी देशों में भगवान् बुद्ध अथवा किसी संत के अवशेषों पर निर्मित स्तंभाकृति मंदिरों के लिये किया जाता है। इन्हें स्तूप भी कहते हैं।

(साभार – सही समय डॉट कॉम)

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