बॉलीवुड की पहली कॉमेडियन थीं टुनटुन

जीवन के आखिरी दिन एक चॉल में बिताए
लगभग 425 फिल्मों में काम किया

उमा देवी उर्फ टुन टुन भारत की पहली महिला कॉमेडियन थीं. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में अपने शानदार सालों के बावजूद उन्होंने सबसे दुखद जीवन जिया। बॉलीवुड में 40 के दशक में एक ऐसी स्टार आईं जिन्होंने महिलाओं की छवि को बदला। जी हां हम बात कर रहे हैं भारत की पहली महिला कॉमेडियन टुनटुन की। हिंदी सिनेमा में हास्य कलाकार के रूप में जानी जाने वाली टुन टुन हिंदी सिनेमा की पहली महिला हास्य कलाकार थीं। उन्होंने लोगों को जितना हंसाया, उतना ही उनका खुद का जीवन भी दुखद भरा रहा.उन्होंने लोगों को हंसाया, लेकिन उनकी कहानी गरीबी और अकेलेपन से भी जुड़ी हुई थी।
टुनटुन यानी उमा देवी खत्री का जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के पास एक छोटे से गांव में 11 जुलाई 1923 में हुआ था। उमा देवी बचपन से ही गरीबी में पली-बढ़ी. बचपन में टुनटुन अपने चाचा के साथ रहती थी और उन्हें अपना पेट भरने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू भी लगाना पड़ता था । 23 साल की उम्र तक उन्हें काफी कुछ सहना पड़ा । उमा देवी जब बहुत छोटी थी तो ज़मीन के विवाद में उनके मां-बाप की हत्या कर दी गई । मृत्यु से पहले एक बार इंटरव्यू में टुनटुन ने बताया था कि मुझे तो अपने मां बाप का चेहरा तक याद नहीं कि वो कैसे दिखते थे? मेरा 8-9 साल का एक भाई था,जिसका नाम हरि था । मुझे याद है हम अलीपुर में रहते थे। एक दिन मेरे भाई की भी हत्या कर दी गई । तब मैं चार-पांच साल की थी. वह बहुत कम उम्र में अनाथ हो गई थीं। उनके माता-पिता और भाई के चेहरे उनके दिमाग में बस एक धुंधली याद बनकर रह गए थे।
बचपन में ही गरीबी और इतने सारे दुख झेलने के बाद वो दिल्ली चली गईं, कहा उनकी मुलाक़ात आबकारी ड्यूटी इंस्पेक्टर अख्तर अब्बास काज़ी से हुई, जिन्होंने उन्हें नौकरी दिलाने में मदद की और उन्हें गायन जारी रखने के लिए प्रेरित भी किया। विभाजन के दौरान काजी पाकिस्तान चले गए, और उमा ने 23 वर्ष की आयु में बॉम्बे जाने का फैसला किया। मुंबई आने के बाद उनके एक नए जीवन की शुरुआत हुई. मुंबई में उन्होंने संगीतकार नौशाद जी का दरवाजा खटखटाया और बोला मैं बहुत अच्छा गाना गाती हूं मुझे एक मौका दे दीजिए वरना मैं मुंबई के समुद्र में कूद जाऊंगी। हालांकि वह प्रशिक्षित गायिका नहीं थीं, लेकिन उनकी बातें सुनकर नौशाद जी ने उनका ऑडिशन लिया और फिर उन्हें गाना गाने का मौका दिया और इस तरह से उमा ने 1946 में फ़िल्म वामिक अज़रा से गायन में पदार्पण किया।
1947 में ‘दर्द’ फिल्म का ये गाना ‘अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेक़रार का आँखों में रंग भर के तेरे इंतजार का’ उमा देवी का पहला गाना आया और ये गाना सुपरहिट रहा। यहीं से उन्हें उन्हें सफलता मिली. इस गाने के बाद उनके कई और हिट गाने भी रहे जैसे ‘आज मची है धूम’, ‘ये कौन चला’, ‘बेताब है दिल’ आदि. दर्द फिल्म के बाद उन्होंने दुलारी, चांदनी रात, सौदामिनी, भिखारी, चंद्रलेखा आदि जैसी फिल्मों में गीत गाए।
उस दौर में लता मंगेशकर जैसी और कई गायिकाएं आईं जिनके बाद नौशाद जी ने उन्हें अभिनय करने की सलाह दी। ये बात सुनकर टुनटुन ने कहा कि वो अभिनय करेंगी लेकिन सिर्फ दिलीप कुमार के साथ। ये बात सुनकर नौशाद जी हंसने लगे. भगवान ने जैसे टुनटुन की बात सुन ली और उन्हें 1950 में ‘बाबुल’ फिल्म में दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ नरगिस लीड रोल में थी।
अभिनय के रूप में उमा देवी की पहली फिल्म ‘बाबुल’ थी. जिसमें वह दिलीप कुमार जी के साथ काम कर रही थी. एक दिन शूटिंग के दौरान दिलीप कुमार के साथ एक सीन करते हुए वह उनके ऊपर गिर गई जिसके बाद दिलीप कुमार ने उमा देवी को टुनटुन उपनाम दिया। उस समय, मोटापे को लेकर शर्मिंदगी को ठीक माना जाता था और उमा देवी ने खुशी-खुशी यह उपनाम स्वीकार कर लिया. आगे चलकर यही नाम उनकी पहचान बना और लोगों ने उन्हें कॉमेडियन टुनटुन के रूप में बहुत पसंद किया। अख्तर अब्बास काजी ने उनके साथ रहने के लिए पाकिस्तान छोड़ने का फैसला किया और उनसे शादी करने के लिए बॉम्बे चले गए। इनके चार बच्चे थे और 1992 में काजी के निधन तक उन्होंने एक साथ जीवन बिताया।
टुनटुन ने अपने फिल्मी करियर में लगभग 425 फिल्मों में काम किया। अपने पाँच दशक के करियर में टुनटुन ने कई भाषाओं में अभिनय किया और आवारा, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा और कई अन्य फ़िल्मों से बॉलीवुड में अपनी एक स्थायी पहचान बनाई। 90 का दशक आते-आते उन्होंने फिल्मों से दूरी बनानी शुरू कर दी। उनकी आखिरी फिल्म 1990 में कसम धंधे की रही । इसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम नहीं किया। फिल्मी करियर छोड़ने के बाद टुनटुन अपने परिवार के साथ समय बिताने लगी । हिंदी सिनेमा के लिए दुखद दिन 23 नवंबर 2003 का था,जिस दिन टुनटुन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
सिनेमा को अपनी ज़िंदगी का एक अच्छा हिस्सा देने के बावजूद, टुन टुन को कभी कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला । एक गायिका और एक स्थायी हास्य कलाकार के रूप में उनके योगदान को इंडस्ट्री ने हल्के में लिया, लेकिन उन्होंने उन्हें उनके जीवन के अंतिम वर्षों में ही छोड़ दिया। अभिनेत्री ने अपने जीवन के आखिरी साल एक चॉल में गुजारे, जहां उन्होंने अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष किया।
अभिनेता और प्रोड्यूसर शशि रंजन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को एक इंटरव्यू के दौरान नटुन टुन के फेम से लेकर चॉल तक के दिनों को याद करते हुए बताया था कि जब मैंने उन्हें पाया, तो वह एक चॉल में रह रही थीं और उनकी हालत बहुत खराब थी और वह बहुत बीमार थीं। जब प्रोडक्शन के लोग उनसे मिले, तो उन्होंने कहा कि वह चल नहीं सकतीं और उन्हें खुद के लिए खाना भी नहीं मिल पा रहा था। जब मुझे इस बारे में पता चला, तो मैं उनसे मिलने गया और उनसे साक्षात्कार के लिए अनुरोध किया । वह बहुत खुश थीं लेकिन जब उन्होंने मुझे बताया कि कैसे वह कुछ पैसे जुटा रही थीं ताकि वह दवाइयां खरीद सकें, तो मुझे बहुत दुख हुआ. इसलिए, मैंने उन्हें हमारे साथ इंटरव्यू करने के लिए मैंने उन्हें 25,000 रुपये का पेमेंट किया ।

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