नयी दिल्ली । सड़क पर रहने वाले बच्चों को लेकर उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्य सरकारें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा तैयार एसओपी को लागू करें।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने ये निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा इस दिशा में अब तक उठाए गए कदम संतोषजनक नहीं हैं। पीठ ने कहा कि बच्चों को बचाने का काम अस्थायी नहीं होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बच्चों का पुनर्वास किया जाए।
इसके साथ ही पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इस पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए। पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई मई के दूसरे सप्ताह में करने का निर्देश दिया है।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत को बताया गया कि तमिलनाडु और दिल्ली सरकार ने पहले ही बेसहारा बच्चों को बचाने और उनके पुनर्वास के लिए योजना तैयार कर ली है। इस पर न्यायालय ने तमिलनाडु और दिल्ली राज्यों को एनसीपीसीआर को इसकी एक प्रति प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु और दिल्ली राज्यों को इस योजना को लागू करने का निर्देश देते हुए कहा है कि सरकार बेसहारा बच्चों की पहचान करने और उनके पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाए।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को बेसहारा बच्चों के लिए पुनर्वास नीति तैयार करने के सुझावों को लागू करने का निर्देश दिया था। इस दौरान अदालत ने कहा था कि यह केवल कागजों पर नहीं रहना चाहिए।
तब अदालत ने कहा था कि अब तक केवल 17,914 स्ट्रीट चिल्ड्रन के बारे में जानकारी प्रदान की गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि संबंधित अधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के वेब पोर्टल पर आवश्यक सामग्री को बिना किसी चूक के अपडेट करना होगा।