चेन्नई । हम जिस महिला की बात कर रहे हैं उनका नाम है एस पेचियाम्मल , जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव कटुनायक्कनपट्टी (थूथुकुडी शहर से क़रीब 30 किमी की दूरी पर) से संबंध रखती हैं। इनकी शादी के महज़ 15 दिन बाद पति की मृत्यु हो गई थी। तब इनकी उम्र मात्र 20 वर्ष थी. पेचियाम्मल दोबारा शादी नहीं करना चाहती थीं. इसलिए, आगे की ज़िंदगी बड़ी चुनौतियों के साथ बिताने की ठान ली। पेचियाम्मल की जब बेटी हुई थी और घर और बेटी की परवरिश के लिए काम करना शुरू कर दिया।
पुरुष प्रधान समाज का शिकार
एस पेचियाम्मल जिस गांव से सम्बन्ध रखती थीं, उनके लिए वहां काम करना उतना आसान नहीं था। वो जहां जाती लोग उन्हें परेशान किया करते थे। बेटी की परवरिश के लिए उन्होंने होटल, चाय की दुकान और कंस्ट्रक्शन साइट्स जैसी जगहों पर काम करने की कोशिश की लेकिन वहां लोग तानों के साथ बुरी नज़र से देखते और साथ ही अभद्र बातें करते थे।
असहज भरी ज़िंदगी से गुज़र रही थीं पेचियाम्मल
जब एस पेचियाम्मल को लगा कि इस पुरुष प्रधानस समाज में एक सामान्य जीवन जीना मुश्किल है, तो उन्होंने आगे की ज़िंदगी एक पुरुष बनकर जीने का फ़ैसला किया।
इसके लिए उन्होंने अपने केश तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर में दान किए और स्त्री के परिधान
त्याग कर कमीज़ और लुंगी पहनना शुरू कर दिया,साथ ही अपना नाम बदलकर मुथु भी रख लिया। इंडिया एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू के अनुसार, मुथु बनीं पेचियाम्मल क़रीब 20 साल बाद अपने मूल स्थान में कटुनायक्कनपट्टी में जाकर बस गयीं। केवल उनकीबेटी और उनके सबसे नज़दीकी लोग ही उनकी असलियत जानते थे।
पुरुष बनकर ही रहना चाहती हैं
पेचियाम्मल अब 57 वर्ष की हो चुकी हैं और उनकी बेटी की भी शादी हो चुकी है लेकिन उनका मानना है कि वो इसी तरह पुरुष बनकर रहना चाहती हैं. उनका कहना है कि मैं अपनी मृत्यु तक मुथु बनकर ही रहूंगी.” जानकर हैरानी होगी कि उनके आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड में भी उनका नाम मुथु ही है।
वहीं, वो कहती हैं कि, ” मेरे पास न तो अपना घर है और न ही मेरे पास कोई बचत है। मैं विधवा प्रमाण पत्र के लिए भी आवेदन नहीं कर सकती. चूंकि मेरी उम्र हो चुकी है, इसलिए मैं काम भी नहीं कर सकती हैं। सरकार से आर्थिक सहायता देने का अनुरोध करती हूं. ” इस विषय पर कलेक्टर डॉ के सेंथिल राज ने का कहना है कि, “वो देखेंगे कि क्या किसी सामाजिक कल्याण योजना के तहत पेचियाम्मल की सहायता की जा सकती है।