पूर्णिया : बिहार के पूर्णिया जिला में रहने वाले साकेत, हर सुबह जब अपनी 2 एकड़ जमीन पर लगे फसलों को देखते हैं, तो उनका दिन उत्साह से भर जाता है। साकेत ने इस जमीन को कुछ साल पहले ही मखाने की खेती के लिए खरीदा था। मखाना को कमल बीज या फॉक्स नट के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कई पोषक तत्व होते हैं। साकेत के अधिकांश किसान साथी गेहूँ और धान की खेती करते हैं, लेकिन उन्होंने मखाना की खेती करने का फैसला किया। इससे साकेत को न सिर्फ अपने परिवार को कर्ज से उबारने में मदद मिली, बल्कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में भी मदद मिली।
साकेत ने द बेटर इंडिया को बताया, “मखाना से पहले मैं सिर्फ गेहूँ और अन्य फसलों की खेती करता था। मेरे पास अपनी जमीन नहीं थी, इसलिए शुरूआत में मुझे दूसरे की जमीन पर खेती करनी पड़ी। लेकिन, मखाना से होने वाली कमाई से मुझे काफी मदद मिली और कुछ ही वर्षों में मैंने न सिर्फ 2 एकड़ जमीन खरीद ली, बल्कि इससे मुझे अपने परिवार और बच्चों की बेहतर देखभाल करने में मदद मिली।”साकेत मखाना के बीज को बेच कर सालाना 3.5 लाख रूपये कमाते हैं और फिर बचे हुए बीजों को कुछ दिनों के बाद 30% अधिक मूल्य पर बेचते हैं। इस तरह हर साल उन्हें 4.5 लाख रूपए की कमाई होती है। साकेत, महज बिहार के 8 जिलों के 12,000 किसानों में से एक हैं, जिन्होंने शक्ति सुधा इंडस्ट्रीज के संस्थापक सत्यजीत कुमार सिंह से मखाना की खेती सीखी। सत्यजीत को ‘मखाना मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से भी जाना जाता है।
आज जब देश-विदेश में मखाना लोकप्रिय है, अकेले बिहार में 90 फीसदी मखाना का उत्पादन होता है। सत्यजीत दावा करते हैं कि उनकी कंपनी शक्ति सुधा इस उत्पादन में कम से कम 50 प्रतिशत का योगदान करती है। इसके साथ ही, जिस गति से वह आगे बढ़ रहे हैं, उनका विश्वास है कि अगले 2-3 वर्षों में वह दुनिया के कुल मखाना उत्पादन में 70 से 75 फीसदी योगदान देने में सफल होंगे।
मखाना मैन की कहानी
मूल रूप से बिहार के जमुई जिले के रहने वाले सत्यजीत एक खेती-किसानी करने वाले परिवार से वास्ता रखते हैं। वह शुरू से ही कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिसका समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव हो। इसलिए पटना विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने दो बार यूपीएससी की परीक्षा दी। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता हासिल की, लेकिन काफी विचार करने के बाद उन्होंने महसूस किया कि वह इसके लिए नहीं बने हैं।
इसके बारे में वह कहते हैं, “काफी सोचने के बाद, मुझे अहसास हुआ कि यह कुछ ऐसा नहीं था, जिसमें मैं अपना सौ फीसदी दे सकूँ। इसलिए मैंने सिविल सेवा के बजाय कारोबार में हाथ आजमाने का फैसला किया।”व्यावसायिक क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने के बाद, एक हवाई यात्रा ने उन्हें मखाने की खेती की तरफ मोड़ दिया। उस घटना के बारे में सत्यजीत कहते हैं, “मैं फ्लाइट से बेंगलुरू से पटना आ रहा था। इसी दौरान मुझे राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान बोर्ड, पटना के तत्कालीन निदेशक डॉ. जनार्दन मिले। वह मखाने की सतत खेती पर शोध कर रहे थे और बातों-बातों में उन्होंने मुझे मखाने के फायदे के बारे में बताया और मैंने इसमें आगे बढ़ने का मन बनाया।”अगले दो से तीन वर्षों तक उन्होंने डॉ. जनार्दन के साथ रहकर मखाने की खेती की समस्याओं और तकनीकों को गहन रूप से समझा और इस दौरान उन्होंने राज्य के कई जिलों और गाँवों का दौरा किया।
वह बताते हैं, “उस वक्त इसके उत्पादन पर कुछ खास रिसोर्स मैपिंग उपलब्ध नहीं था। कुछ समुदायों ने 1000 से 1,500 टन मखाने की खेती की। इससे किसानों को मुनाफा नहीं हो रहा था, इस वजह से वह इससे दूर भागने लगे। इसलिए 2005 से 2015 तक, सरकारी एजेंसियों, विश्व बैंक और नाबार्ड के साथ मिलकर हमने बैकवर्ड इंटीग्रेशन के मॉडल को विकसित किया। इससे तहत हमारा उद्देश्य कम से कम प्रयासों के जरिए बड़े पैमाने पर मखाने की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना और उन्हें एक बेहतर बाजार उपलब्ध कराना था, ताकि उन्हें अधिकतम लाभ हो।”
शक्ति सुधा के प्रयासों से, स्थानीय बाजारों में मखाने का दाम 40 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 400 रुपये प्रति किलो हो गया। फलस्वरूप, जो पहल महज 400 किसानों के साथ शुरू हुआ था, आज उससे 12,000 से अधिक किसान जुड़ चुके हैं। मखाना किसान साकेत कहते हैं, “पहले मखाना का बाजार काफी हद तक क्रेडिट-बेस्ड लेन-देन पर आधारित था। लेकिन, शक्ति सुधा के आने के बाद, किसानों को अपनी उपज के लिए नकद भुगतान मिलने लगा।”
वह आगे कहते हैं, “शक्ति सुधा ने बाजार को पूरी तरह से किसानों के हित में बदल दिया, पहले मखाना उत्पादक बिचौलियों से त्रस्त थे। क्योंकि, वह कई महीनों के बाद किसानों को उपज की कीमत अदा करते थे। लेकिन, शक्ति सुधा ने इसके विपरीत, हमें तत्काल उच्च दर का भुगतान किया। इससे बड़े पैमाने पर किसानों ने मखाना की खेती शुरू कर दी और शक्ति सुधा को अपने उत्पाद बेचने लगे। इससे अन्य थोक और खुदरा खरीददारों पर मूल्य बढ़ाने का दवाब बढ़ा। मखाने की खेती करना काफी मुश्किल है। अंततः वर्षों के बाद हमें अपने मेहनत की उचित कीमत मिल रही है।”
सत्यजीत कहते हैं कि यह हमारे शोध कार्यों का नतीजा है कि शक्ति सुधा इस बदलाव को लाने में सक्षम हुई। इससे मखाना को सिर्फ स्नैक्स के बजाय एक सुपरफूड के रूप में बाजार में लाने में मदद मिली है। गत 19 वर्षों के दौरान मखाना बिहार के किसानों के लिए एक नकदी फसल के रूप में विकसित हुआ है। शायद यह इसी का नतीजा है कि जहाँ पहले सिर्फ 1,500 हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होती थी अब 16,000 हेक्टेयर पर होती है। सत्यजीत का अंदाजा है कि अगले वर्ष तक बिहार में 25,000 हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होगी। वह कहते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर मखाने की खेती तभी संभव हुई, जब किसानों ने धान और गेहूँ जैसे पारंपरिक फसलों के बजाय मखाने की खेती पर विश्वास जताया। सत्यजीत कहते हैं, “परंपरागत रूप से मखाने की खेती बड़ी झीलों या तालाबों में होती थी। कुछ गहन शोधों के आधार पर हमने इसे धान और अन्य फसलों के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले जमीन के अनुकूल बनाया, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहाँ जल-जमाव और बाढ़ की स्थिति रहती है। मखाना के पौधे के लिए 1.5 से 2 फीट गहरी पानी की जरूरत होती है। इसलिए हमने खेतों को इसी के अनुसार तैयार किया। इनसे न केवल किसानों को मखाना की खेती अपनाने में मदद मिली, बल्कि तेजी से विस्तार भी हुआ। आज करीब 80 प्रतिशत मखाने की खेती ऐसी ही जमीन पर होती है, जबकि 20 प्रतिशत तालाबों में उगाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कारोबार करने के लिए बना रहे हैं योजना
बिहार में मखाना की खेती तेजी से बढ़ रही है और इस साल शक्ति सुधा ने अपना खुद का ब्रांड बनाने और अपने उत्पादों की मार्केटिंग पूरी दुनिया में करने का फैसला किया है। सत्यजीत का सपना मखाने को दुनिया भर में कैलिफ़ोर्निया आलमंड की तरह लोकप्रिय बनाना है।
इसी के तहत कंपनी ने मखाने से बने कई उत्पादों को बाजार में लाया है। फिलहाल, बाजार में शक्ति सुधा के पॉपकॉर्न मखाना स्नैक्स , कुकीज हो, रेडी टू मेड मिठाई, जैसे 28 उत्पाद हैं। ये उत्पाद ऑफलाइन और ऑनलाइन, दोनों उपलब्ध हैं। सत्यजीत कहते हैं, “हमने जुलाई में अपना ऑनलाइन सेगमेंट लॉन्च किया है और पहले ही महीने में 3.25 लाख रुपये का कारोबार हुआ। इसमें 33% रिपीट ऑर्डर हैं। वहीं, जनवरी में पटना में रिटेल को लॉन्च किया गया था, जिससे एक महीने में 7-8 लाख रुपये की कमाई हुई। इसके अलावा, हमने अमेरिका और कनाडा में भी 2 टन मखाने को निर्यात किया। हम इसे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि 2024 तक, हमारा कारोबार 50 करोड़ रुपए से बढ़कर 1000 करोड़ रुपये हो जाएगा।”
सत्यजीत चाहते हैं कि भविष्य में मखाना का बाजार और भी बढ़े। वह कहते हैं, “हमारा विचार है कि मखाना, प्रीमियम और सस्ते, दोनों किस्मों में उपलब्ध हो। हमारा पूरा ध्यान बाजार में सबसे बढ़िया मखाना उपलब्ध कराना है। यहाँ तक कि हमारे उत्पादों की पैकेजिंग भी पारदर्शी है, ताकि ग्राहक इसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित कर सकें। हमारी गुणवत्ता हमारा गर्व है और हम अपने ग्राहकों के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।”
शक्ति सुधा, फिलहाल देश के 15 राज्यों और 50 शहरों में अपने कारोबार को बढ़ाने की योजना बना रही है और उनका मानना है कि कई पोषक तत्वों से परिपूर्ण मखाना, पूरी दुनिया में बिहार की छवि को हमेशा के लिए बदल सकती है।
इस लेकर सत्यजीत कहते हैं, “मुझे देश में बिहार की नकारात्मक छवि और रूढ़ियों को लेकर काफी दुख होता था। बिहार कई मायनों में सक्षम है, लेकिन लोग इस पर ध्यान नहीं देते है। मैं यहाँ उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देकर एक बदलाव को लाने की कोशिश कर रहा हूँ। सिविल सेवा क्षेत्र में नौकरी कर रहे मेरे दोस्त मुझे “मखाना मैन ऑफ इंडिया” कहते हैं, जो मुझे पसंद है, क्योंकि मुझे एक ऐसे उत्पाद से जुड़ने की खुशी है, जिससे न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि हजारों परिवारों को भी सक्षम बना रहा है। उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकाल रहा है। मैं अपने सपनों को जी रहा हूँ।”
मूल लेख – (अनन्या बरुआ )
साभार – द बेटर इंडिया