वो दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक हैं. आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक और सीईओ चंदा कोचर को पिछले तीन साल की तरह इस साल भी दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं में चुना गया है।
एक सफल कामकाजी महिला के तौर पर तो उन्हें हर कोई जानता है लेकिन उनकी निजी जिंदगी के बारे में कम ही लोगों को पता है. जहां वो एक मां, एक बेटी, एक पत्नी, एक बहू की भूमिका में होती हैं. आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि कामकाजी औरतें अपने बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती हैं लेकिन चंदा कोचर की ये चिट्ठी पढ़कर आपकी भी राय बदल जाएगी. ये चिट्ठी उन्होंने अपनी बेटी आरती के नाम लिखी है।
सुधा मेनन द्वारा लिखी किताब “लिगेसीः लेटर्स फ्रॉम एमिनैंट पैरेंट्स टू देयर डॉटर्स” में उनका ये खत प्रकाशित हुआ है जिसे पढ़कर आप भी भावुक हुए बिना नहीं रह पाएंगे।
प्यारी आरती,
आज तुम्हें जीवन के इस नए सफर के लिए तैयार और आत्मविश्वास से भरी हुई युवती के रूप में देखकर मुझे गर्व हो रहा है। आने वाले सालों में मैं तुम्हें तरक्की करते हुए देखना चाहती हूं। आज तुम्हें देखकर मेरी अपनी यादें जिंदा हो उठी हैं. यादों के साथ ही वो सारी बातें, वो सबक जो मैंने बचपन में सीखे थे।
उस वक्त के बारे में सोचती हूं तो पाती हूं कि ज्यादातर बातें और सबक तो मैंने अपने माता-पिता से ही सीखे थे। बचपन में जो मूल्य उन्होंने मुझे सिखाए और दिए, उन्हीं की नींव पर मैं आज खड़ी हूं।
हम तीनों भाई-बहनों में कभी भेदभाव नहीं किया गया। चाहे पढ़ाई की बात हो या भविष्य की योजनाओं की, कभी कोई फर्क नहीं किया गया। उन्होंने हमेशा यही कहा कि जिस चीज से हमें संतुष्टि मिलती है, हमें उसी दिशा में पूरी लगन से काम करना चाहिए। बचपन में सिखायी गई इन्हीं बातों ने हमें अपना फैसला खुद लेने के काबिल बनाया। इस एक सबक ने मुझे खुद की पहचान बनाने और खुद को तलाशने में मदद की।
मैं सिर्फ 13 साल की थी, जब हमारे पिता को अचानक दिल का दौरा पड़ा और वो हमें अकेला छोड़कर चले गए। उनके रहने तक हमने कभी भी चुनौतियों का सामना नहीं किया था पर उस रात के बाद, बिना किसी पूर्व सूचना के सबकुछ बदल गया। मेरी मां, जो अब तक एक गृहिणी थी, उसके ऊपर तीन बच्चों को अकेले बड़ा करने की जिम्मेदारी आ गई। तब हमें पता चला कि वो कितनी मजबूत थीं.
धीरे-धीरे उन्होंने टेक्सटाइल डिजाइनिंग के लिए खुद को तैयार किया और छोटी सी फर्म में नौकरी कर ली। कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद को एक प्रासंगिक शख्स बना लिया. अकेले पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाना उनके लिए बहुत मुश्किल रहा होगा लेकिन उन्होंने हमें कभी भी इस बात का एहसास नहीं होने दिया.। उन्होंने तब तक कड़ी मेहनत की,जब तक हम सब कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो गए। मुझे कभी नहीं पता था कि मेरी मां को खुद पर इतना भरोसा है।
अगर आप फुलटाइम जॉब करने वाली मां या पिता हैं तो आपके काम का असर आपके परिवार और रिश्ते पर नहीं पड़ना चाहिए. वो वक्त याद है, जब तुम अमेरिका में पढ़ रही थी और मेरे आईसीआईसीआई बैंक के एमडी और सीईओ बनने की खबरें सारे अखबारों में थीं? तुमने दो दिन बाद मुझे एक मेल किया जिसमें तुमने मुझे लिखा था, ‘आपने हमें कभी महसूस नहीं होने दिया कि आपका करियर इतना तनावभरा और इतना शानदार हो सकता है। घर पर आप सिर्फ हमारी मां थीं,’ तुम अपनी जिंदगी को वैसे ही जीना।
मां से मैंने एक बात और सीखी थी कि मुश्किलों से निपटकर आगे बढ़ते रहने की ताकत होना सबसे जरूरी है, फिर चाहे कुछ भी हो। मुझे आज भी याद है कि कितने धैर्य के साथ उन्होंने पापा के जाने के बाद सब संभाल लिया था। आपको सारी मुश्किलों का सामना कर, उनसे जीतना होता है, न कि उन्हें खुद पर हावी होने देना। मुझे याद है कि 2008 के आखिर में ग्लोबल इकनॉमिक मेल्टडाउन के दौरान आईसीआईसीआई बैंक को बचाए रखना कितना मुश्किल हो गया था। सारे बड़े मीडिया हाउस दूर से हमारी स्थिति को देखकर अंदाजे लगा रहे थे। हर जगह हमारे बारे में बहसें की जा रही थीं।
मैं काम पर लग गई, छोटे से छोटे पैसा जमा करने वाले से लेकर बड़े इनवेस्टर्स तक, सबसे बात की. रेगुलेटर्स से लेकर सरकार तक से बात की. बैंक परेशानी में नहीं था, पर मैं स्टेकहोल्डर्स की परेशानी भी समझती थी, क्योंकि कइयों को डर था कि उनका पैसा खतरे में है।
मैंने हर ब्रांच के स्टाफ को सलाह दी कि बैंक से पैसा निकालने आए हर इनवेस्टर की बात तसल्ली से सुनें। अगर कोई अपनी बारी का इंतजार कर रहा है, तो उन्हें बैठने को कुर्सी और पीने को पानी दें और हां, भले ही लोगों को बैंक से अपना पैसा निकालने की पूरी आजादी थी, पर हमारे स्टाफ ने उन्हें समझाया कि ऐसा करने से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि दरअसल क्राइसिस की कोई बात नहीं थी।
उन्हीं मुश्किल दिनों की बात है, जब एक दिन मैंने तुम्हारे भाई के स्क्वॉश टूर्नामेंट के लिए दो घंटे की छुट्टी ली थी. उस वक्त मुझे अंदाजा नहीं था, पर उस दिन मेरे वहां होने से बैंक के कस्टमर्स का हम पर भरोसा मजबूत हुआ था. कुछ मांओं ने मेरे पास आकर पूछा कि क्या मैं आईसीआईसीआई की चंदा कोचर हूं, और जब मैंने हां में जवाब दिया, तो उनका अगला सवाल था कि इतने क्राइसिस के दौरान खेल के लिए वक्त कैसे निकाला? उन्हें भरोसा हो गया था कि अगर मैं खेल के लिए वक्त निकाल रही हूं, तो बैंक सही हाथों में है और अपने पैसे को लेकर उन्हें डरने की जरूरत नहीं है।
मैंने अपनी मां से परिस्थितियों के हिसाब से ढलना भी सीखा. अपने करियर के लिए कड़ी मेहनत करते वक्त मैंने अपने परिवार की देखभाल भी की. जब भी मेरी मां और मेरे ससुराल वालों को मेरी जरूरत हुई, मैं उनके साथ थी। उन्होंने भी मेरा साथ दिया और मेरे करियर को आगे ले जाने में मेरी मदद की।
याद रखना, रिश्ते बेहद जरूरी हैं और हमें उनका खयाल रखना चाहिए. ये भी याद रखो कि रिश्ते एकतरफा नहीं होते, इसलिए जो आप अपने सामने वाले से उम्मीद रखते हो, वो उसे देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
आज मेरा करियर जहां है, वहां कभी नहीं पहुंच पाता, अगर तुम्हारे पापा मेरे साथ न होते। उन्होंने घर से बाहर रहने पर मुझसे कभी भी शिकायत नहीं की. हम दोनों ही अपने करियर में व्यस्त थे लेकिन फिर भी हम दोनों ने अपने रिश्ते को कमजोर नहीं पड़ने दिया। मुझे भरोसा है कि वक्त आने पर तुम भी अपने पार्टनर के साथ वैसा ही करोगी।
अगर तुमने भी मेरे मेरे घर से काफी समय तक बाहर रहने को लेकर शिकायत की होती तो मैं कभी अपने लिए करियर बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इतना समझदार और साथ देने वाला परिवार मिला है। मुझे यकीन है कि जब तुम अपना परिवार बनाओगी, तुम भी इतनी ही भाग्यशाली रहोगी।
मुझे याद है, जब तुम्हारे बोर्ड एग्जाम शुरू होने वाले थे. मैंने छुट्टी ली थी ताकि मैं तुम्हें खुद एग्जाम दिलाने ले जा सकूं. तब तुमने मुझे बताया कि कितने साल तक तुम्हें अकेले एग्जाम देने जाना पड़ा था। ये सुनकर मुझे मुझे बहुत दुख हुआ था. पर मुझे ये भी लगा कि एक कामकाजी मां की बेटी होने की वजह से तुम बहुत जल्दी ही आत्मनिर्भर हो गई हो। तुम सिर्फ समझदार ही नहीं हुई, बल्कि तुमने अपने छोटे भाई का भी ध्यान रखा. तुमने उसे कभी मेरी कमी महसूस नहीं होने दी. मैंने भी तुम पर भरोसा करना, तुममें विश्वास रखना सीखा और अब तुम एक मजबूत, आत्मनिर्भर महिला बन गई हो. मैं अब वही सिद्धांत अपनी कंपनी में भी अपनाती हूं।
मैं भाग्य में भरोसा रखती हूं लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी मानती हूं कि कड़ी मेहनत की हमारी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बड़े मायनों में देखें तो हम सब अपनी किस्मत खुद ही लिखते हैं। अपनी किस्मत को अपने हाथों में लो, जो पाना चाहते हो उसका ख्वाब देखो और इसे अपने मुताबिक लिखो।
आगे बढ़ते वक्त कई बार तुम्हें मुश्किल फैसले लेने होंगे. ऐसे फैसले जो शायद दूसरों को पसंद न आएं लेकिन तुममें इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि तुम उसके लिए खड़ी हो सको जिसमें तुम्हारा विश्वास है। ध्यान रहे कि तुममें वो करने की हिम्मत होनी चाहिए, जो तुम्हें सही लगता है।
आरती, दृढ इच्छा शक्ति से कुछ भी पाया जा सकता है, इसकी सीमा नहीं, पर अपने लक्ष्य के पीछे जाते वक्त अपनी ईमानदारी और मूल्यों से समझौता मत करना. अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं का सम्मान करना।
याद रखना कि अच्छा और बुरा, दोनों तरह का वक्त जिंदगी में बराबर आता है. तुम्हें इसे एक ही तरह से लेना सीखना होगा. जिंदगी जो अवसर दे, उसका पूरा फायदा उठाओ और हर अवसर, हर चुनौती से सीखती रहो.।
तुम्हारी प्यारी,
मम्मा