Tuesday, April 29, 2025
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वाणी प्रवाह 2022 – बाल मनोविज्ञान पर लिखा बहुचर्चित और कालजयी उपन्यास “आपका बंटी”

प्रतिभागी – नेहा सिंह
प्रतियोगिता का नाम- समीक्षा लेखन
बी.एड ( डब्ल्यूटीटीईपीए)  
मातृभाषा – हिंदी
आपका बंटी (समीक्षा)
 लेखिका –  मन्नू भंडारी
मन्नू भंडारी का  चर्चित उपन्यास “आपका बंटी” बाल मनोविज्ञान पर लिखा एक बहुचर्चित और कालजयी उपन्यास है। कहना मुश्किल है कि यह नौ साल के एक बच्चे बंटी की घायल सवेंदनाओं की कहानी है या फिर समाज में अपनी जगह बनाने की कोशिश करती शकुन के जीवन का सत्य। वजह यह कि दोनों की ही अपनी – अपनी त्रासदी है और ये आपस में बुरी तरह गुंथी है। इसका प्रकाशन वर्ष 1979 में हुआ था। इसे हिंदी साहित्य की एक मूल्यवान उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। यह एक ऐसी बच्चे की मनोगाथा है जो अपनी मम्मी और पापा के रिश्तों की डोर है, वह भी उलझा हुआ। मन्नू भंडारी ने जब यह उपन्यास लिखा तब तलाक के उतने मामले न होंगे जितना आज होता है। आज बात-बात पर रिश्ते टूट जाया करते हैं। और दूसरी बार हो या पहली बार , फिर से रिश्ते जुड़ते भी है लेकिन इन सबके बीच जिसकी जिंदगी सूनेपन की गठरी बन जाती है वह है बंटी यानि बंटी जैसे हमारे समाज में अनेक बच्चों की। मन्नू जी ने बंटी के माध्यम से उन तमाम बच्चों की मनोदशा का अतुल्य वर्णन किया है जो माता-पिता के विखराव के बीच एक मात्र डोर है।
इस उपन्यास में यह दिखाया गया है कि माँ-बाप के झगड़े के मध्य किस परिस्थितियों से एक बच्चे का बचपन अपने माता-पिता को अलग न होने की कामना में गुजरता है। मन्नू जी कहती हैं  जिंदगी को चलाने और निर्धारित करने वाली कोई भी स्थिति कभी इकहरी नहीं होती, इसके पीछे एक साथ अनेक और कभी-कभी बड़ी विरोधी प्रेरणाएँ निरंतर सक्रिय रहती हैं। इस उपन्यास के मुख्य बाल पात्र बंटी जो माता-पिता के होने के वाबजूद अनाथ की भांति जीवन व्यतीत करता है। बंटी चाहता है कि उसके पापा-मम्मी दोनों साथ रहे। एक दूसरे से लड़े नहीं किन्तु ऐसा नहीं हो पाता और दोनों का तलाक हो जाता है। बंटी के पापा(अजय) मीरा नामक स्त्री के साथ रहने लगते है। यह सब देख शकुन को भी लगता है कि मैं ही क्यों ऐसे उदास जीवन जीऊँ जबकि वो मीरा के साथ खुश है। इस लिए शकुन ने डॉ. जोशी से विवाह करने का फ़ैसला किया जिसके दो बच्चे भी रहते है। बंटी को डॉ. जोशी का घर नहीं पसंद आता और उसकी मम्मी का प्यार अब तीन हिस्सों में बँट जाने से उसे दुःख होता है। उसे अपनी पुरानी मम्मी चाहिए थी जो उसके साथ सोती थी हमेशा वो मम्मी के गले में झूलता रहता था अब वैसा कुछ नहीं था।
ततपश्चात वो अपने पापा के साथ कलकत्ता जाता है किंतु वहाँ भी वैसा माहौल नहीं मिलता जैसा वो जीता था। बंटी सौतेली माँ को भी  पूर्णतः नहीं अपना पाता। अंत में यह दिखाया गया है कि बंटी की स्थिति माता-पिता वाले अनाथ बच्चे सी हो गयी थी और उसे होस्टल में अकेली जिंदगी बितानी पड़ती है।
उपन्यास में दोनों पक्ष अपने स्थान पर सही ही दिखाई देते हैं। बंटी के माता पिता अपने खुशी की सोचते है किंतु बंटी के लिए कुछ नहीं सोचते। इस उपन्यास में माता-पिता का एक स्वार्थी स्वभाव नज़र आता है। जिसमें त्याग भावना नहीं है जो कि अपने बच्चे के लिए ही एक दूसरे की गलतियों को भूलना नहीं चाहते।
उपन्यास का उद्देश्य खंडित रिश्ते को ही दिखाना मात्र नहीं है किंतु उसका बच्चे पर दुष्प्रभाव दिखाया गया है। यह उपन्यास एक नई बात, नए विचार, नई भाषा एवं नया भाव-बोध के साथ हिंदी का पहला सशक्त उपन्यास है। इस उपन्यास की विशेषता यह है कि यह एक बच्चे की निगाहों से घायल होती संवेदना का बेहद मार्मिक चित्रण करता है, जिसमे मध्यमवर्गीय परिवार में संबंध विच्छेद की स्थिति एक बच्चे की दुनिया का भयावह दुःस्वप्न बन जाती है सभी एक दूसरे से ऐसे उलझे है कि पारिवारिक त्रासदी से उपजी स्थितियां सभी के लिए यातना बन जाती है। इस पूरी स्थिति की सबसे बड़ी विडंबना ही यह है कि इन संबंधों के लिए सबसे कम जिम्मेदार और सब ओर से बेगुनाह बंटी ही इस त्रासदी को सबसे अधिक भोगता है। बाल-मनोविज्ञान की गहरी समझ-बूझ के लिए चर्चित, प्रशंसित इस उपन्यास का हर पृष्ठ ही मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक  हैं।
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